मैथड - जैसे को तैसा
"माँ ! क्या सोच रही हो" ?
"कुछ नहीं बेटा ! बस यूँ ही"।
"कैसे बस यूँ ही ? आपने ही तो कहा न माँ कि आप मेरी बैस्ट फ्रेंड हैं, और मैं अपनी हर बात आपसे शेयर करूँ" !
"हाँ कहा था, तो" !...
"तो आप भी तो अपनी बातें मुझसे शेयर करो न ! मैं भी तो आपकी बैस्ट फ्रेंड हुई न..... हैं न माँ"!
"हाँ भई ! मेरी पक्की वाली सहेली है तू भी , और बताउँगी न तुझे अपनी सारी बातें....पहले थोड़ा बड़ी तो हो जा" ! मुस्कराते हुए माँ ने उसके गाल छुए।
"मैं बड़ी हो गयी हूँ , माँ ! आप बोलो न अपनी बात मुझसे ! मुझे सब समझ आता है"। हाथों को आपस में बाँधकर बड़ी बड़ी आँखें झपकाते हुए वह माँ के ठीक सामने आकर बोली ।
"अच्छा ! इतनी जल्दी बड़ी हो गयी" ! (माँ ने हँसकर पुचकारते हुए कहा )
"हाँ माँ ! अब बोलो भी ! उदास क्यों हो ? क्या हुआ" ? कहते हुए उसने अपने कोमल हाथों से माँ की ठुड्डी पकड़कर ऊपर उठाई ।
उसका हाथ अपने हाथ में लेकर माँ विचारमग्न सी अपनी ही धुन में बोली, "कुछ खास नहीं बेटा ! बस सोच रही थी कि मैं सबसे प्रेम से बोलती हूँ फिर भी कुछ लोग मेरा दिल दुखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते , कभी सीधे मुँह बात नहीं होती इनसे। जबकि मैं हर बार इनकी रुखाई को नजरअंदाज कर इनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करती हूँ फिर भी ना जाने क्यों"...
"माँ ! इसका मतलब आपने अपनी प्रॉब्लम्स को सही से सॉल्व नहीं किया"। बेटी बीच मे ही बोल पड़ी।
हैं ? कैसे ? (भँवे सिकोड़कर माँ ने पूछा)
"हाँ माँ ! जैसे मैंने एक दिन क्लास में मैथ्स का एक क्वेश्चन सॉल्व किया आंसर भी सही था , फिर भी टीचर ने मुझे रिपीट करने को कहा और उसके जैसे दो क्वेश्चन और भी दे दिए" !
"अच्छा ! क्यों ? तूने पूछा नहीं टीचर से कि उत्तर सही है तो प्रश्न को फिर से क्यों" ?
"पूछा मैंने, तो उन्होंने कहा , उसी मैथड से क्वेश्चन सॉल्व करो जो माँगा गया है, वरना सही आंसर होने पर भी क्वेश्चन रॉन्ग !! जब तक उसी मैथड से नहीं करोगे तब तक ऐसे ही कई क्वेश्चन रिपीट करो" ।
"फिर "?... माँ ने आश्चर्य से पूछा ।
"फिर मैंने उस मैथड को अच्छे से समझा और बहुत सारे क्वेश्चन सॉल्व कर डाले । माँ ! आप भी पहले मैथड समझ लो अच्छे से .... फिर उसी मैथड से सॉल्व करना अपनी प्रॉब्लम्स को" ।
"मैथड ! तरीका !...मतलब जैसे को तैसा ! ओह ! सही कहा बेटा मेरा भी मैथड ही रॉन्ग है, तभी"...
बेटी तो अपनी मासूमियत के साथ और भी बतियाती रही । पर माँ को जैसे उसका जबाब मिल गया । उसने आसमान की ओर देखा फिर आँखें बंद कर मन ही मन भगवान का शुक्रिया किया कि कैसे आज फिर मेरी ही बेटी को मेरा गुरू बनाकर मुझे सही सीख दे दी आपने।जब तक जैसे को तैसा तरीका नहीं अपनाउंगी तब तक ऐसी समस्याएं बार-बार बनती ही रहेंगी ,। लातों के भूत बातों से भला कब मानते हैं !
टिप्पणियाँ
हमने तो जब भी - 'जैसे को तैसा' मेथड इस्तेमाल किया है वह हमको भारी पड़ा है.
सुंदर शिक्षाप्रद लघुकथा सुधा जी।
सीख वाको दीजिए जाको सीख सुहाए,
सीख न दीजे वनरा बकुवा का घर उज्याड़ि
बहुत सुन्दर कथा ! सीख !