आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए एक और रचना इसी ब्लॉग पर ● बच्चों के मन से
बहुत खूबसूरत रचना है ....यही सच है !!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी ! मेरी रचना साझा करने हेतु ।
हटाएंहृदय स्पर्शी सृजन, सच माँ बहुत याद आ रही है।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
तहेदिल से धन्यवाद जवं आभार आ.कुसुम जी !
हटाएंमेरीमाँ की ही मर्म कंथा लिख दी आपने प्रिय सुधा जी।एक समय की वीरांगना सी माँ को इस असश्क्त रूप में देखने की पीड़ा बहुत असहनीय है।मेरे पास दो मायेँ हैं( माँ और सासु माँ)दोनो की कंचन काया को जर्जर होते देख बहुत उदास हो जाती हूँ पर समय के प्रहार से कौन बच पाया है।बहुत मर्मांतक अभिव्यक्ति,जो आँखें भिगो गयी।
जवाब देंहटाएंजी सही कहा आपने समय के प्रहार से कौन बच पाया है ।
हटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।
वृध्द होती माँ का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है आपने, सुधा दी।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी !
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