सोमवार, 19 दिसंबर 2022

मुस्कराया जब वो पाटल खिलखिलाकर

Rose flower


शर्द ठिठुरन, ओस, कोहरा सब भुलाकर

मुस्कराया जब वो पाटल खिलखिलाकर ।


शर्म से रवि लाल, छोड़ी शुभ्र चादर,

रश्मियां दौड़ी धरा , आलस भगाकर ।


छोड़ ओढ़न फिर धरावासी जो जागे,

शीतवाहक भागते तब दुम-दबाके ।

 

क्रुद्ध हारे शिशिर ने पाटल को देखा,

पूस पतझड़ी प्रवात, जम के फेंका ।


सिंहर कर भी संत सा वो मुस्कुराया,

अंक ले मारुत को वासित भी बनाया।


बिखरी पड़ी हर पंखुड़ी थी मुस्कराती,

ओस कण में घुल मधुर आसव बनाती ।


सत्व इसका सृष्टि को था बहुत भाया, 

हो प्रफुल्लित 'पुष्प का राजा' बनाया ।




9 टिप्‍पणियां:

Kamini Sinha ने कहा…

सत्व इसका सृष्टि को था बहुत भाया,

हो प्रफुल्लित 'पुष्प का राजा' बनाया ।

बहुत खूब, फुलों के राजा का इतना प्यारा वर्णन,मन मोह लिया आपने सुधा जी 🙏

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी !
आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।

Digvijay Agrawal ने कहा…

सर्द ठिठुरन, ओस, कोहरा सब भुलाकर
मुस्कराया जब वो पाटल खिलखिलाकर ।
सुंदर
सादर

Jyoti Dehliwal ने कहा…

फूलों के राजा का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है सुधा दी आपने।

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

वाह !
हमारी ठण्ड में कंपकंपी छूट रही है लेकिन फूलों का राजा कांपने के बजाय मुस्कुरा रहा है, खिलखिला रहा है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुंदर सृजन ,
प्रकृति हर मौसम में स्वयं को ढाल लेती है ।
हम मनुष्य ही हर तरह के मौसम को अपने अनुरूप बनाना चाहते हैं ।
वैसे बहुत सर्दी है भई ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सर्द मौसम. पुष्पों, मकरंदों के दिन ।
सवार इतनी सुंदर मोहक कविता मन मोह गई ।
लाजवाब शब्द विन्यास । बधाई सखी ।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

*सवार/उस पर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शरद के आगमन को बखूबी शब्दों में उढ़ेला है आपने .. हर छंद लाजवाब है .. ऋतु विशेष की और इशारा करता हुआ …

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