एक नयी सोच जब मन में आने लगी................ भावना गीत बन गुनगुनाने लगी......................
शनिवार, 2 मार्च 2019
अब भावों में नहीं बहना है....
जाने कैसा अभिशाप है ये
मन मेरा समझ नहीं पाता है
मेरी झोली में आकर तो
सोना भी लोहा बन जाता है
जिनको मन से अपना माना
उन्हीं ने ऐसे दगा दिया
यकींं भी गया अपनेपन से
तन्हा सा जीवन बिता दिया
एक सियासत देश में चलती
एक घरों में चलती है
भाषण में दम जिसका होता
सरकार उसी की बनती है
सच ही कहा है यहाँ किसी ने
"जिसकी लाठी उसकी भैंस"
बड़बोले ही करते देखे
हमने इस दुनिया में ऐश
नदी में बहने वाले को
साहिल शायद मिल भी जाये
भावों में बहने वाले को
अब तक "प्रभु" भी ना बचा पाये
गन्ने सा मीठा क्या बनना
कोल्हू में निचोड़े जाओगे
इस रंग बदलती दुनिया में
गिरगिट पहचान न पाओगे
दुनियादारी सीखनी होगी
गर दुनिया में रहना है
'जैसे को तैसा' सीख सखी!
अब भावों में नहीं बहना है
चित्र;साभार गूगल से....
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60 टिप्पणियां:
नदी में बहने वाले को
साहिल शायद मिल भी जाये
भावों में बहने वाले को
अब तक "प्रभु" भी ना बचा पाये....वाह लाज़बाब
सादर
दुनियादारी सीखनी होगी
गर दुनिया में रहना है
"जैसे को तैसा" सीख सखी !
अब भावों में नहीं बहना है
कटु सत्य कहा आपने 👌 बेहतरीन रचना सखी
बहुत सुंदर रचना। भावों में बहने वाले को
अब तक "प्रभु" भी ना बचा पाये। जीवन का यथार्थ बयां करती पंक्तियाँ।
बेहद सुन्दर सृजन सुधा जी ! यथार्थ को अभिव्यक्त करता हर पदबन्द अत्यन्त सुन्दर ।
वाह वाह सुधा जी नीति पर सुंदर अभिव्यक्ति।
सार्थक अप्रतिम।
सोचने पर विवश करती रचना
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जाने कैसा अभिशाप है ये
मन मेरा समझ नहीं पाता है....
पश्चाताप होता है कभी कभी ऐसी परिस्थिति पर। सोच को झकझोर गई आपकी यह रचना ।
हार्दिक धन्यवाद अनीता जी !
सस्नेह आभार...
बहुत बहुत धन्यवाद, अनुराधा जी !
सादर आभार...
सस्नेह आभार, भाई !
हार्दिक धन्यवाद, मीना जी !
सस्नेह आभार....
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार,कुसुम जी
बहुत बहुत धन्यवाद रश्मि प्रभा जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है...
हार्दिक धन्यवाद, पुरुषोत्तम जी !
सादर आभार....
व्यग्यात्म्क रचना ....यथार्थ
बेहतरीन सृजन आदरणीया
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार, हिमकर श्याम जी !
बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र जी!
दुनियादारी सीखनी होगी
गर दुनिया में रहना है
"जैसे को तैसा" सीख सखी !
अब भावों में नहीं बहना है
बहुत सुंदर सुधा दी।
बहुत खूब ....... सुंदर प्रस्तुति यथार्थ ,सादर स्नेह सुधा जी
बहुत खूब 👌👌👌
सस्नेह आभार, कामिनी जी !
हार्दिक धन्यवाद, नीतू जी !
हार्दिक आभार डॉ.जेन्नी शबनम जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है...
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
आपका हृदयतल से आभार नितीश जी !
सच लिखा है ... और ये बात जितना जल्दी इंसान समझ सके उतना ही अच्छा होता है ... कई भार इंसान भाव में बह जाता है और अंत में पछतावा ही हाथ आता है ... रिश्तों, समाज और देश काल ... सभी तक ये बात सच होती है ... शुरुआत खुद से न हो पर जैसे को तैसा देने में गुरेज़ भी नहीं होना चाहिए ...
मन के भावों को बाखूबी और स्पष्ट लिखा है आपने ...
आपका हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी ! सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए....
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
दुनियादारी सीखनी होगी
गर दुनिया में रहना है
"जैसे को तैसा" सीख सखी !
अब भावों में नहीं बहना है..... बहुत सुंदर रचना सुधा जी
आज का कटु सत्य...बहुत सुंदर और सारगर्भित प्रस्तुति..
यही सच्चाई है। बहुत सुंदर। बधाई और शुभकामनाएं। सादर।
हृदयतल से आभार, संजय जी !
हार्दिक धन्यवाद,आपका atoot bandhan...
हार्दिक धन्यवाद, शर्मा जी !
सादर आभार...
हृदयतल से आभार एवं धन्यवाद विरेन्द्र जी !
उत्तम रचना, बधाई.
बहुत सुंदर रचना....आप को होली की शुभकामनाएं...
हार्दिक आभार, शबनम जी !
हृदयतल से आभार आपका चतुर्वेदी जी !
ब्लॉग पर आपका स्वागत है.....।
गन्ने सा मीठा क्या बनना
कोल्हू में निचोड़े जाओगे
सत्य और सार्थक बात
बेहतरीन लेखन। आपकी रचनाओं को पढ़कर कोई भाव में कैसे न बहे। शुभकामनाएं ।
हृदयतल से आभार,M Verma ji...
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत बहुत धन्यवाद, पुरुषोत्तम जी उत्साहवर्धन के लिए...
सादर आभार ।
एक सियासत देश में चलती
एक घरों में चलती है
भाषण में दम जिसका होता
सरकार उसी की बनती है
बहुत खूब प्रिय सुधा जी | यही बात सच है पर जो जैसा है वो वैसा ही रहता है | नेक को नेकी तो बद को बदी का आचरण शोभा देता है |
बुरों को बुराई से प्यार
हमें तो मानवता दरकार
कर्म शुभ हों ना जी दुखे किसी का
सबका अपने कर्मो पे अधिकार
छोड़ों व्यर्थ के जवाब सवाल
नेकी कर दो दरिया में डाल !!!! सस्नेह शुभकामनायें विकल मन की व्याकुलता जताती रचना के लिए
वाह रेणु जी इतनी सुन्दर काव्य पंक्तियों से विकल मन को सारगर्भित बात समझायी है आपने....
हृदयतल से धन्यवाद आपका।
सस्नेह आभार...
वाहह्हह... अति उत्तम सराहनीय सृजन...सुधा जी..क्या खूब लिखा है आपने अक्षरशः. सत्य वचन👌
बहुत बहुत धन्यवाद, श्वेता जी !
सस्नेह आभार...
दुनियादारी सीखनी होगी अगर दुनियां में रहना है तो
भाषण में दम होता है जिसके सरकार उसी की चलती है
बहुत सुंदर सारगरभित रचना
बहुत बहुत धन्यवाद, रितु जी !
सस्नेह आभार...
एक सियासत देश में चलती
एक घरों में चलती है
भाषण में दम जिसका होता
सरकार उसी की बनती है ... वाह! बहुत बड़ा सच लिखा आपने।
बहुत बहुत धन्यवाद, विश्वमोहन जी !
सादर आभार....
वाह वाह वाह वाह वाह 👏 👏 👏 बहुत बढ़िया. यथार्थ परोसा है आपने
बहुत बहुत धन्यवाद, सुधा जी !
सस्नेह आभार...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
वाह! बहुत खूब!!!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार संजय जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. विश्वमोहन जी!
दुनियादारी सीखनी ही पड़ती है । जो भावोंमें बहा उसे सब दरकिनार कर देते हैं । आज तो जैसे को तैसा करने का ज़माना है ।।सटीक और सार्थक रचना ।
जी .संगीता जी! जैसा को तैसा तो आना ही चाहिए ...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
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