श्राद्ध में करें तर्पण (मनहरण घनाक्षरी)

श्राद्ध में करें तर्पण, श्रद्धा मन से अर्पण, पितरों को याद कर, पूजन कराइये । ब्राह्मण करायें भोज, उन्नति मिलेगी रोज, दान, दक्षिणा, सम्मान, शीष भी नवाइये । पिण्डदान का विधान, पितृदेव हैं महान, बैतरणी करें पार गयाजी तो जाइये । तर्पण से होगी मुक्ति, श्राद्ध है पावन युक्ति, पितृलोक से उद्धार, स्वर्ग पहुँचाइये । पितृदेव हैं महान, श्राद्ध में हो पिण्डदान, जवा, तिल, कुश जल, अर्पण कराइये । श्राद्ध में जिमावे काग, श्रद्धा मन अनुराग, निभा सनातन रीत, पितर मनाइये । पितर आशीष मिले वंश खूब फूले फले , सुख समृद्धि संग, खुशियाँ भी पाइये । सेवा करें बृद्ध जन, बात सुने पूर्ण मन, विधि का विधान जान, रीतियाँ निभाइये । हार्दिक अभिनंदन🙏 पढ़िए एक और मनहरण घनाक्षरी छंद ● प्रभु फिर आइए
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी मेरी रचना पाँच लिंकों के आनंद मंच के लिए चयन करने हेतु ।
जवाब देंहटाएंमाँ होकर जाना माँ क्या होती है
जवाब देंहटाएंअद्धभुत अनुभूति का सुन्दर वर्णन
सादर आभार एवं धन्यवाद
हटाएं🙏🙏🙏🙏
वाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार एवं धन्यवाद।
हटाएं🙏🙏
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (११-०५-२०२३) को 'माँ क्या गई के घर से परिंदे चले गए'(अंक- ४६६२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए ।
हटाएंवाह सखी अंतर्मन को छू गई आपकी रचना, हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार एवं धन्यवाद सखी !
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमेरी माँ तो रूपये-पैसे देने के बजाय पूड़ी-सब्ज़ी देते हुए कहती थीं - रास्ते में उल्टा-सीधा ख़रीद कर मत खाइयो.
जवाब देंहटाएंये माँ भी न ...... बहुत भावपूर्ण लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंचंद लाइनों में कितनी भावनाएं समेट दी है आपने, दिल को छू गई❣️
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंमाँ तो माँ होती है .....।बहुत खूब सुधा जी ।
जवाब देंहटाएंममता के भाओं से ओतप्रोत रचना
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमाँ के वात्सल्य के आगे पद,प्रतिष्ठा धन सब छोटे पड़ जाते हैं.
जवाब देंहटाएंमाएँ ऐसी ही होती हैं, प्यारी लघुकथा
जवाब देंहटाएंमां के इस प्यार का कोई मोल नहीं
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