'वृद्धाश्रम'-- दूजी पारी जीवन की....



hopeless old couple heading towards oldage home



ऐसी निष्ठुर रीत से उनकी
ये प्रथम मुलाकात हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई

शब्द चुभे हिय में नश्तर से
नयनों से लहू टपकता था
पतझड़े पेड़ सा खालीपन
मन सूनेपन से उचटता था
कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये
कण्टक की बरसात हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई

फिर पत्थर सा हुआ हृदय
आँखों में नीरवता छायी
एक असहनीय मजबूरी
वृद्धाश्रम तक ले आयी
मोह का धागा टूट गया
जाने ऐसी क्या बात हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई

नये सिरे से शुरू था जीवन
नहीं मृत्यु से ही भय था
दूजी पारी थी जीवन की
दूजा ही ये आश्रय था
अपलक स्तब्ध थी आँखें
उम्र ढ़ली शुरुआत हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई

                चित्र साभार गूगल से...





टिप्पणियाँ

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…
किसी वृद्धाश्रम जाने की नौबत न ही आए तो अच्छा होगा। किस का कल कैसा होगा यह कोई नहीं जानता।
Digvijay Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 22 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Sudha Devrani ने कहा…
सही कहा आपने ये नौबत न आये...फिर भी कुछ बदनसीबों पर आ रही है और दिल पर पत्थर रख घर परिवार का मोह त्यागकर जीवन की दूजी पारी जीने पहुंच रहे हैं वृद्धाश्रम.... और कर भी क्या सकते हैं
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सर!
Sudha Devrani ने कहा…
सांध्य दैनिक मुखरित मौन के मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सर!
Jyoti Dehliwal ने कहा…
सुधा दी, वृध्दाश्रम में इंसान कितना मजबूर हो जाता है, उसका दिल कितना रोता है इसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने। काश,किसी भी इंसान को वृद्धाश्रम न जाना पड़े।
Meena Bhardwaj ने कहा…
अपलक स्तब्ध थी आँखें
उम्र ढ़ली शुरुआत हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई...
वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम में रहने वालों की व्यथा का मर्मस्पर्शी चित्रण । ज्योति जी की बात से सहमत...काश , किसी इन्सान को ऐसे दिन न देखने पड़े ।
Ravindra Singh Yadav ने कहा…
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (24अगस्त 2020) को 'उत्सव हैं उल्लास जगाते' (चर्चा अंक-3803) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव



Onkar ने कहा…
सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना
Sudha Devrani ने कहा…
जी, ज्योति जी!अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
Sudha Devrani ने कहा…
जी, मीना जी! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका...।
Sudha Devrani ने कहा…
हृदयतल से धन्यवाद आ.रविन्द्र जी!चर्चा मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु...
सादर आभार।
Sudha Devrani ने कहा…
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.ओंकार जी!
Sudha Devrani ने कहा…
सस्नेह आभार भाई!
Harash Mahajan ने कहा…
बहुत ही सुंदर रचना ।
Kamini Sinha ने कहा…
नये सिरे से शुरू था जीवन
नहीं मृत्यु से ही भय था
दूजी पारी थी जीवन की
दूजा ही ये आश्रय था
अपलक स्तब्ध थी आँखें
उम्र ढ़ली शुरुआत हुई
काटे से ना कटती थी वो
ऐसी भयावह रात हुई
एक भयावह सच्चाई ,हृदयस्पर्शी सृजन सुधा जी
Anuradha chauhan ने कहा…
मर्मस्पर्शी रचना
Sudha Devrani ने कहा…
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. जोशी जी!
Sudha Devrani ने कहा…
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
Sudha Devrani ने कहा…
तहेदिल से धन्यवाद कामिनी जी!
Sudha Devrani ने कहा…
अत्यंत आभार सखी!
जीवन के कठोर सत्य को शब्दों का आवरण ओढ़ के प्रस्तुत कर दिया आपने ... बुढापे का संग्राम बहुत दर्द देता है ... इन्सान असहाय होता है और तन्हाई और अकेलेपन को जीना अभिशाप बन जाता है ...
सचाई से रूबरू कराती हुई रचना ...
रेणु ने कहा…
प्रिय सुधा जी , बुढापा जीवन की सबसे दारुण दशा का नाम है | ये सरल और सहज हो सकता है यदि अपनों का साथ रहे पर यदि समय वृद्धाश्रम की कदम मोड़ दे तो उससे दारुण अवस्था कौन सी होगी !एक्लापन और अपनों का तिरस्कार ये समय दूभर बना देते हैं | मन को छूती हुई अत्यंत मार्मिक रचना | ईश्वर करे किसी को वो दिन देखना ना पड़े जिस दिन किसी की सुबह वृद्धाश्रम में हो | भावपूर्ण रचना के लिए सस्नेह शुभकामनाएं|
Sudha Devrani ने कहा…
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!
Sudha Devrani ने कहा…
जी,सखी!सही कहा आपने अपनो का तिरस्कार वृद्धावस्था को और भी दूभर बना देता है...अपने प्रियजनों के मुख से कटु शब्द सुनकर वृद्ध वृद्धाश्रम जैसी दूजी पारी जीने को मजबूर हो जाते हैं
अनमोल प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

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