रविवार, 26 नवंबर 2017

प्रेम

   
heart shape red colour tree ; red grass; blue sky



              प्रेम
  अपरिभाषित एहसास।
    'स्व' की तिलांजली...
       "मै" से मुक्ति !
   सर्वस्व समर्पण भाव
   निस्वार्थ,निश्छल
       तो प्रेम क्या ?
     बन्धन या मुक्ति  !
 प्रेम तो बस, शाश्वत भाव
    एक सुखद एहसास !!
            एहसास ?
    हाँ !  पर  होता है..
       दिल का दिल से
    आत्मिक /अलौकिक
       कहीं भी, कभी भी..
  बिन सोचे,  बिन समझे
 एक अनुभूति , अलग सी
            बहुत दूर..
    दिल के  बहुत  पास,
 टीस बनकर चुभ जाती है,
औऱ उस दर्द में आनन्द आता है,
       असीम आनन्द !
      और   चुभन   ?
 आँसू  बनकर बहते आँखों से
          बस फिर
        खो जाता मन
   उसी प्रेम में आजीवन
         और फिर
  प्रेम के पार, प्रेमी का संसार
        आत्मिक मिलन
  नहीं कोई सांसारिक बंधन
        बंद आँखों में
  पावन सा अपना मिलन
    अनोखा,अजीब सा,
  मनभावन, वह आलिंगन 
    जिसके साक्ष्य बनते
      सुदूर आसमां में
    सूरज ,चाँद ,सितारे 
         क्षितिज पर
  प्रेममय - धरा - आसमाँ
        आसीस देते 
अनुपम सौन्दर्य से प्रकृति करती
         प्रेम का प्रेम से
          अभिनन्दन।।


            चित्र : गूगल से साभार

16 टिप्‍पणियां:

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी मेरी पुरानी रचना को 'पाँच लिंको के आनंद ' मंच पर साझा करने हेतु।

Sweta sinha ने कहा…

प्रेम में निहित
मीठी या खारी अनुभूति
जीवन का स्वाद है
प्रेम में विरह और मिलन
सृष्टि का सृजन आबाद है।
--//--
अत्यंत सुंदर भावपूर्ण सृजन सुधा जी।
सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी!

Amrita Tanmay ने कहा…

अनुपम प्रेम गाथा।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

रेणु ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण रचना प्रिय सुधा जी | प्रेम वही सही अर्थों में प्रेम है,जहाँ अनुबंध और प्रतिबंध नहीं |एक पावन अनुभूति है प्रेम जो निश्चित रूप से दुनिया के समस्त विकारों से दूर है | प्रेम की सुंदर परिभाषा के लिए बधाई और शुभकामनाएं|

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय रेणु जी!

Kamini Sinha ने कहा…

प्रेम
अपरिभाषित एहसास।
" स्व" की तिलांजली...
"मै" से मुक्ति !
जहां मैं से मुक्ति मिलती है वहीं से प्रेम का विस्तार होता है। आध्यात्मिक भाव लिए बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति सुधा जी, दिल को छू गई आप की ये कृति,सादर नमन आपको 🙏

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी!

Anuradha chauhan ने कहा…

प्रेम
अपरिभाषित एहसास।
" स्व" की तिलांजली...
"मै" से मुक्ति !
सर्वस्व समर्पण भाव
बेहतरीन रचना सखी।

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद कामिनी जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।

मन की वीणा ने कहा…

प्रेम का प्रेम से अभिनन्दन।
बहुत सुंदर दिल को सुकून देती दुर्वा सी कोमल मुलायम रचना।
अहसास के परे होता है प्रेम का अहसास।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी !

रेणु ने कहा…

प्रेम के पार, प्रेमी का संसार
आत्मिक मिलन
नहीं कोई सांसारिक बंधन
बंद आँखों में
पावन सा अपना मिलन//अनोखा,अजीब सा,//मनभावन, वह आलिंगन
जिसके साक्ष्य बनते///सुदूर आसमां में//सूरज ,चाँद ,सितारे ////
बहुत ही सटीक परिभाशा दिव्य प्रेमानुभूति की।प्रेम बंधन में बंध कर समाप्त हो जाता है,तो वहीं उन्मुक्त रह खूब पनपता और मजबूत होता है एक बार फिर से ।आलौकिक आनंद से भरे प्रेम की संपूर्णता से साक्षात्कार कर बहुत अच्छा लगा प्रिय सुधा जी।हार्दिक बधाई और प्यार आपको।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रेणु जी !

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