सोमवार, 19 जुलाई 2021

नोबची


Portulaca ,nobchi


"ये क्या है मम्मा ! आजकल आप हमसे भी ज्यादा समय अपने पौधों को देते हो"...? शिकायती लहजे में पलक और पल्लवी ने माँ से सवाल किया।

"हाँ बेटा !  ये पौधे हैं ही इतने प्यारे...अगर तुम भी इन पर जरा सा ध्यान दोगे न , तो मोबाइल टीवी छोड़कर मेरी तरह इन्हीं के साथ समय बिताना पसन्द करोगे,  आओ मैं तुम्हें इनसे मिलवाती हूँ"....माँ उनका ध्यान खींचते हुए बोली।

दोनों  पास आये तो माँ ने उन्हें गमले में उगे पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा  "देखो !  ये है नोबची"

नोबची! ये कैसा नाम है ?...दोनों ने आँख मुँह सिकोड़ते हुए एक साथ पूछा।

"हाँ नोबची! और जानते हो इसे नोबची क्यों कहते है" ?

"क्यों कहते हैं" ?   उन्होंने पूछा तो माँ बोली, "बेटा ! क्योंकि ठीक नौ बजे सुबह ये पौधा अपने फूल खिलाता है"।

हैं !!.नौ बजे !!...हमें भी देखना है।  (दोनों बड़े आश्चर्यचकित एवं उत्साहित थे) और अगली सुबह समय से पहले ही दोनों बच्चे नोबची पर नजर गड़ाए खड़े हो गये।

बस नौ बजने ही वाले है दीदी ! 

हाँ  पलक ! और देख  नोबची भी खिलने लगा है !!!...

नोबची की खिलखिलाहट के साथ अपनी बेटियों के खिले चेहरे देख माँ की खुशी का ठिकाना न रहा ।

उसने मन ही मन संकल्प लिया कि इसी तरह मैं अपनी बच्चियों को प्रकृति से जोड़ने की पूरी कोशिश करुंगी।




30 टिप्‍पणियां:

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुन्दर लेख

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

बहुत सुन्दर... बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का यह अच्छा तरीका है....

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

वाह,कितनी प्यारी और मासूम बाल कथा,बिल्कुल आपके प्यारे बच्चों की तरह,बहुत शुभकामनाएँ बच्चों और नोबची दोनों के लिए।

Udan Tashtari ने कहा…

प्रकृति से जोड़ने के विचार के लिए साधुवाद

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर..प्रकृति से बच्चों को जोड़ने का बहुत सुन्दर और रोचक तरीका ।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद नैनवाल जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार समीर जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद मीनाजी!
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर सुधा जी , बच्चों के कोमल मन को कैसे प्रकृति से जोडे ,कैसे रुचिकर कदम उन्हें ऐसा करने को प्रेरित करते हैं ,ये सब आपने छोटी सी कहानी में कह दिया।
अभिनव प्रयोग।

रेणु ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रिय सुधा जी। इतना ही आसान है बच्चों को प्रकृति से जोड़ना! एक सरल संकल्प जिसकी पूर्ति कोई मुश्किल नहीं। ये हमारा पुनीत दायित्व है बच्चो के माध्यम से प्रकृति का संरक्षण.! प्रेरक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार रेणु जी!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, सुन्दर और रोचक। गुणानुरूप नामकरण।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुंदर बाल कथा । प्रकृति के संरक्षण के लिए उत्तम प्रयास पर आधारित लघु कथा सराहनीय है । बच्चों में प्रकृति के लिए प्रेम उत्पन्न करने के लिए स्वयं जुड़ना होगा ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ. प्रवीण जी!
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद आ.संगीता जी!
सादर आभार।

Anupama Tripathi ने कहा…

सन्देशप्रद और सुन्दर लघु कथा!!

Vocal Baba ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति। बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं है। बधाई आपको। सादर।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनुपमा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, अत्यंत आभार एवं धन्यवाद जी!

विश्वमोहन ने कहा…

बहुत सुंदर। पर्यावरण और प्रकृति से इंसान को जुड़ने का संदेश देती रचना।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आ.विश्वमोहन जी!

Subodh Sinha ने कहा…

बहुत ही सहज-सुगम पर संदेशपरक घटना/कहानी .. इसी को कहीं-कहीं लोकभाषा में नौबजिया भी कहते हैं .. शायद ...

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सही कहा आपने...बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी , उस दिन लिख ना पायी -- हमारे यहाँ हम इस फूल को गुलदुपहरी के नाम से जानते हैं |

Sudha Devrani ने कहा…

गुलदुपहरी!सच में दोपहर तक ही खिला दिखता है ये साँझ होते होते मुरझाने लगता है। नोबची, गुलदुपहरी, नौबजिया मैंने भी अभी ही जाना इसको...और उगाने में भी कितना आसान है कहीं
से भी कैसे भी तोड़कर लगा लो जड़ पकड़ लेता है।
बहुत बहुत आभार रेणु जी पुनः आकर इसका नाम बताने हेतु।

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