मिला कुण्डली ब्याहते, ग्रह गुण मेल आधार ।
अजनबी दो एक बन, बसे नया घर - बार ।
निकले दिन हफ्ते गये, गये मास फिर साल ।
कुछ के दिल मिल ही गये, कुछ का खस्ता हाल।
दिल मिल महकी जिंदगी, घर आँगन गुलजार ।
जोड़ी जो बेमेल सी, जीवन उनका भार ।
कुछ इकतरफा प्रेम से, सींचे निज संसार ।
साथी से मिलता नहीं, इक कतरा भी प्यार ।
कुछ को बिछड़े प्रेम का, गहराया उन्माद ।
जीवन आगे बढ़ रहा, ठहरे यादों साथ।
साथी में ढूँढ़े सदा, अपना वाला प्यार।
गुण उसके दिखते नहीं, करते व्यर्थ प्रहार ।
अनदेखा कर आज को, बीती का कर ध्यान ।
सुख समृद्धि विहीन ये, जीवन नरक समान ।
10 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 18 सितंबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
गृहस्थ जीवन के सार तत्व का आकलन करता अत्यंत सुन्दर सृजन ॥
सहृदय आभार एवं धन्यवाद आपका मेरी रचना चयन करने के लिए।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना जी !
बहुत बढ़िया
वाह :)
जी आपने बहुत ही सुंदर तरीक़े से लेखनी के माध्यम से सत्य कहा है विचारों का मिलना जीवन में बहुत मायने रखता है ।
हार्दिक धन्यवाद एव आभार आ.ओंकार जी !
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जोशी जी !
जी, मधुलिका जी !अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।
एक टिप्पणी भेजें