मिला कुण्डली ब्याहते
मिला कुण्डली ब्याहते, ग्रह गुण मेल आधार ।
अजनबी दो एक बन, बसे नया घर - बार ।
निकले दिन हफ्ते गये, गये मास फिर साल ।
कुछ के दिल मिल ही गये, कुछ का खस्ता हाल।
दिल मिल महकी जिंदगी, घर आँगन गुलजार ।
जोड़ी जो बेमेल सी, जीवन उनका भार ।
कुछ इकतरफा प्रेम से, सींचे निज संसार ।
साथी से मिलता नहीं, इक कतरा भी प्यार ।
कुछ को बिछड़े प्रेम का, गहराया उन्माद ।
जीवन आगे बढ़ रहा, ठहरे यादों साथ।
साथी में ढूँढ़े सदा, अपना वाला प्यार।
गुण उसके दिखते नहीं, करते व्यर्थ प्रहार ।
अनदेखा कर आज को, बीती का कर ध्यान ।
सुख समृद्धि विहीन ये, जीवन नरक समान ।
टिप्पणियाँ
गृहस्थ जीवन के सार तत्व का आकलन करता अत्यंत सुन्दर सृजन ॥
कुण्डली मिलाना, गृह मिलाना आदि सर्वथा अवैज्ञानिक है और पंडितों की धूर्त कमाई का साधन है.
आज के युग में अरेंज्ड मैरिज की भी कोई उपयोगिता नहीं रह गयी है.
लड़का-लड़की एक-दूसरे को पहले कुछ जानें, कुछ समझें, अपने दम पर घर-गृहस्थी चलाने लायक बनें, तभी उनकी शादी करने की बात होनी चाहिए.
सादर नमन 🙏🙏🙏🙏