सच बड़ा तन्हा उपेक्षित, राह एकाकी चला,
टेरती शक्की निगाहें, मन में निज संशय पला ।
झूठ से लड़ता अभी तक, खुद को साबित कर रहा,
खुद ही दो हिस्से बँटा अब, मन से अपने लड़ रहा।
मन ये पूछे तू भला तो, क्यों न तेरे यार हैं ?
पैरवी तेरी करें जो, कौन कब तैयार हैं ?
क्या मिला सच बनके तुझको, साजिशों में दब रहा,
घोर कलयुग में समझ अब, तू कहीं ना फब रहा ।
क्यों कसैला और कड़वा, चाशनी कुछ घोल ले !
चापलूसी सीख थोड़ी, शब्द मीठे बोल ले !
ना कोई दुनिया में तेरा, अपने बेगाने हुए,
खून के रिश्ते भी देखो, ऐसे अनजाने हुए ।
सच तू सच में सच का अब तो, इतना आदी हो गया
देख तो सबकी नजर में, तू फसादी हो गया ।
हाँ फसादी ही सही पर सच कभी टलता नहीं,
जान ले मन ! मेरे आगे झूठ ये फलता नहीं ।
मेरे मन ! तेरे सवालों का बड़ा अचरज मुझे !
क्या करूँ इस चापलूसी से बड़ी नफरत मुझे !
पर मेरे मन ! तू ही मुझसे यूँ खफा हो जायेगा ।
फिर तेरा सच बोल किससे कैसे संबल पायेगा ?
वैसे झूठों और फरेबों ने मुझे मारा नहीं
हूँ परेशां और तन्हा, पर कभी हारा नहीं ।
हाँ मैं सच हूँ सच रहूँगा, चाहे एकाकी रहूँ ।
कटु हो चाहे हो कसैला, सच को बेबाकी कहूँ।
30 टिप्पणियां:
हाँ मैं सच हूँ सच रहूँगा, चाहे एकाकी रहूँ ।
कटु हो चाहे हो कसैला, सच को बेबाकी कहूँ।
सुधा दी,सच्चाई का एक बहुत बड़ा फायदा यह है कि उसे कोई बात याद नही रखनी पड़ती की किसको कब क्या बोला था। झूठ बोलने वालों को एक झूठ झुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-03-2022) को चर्चा मंच "कवि कुछ ऐसा करिये गान" (चर्चा-अंक 4378) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सही कहा आपने ज्योति जी, सच सरल सहज तो होता है पर इतनी सहजता और सरलता भी किसे रास आती है आजकल...इसीलिए तन्हा रह जाता है सच।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सुनो बंधु यह सार, बना कैसा भी पूठा ,
अंकुर होगा सत्य, नहीं फलता है झूठा ।।
बहुत सुंदर सृजन सुधा जी मन विभोर करता।
बहुत बहुत सुन्दर
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी ! अनमोल प्रतिक्रिया एवं रचना का सार मुकम्मल करते सुन्दर दोहे हेतु।
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. आलोक जी !
वाह!!सुधा जी ,बहुत खूब । सच की राह पर चलना एक तरह से जिंदगी को बहुत सुलझी हुई बना देती है ।
क्यों कसैला और कड़वा, चाशनी कुछ घोल ले !
चापलूसी सीख थोड़ी, शब्द मीठे बोल ले... वाह!क्या खूब कहा।
लाज़वाब सृजन।
सादर
मन से मन का संवाद
संबल बन देगा साथ
एकला चोलो रे
यही मंत्र आता है काम .
अभिनन्दन.
जी शुभा जी! अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार नुपुरं जी !
ना कोई दुनिया में तेरा, अपने बेगाने हुए,
खून के रिश्ते भी देखो, ऐसे अनजाने हुए ।….सुन्दर रचना
क्यों कसैला और कड़वा, चाशनी कुछ घोल ले !
चापलूसी सीख थोड़ी, शब्द मीठे बोल ले !
यदि ऐसा हुआ तो फिर सच कहाँ रहेगा ? ..... बेहतरीन अभिव्यक्ति ...
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार भारती जी!
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.उषा किरण जी !
जी, आ. संगीता जी! अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता जी !मेरी रचना को पाँच लिंको के आनंद में शामिल करने हेतु ।
ना कोई दुनिया में तेरा, अपने बेगाने हुए,
खून के रिश्ते भी देखो, ऐसे अनजाने हुए ।
–कारण ढूँढने पर कुछ सवाल बिना उत्तर के रह जाते हैं
बहुत सुन्दर सुधा जी,
सच को बेबाक़ी से कहना अच्छी बात है पर कबीर का हशर याद रहे.
वर्तमान समय के सच को उजागर करती बहुत अच्छी रचना
सादर
जी, अत्यंत आभार एवं सादर धन्यवाद आपका।
जी, सर ! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ. ज्योति जी !
सच तू सच में सच का अब तो, इतना आदी हो गया
देख तो सबकी नजर में, तू फसादी हो गया ।
क्यों कसैला और कड़वा, चाशनी कुछ घोल ले !
चापलूसी सीख थोड़ी, शब्द मीठे बोल ले !
जितना गज़ब लिखा है, उतना ही सरल सहज लिखा है सुधाजी। याद रह जाएगी आपकी यह कविता।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी !
हाँ मैं सच हूँ सच रहूँगा, चाहे एकाकी रहूँ ।
कटु हो चाहे हो कसैला, सच को बेबाकी कहूँ।
,, बहुत ही सार्थक बात कही आपने सुधा जो ।
जीवन में अनेक क्षण ऐसे आते हैं, जब सच्चाई का हाथ थामने पर बहुत ही गतिरोधों का सामना करना पड़ता है,परंतु वही एक सच्चा इंसान है जो हर विषम परिस्थिति का सामना करते हुए इन परिस्थितियों से उबर जाए ।
आपकी रचना बहुत ही प्रेरक है ।
बधाई सखी ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी !
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