बीती ताहि बिसार दे

चित्र
  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

"अब इसमें क्या अच्छा है ?...



cute question mark greeting with a smile


जो भी होता है अच्छे के लिए होता है
     जो हो गया अच्छा ही हुआ।
जो हो रहा है वह भी अच्छा ही हो रहा है। 
  जो होगा वह भी अच्छा ही होगा ।
    
        अच्छा ,  अच्छा ,  अच्छा !!!
    जीवन में सकारात्मक सोच रखेंगे  
         तो सब अच्छा होगा !!!
          
             मूलमंत्र माना इसे

और अपने मन में, सोच में , व्यवहार में
         भरने की कोशिश भी की।


परन्तु हर बार कुछ ऐसा हुआ अब तक,
         कि प्रश्न किया मन ने मुझसे ,
         कभी अजीब सा मुँह बिचकाकर,
           तो कभी कन्धे उचकाकर
       "भला अब इसमें क्या अच्छा है" ?

                    क्या करूँ ?  
     कैसे बहलाऊँ इस नादान मन को ? 
       
           बहलाने भी कहाँँ देता है ?
           जब भी कुछ कहना चाहूँ ,
           ये मुझसे पहले ही कहता है,

          बस -बस अब रहने भी दे ! 
                 बहुत सुन लिया ,
                   अब बस कर !
          
            हैं विपरीत परिस्थितियां
             समझौता इनसे करने भी दे !
             अच्छा है या  फिर बुरा है,
                      जो है सच 
               उसमें जीने भी दे !

   बस ! अपनी ये सकारात्मक सोच को 
          अपने पास ही रहने दे.!
          
        फिर अपना सा मुँह लिए
           चुप रह जाती हूँ मैं
        
       अब इसमें क्या अच्छा है ?
     इस प्रश्न में कहीं खो सी जाती हूँ 

और फिर शून्य में ताकती खुदबुदाती रह जाती हूँ
                प्रश्न पर निरुत्तर सी.... ।


                                     चित्र: साभार गूगल से....

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी !
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है...

      हटाएं
  2. 'क्या?', 'क्यूं?', 'कैसे?'
    ऐसे सवाल बच्चे पूछते हैं या फिर अक्ल के कच्चे पूछते हैं.
    आपके दिलो-दिमाग में गाँधी जी के तीनों बंदरों के गुण एक साथ समाहित होने पर आपको बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  3. सुधा दी,कई बार संकटों से तंग आकर इंसान ऐसा सोचता हैं कि इसमें अच्छा क्या हैं। लेकिन हर घटना के पीछे कुछ न कुछ अच्छाई छिपी होती हैं जो परेशान इंसान को दिखाई नहीं देती। परेशान दिल का हाल बखूबी व्यक्त किया हैं आपने।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी !
      सस्नेह आभार...

      हटाएं
  4. वाह बहुत सुंदर संकलन।सचमुच साकारात्मक सोंच रखने से सब अच्छा होता है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद सुजाता जी !
      सादर आभार..

      हटाएं
  5. वाह बेहतरीन सुधा जी इसमें भी अच्छा है कि सकारात्मकता की ऊर्जा काम करती है,जैसे सूर्य का प्रकाश ......

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद रितु जी !
      सस्नेह आभार...।

      हटाएं
  6. गजब सुधा जी सच बयां किया आपने कैसी असमंजस की स्थिति होती है ना।
    अब इसमें क्या अच्छा है वाहह्ह्

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बहुत आभार उर्मिला जी !
    ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं