आई है बरसात (रोला छंद)

अनुभूति पत्रिका में प्रकाशित रोला छंद आया सावन मास, झमाझम बरखा आई। रिमझिम पड़े फुहार, चली शीतल पुरवाई। भीनी सौंधी गंध, सनी माटी से आती। गिरती तुहिन फुहार, सभी के मन को भाती ।। गरजे नभ में मेघ, चमाचम बिजली चमके । झर- झर झरती बूँद, पात मुक्तामणि दमके । आई है बरसात, घिरे हैं बादल काले । बरस रहे दिन रात, भरें हैं सब नद नाले ।। रिमझिम पड़े फुहार, हवा चलती मतवाली । खिलने लगते फूल, महकती डाली डाली । आई है बरसात, घुमड़कर बादल आते । गिरि कानन में घूम, घूमकर जल बरसाते ।। बारिश की बौछार , सुहानी सबको लगती । रिमझिम पड़े फुहार, उमस से राहत मिलती । बहती मंद बयार , हुई खुश धरती रानी । सजी धजी है आज, पहनकर चूनर धानी ।। हार्दिक अभिनंदन आपका🙏 पढ़िए बरसात पर एक और रचना निम्न लिंक पर ● रिमझिम रिमझिम बरखा आई
बहुत खूबसूरत रचना है ....यही सच है !!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! मेरी रचना साझा करने हेतु ।
हटाएंहृदय स्पर्शी सृजन, सच माँ बहुत याद आ रही है।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
तहेदिल से धन्यवाद जवं आभार आ.कुसुम जी !
हटाएंमेरीमाँ की ही मर्म कंथा लिख दी आपने प्रिय सुधा जी।एक समय की वीरांगना सी माँ को इस असश्क्त रूप में देखने की पीड़ा बहुत असहनीय है।मेरे पास दो मायेँ हैं( माँ और सासु माँ)दोनो की कंचन काया को जर्जर होते देख बहुत उदास हो जाती हूँ पर समय के प्रहार से कौन बच पाया है।बहुत मर्मांतक अभिव्यक्ति,जो आँखें भिगो गयी।
जवाब देंहटाएंजी सही कहा आपने समय के प्रहार से कौन बच पाया है ।
हटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।
वृध्द होती माँ का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
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