मंगलवार, 6 अप्रैल 2021

तमाशा देखो दाना फेंको

 

Pigeon

सुबह सुबह सीमा ने हमेशा की तरह छत पर चिड़ियों के लिए दाना डाला और वहीं कोने में आसन बिछाकर योग करने बैठी तो देखा कि एक कबूतर बाकी कबूतरों को दाने के आस-पास भी नहीं फटकने दे रहा ....

कुछ कबूतर उससे दाना लेने की फिराक में लड़ रहे हैं तो कुछ आकर सीमा के आसन के इर्दगिर्द गुटरगूँ करते हुए घूम रहे हैं मानों उस कबूतर की शिकायत करके अपने लिए अलग दाना-पानी माँग रहे हों.....।        

सीमा को उन पर दया आयी और लड़ने वाले कबूतर पर गुस्सा.......।                                                            जी चाहा कि लड़ाकू कबूतर को पकड़कर खूब खरी-खटी सुनाये कि हम मनुष्यों का फेंका दाना खा-खाकर आखिर तुममें भी स्वार्थ और बैमनस्य की भावना आ ही गयी ।

 अरे ! प्यार से रहो न जैसा हमेशा रहते आये हो.....    क्यों तुम भी हम मनुष्यों की तरह तेरा मेरा करने लगे...?

पर सोचा कि इन्हें कहाँ कुछ समझ आयेगा हमें भी कौन सा आता है....।

उसने उठकर और दाना छत के दूसरे कोने पर बिखेर दिया....।

खुश थी यह देखकर कि अब वे आपस में न लड़कर दोनों कोनों में दाना चुगने में व्यस्त थे,उसने देखा कि  एक कोने का दाना खत्म हुआ तो सभी  दूसरे कोने में साथ मिलकर दाना चुगने लगे...

तभी ख्याल आया , अरे! वो लड़ाकू कबूतर कहाँ गया होगा? अब नहीं लड़ रहा !..                                  क्या अकल ठिकाने आ गयी होगी उसकी ?

पर वो लड़ने वाला कबूतर था कौन ?.....              शायद ये...अरे नहीं,  वह तो काफी मोटा था...तो शायद वो...।

वह जिस पर भी शक करती तो देखती कि वह तो सबसे बड़े प्यार से गुटरगूँ कर रहा है...।

फिर वह दुश्मन कबूतर था कौन...? सोच में पड़ गयी...

तभी उसने जो सुना ,  तो सुनती ही रह गयी ! एकदम अवाक होकर !!!....

जानते हो है क्या !......?

कबूतर आपस में बतिया रहे थे "अरे आज तो खूब दाना मिल गया, तूने सच ही कहा था मेरे भाई ! कि ये मनुष्य बड़े तमाशबीन होते हैं थोड़ा लड़ने का नाटक क्या किया कि इतना सारा दाना मिल गया" !....                        "तो सही है न...... 'तमाशा देखो दाना फेंको'          समवेत स्वर में कहकर सारे कबूतर खिलखिला कर हँसे और फड़फड़ाकर उड़ गये।


49 टिप्‍पणियां:

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी,मनुष्य और कबूतरों के माध्यम से सुंदर सीख देती रचना।

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

आज के परिपेक्ष पर खरा उतरता चित्रण।

Ritu asooja rishikesh ने कहा…

वाह सुधा जी बेहतरीन शिक्षाप्रद प्रस्तुति

मन की वीणा ने कहा…

वाह सुधा जी बहुत पसंद आई आपकी लघुकथा।
सच लगता है मानव छूत के रूप में जानवरों, पक्षियों और प्रकृति को अपनी कूटनीति,ईर्ष्या, और अनिती की बिमारियों की चपेट में ले रहा है।
अभिनव कल्पना सुंदर कथा।

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

मनुष्यों के साथ रहकर कबूतरों ने भी काफी कुछ सीख लिया.. मानवीय स्वभाव को उकेरती सुन्दर लघु-कथा.....

Anuradha chauhan ने कहा…

सुंदर सीख देती अति सुंदर प्रस्तुति 👌👌👌

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आलोक जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार एवं धन्यवाद ज्योति जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार भाई!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में सम्मिलित करने हेतु।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार रितु जी !

Sudha Devrani ने कहा…

जी, कुसुम जी सही कहा आपने...
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार नैनवाल जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार एवं धन्यवाद सखी!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी कहानी कह रही कि कबूतर भी मनुष्य से ज्यादा होशियार । यानि मनुष्यों की पृवृति को कितना सही समझ उन्होंने । ज़बरदस्त कटाक्ष करती बढ़िया लघुकथा ।

शुभा ने कहा…

वाह!सुधा जी ,बहुत खूबसूरत सृजन । लघुकथा बहुत कुछ सिखा गई ।

MANOJ KAYAL ने कहा…

मनुष्य बड़े तमाशबीन होते हैं 

सुन्दर चित्रण

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

अब इसे लघुकथा कहूं या व्यंग्य । पर जी भी है, मनोरंजक और प्रभावी है। अभिनंदन सुधा जी ।

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी , कबूतरों और मानव के माध्यम से सार्थक रचना लिखी आपने | वास्तव में अगर कबूतर बोल पाते तो उनके उदगार यही होते | पशु पक्षी भी इंसान की फितरत पहचानने लगे हैं | भावपूर्ण लघुकथा के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|

Preeti Mishra ने कहा…

बेहतरीन व्यंग

उर्मिला सिंह ने कहा…

अति सुन्दर व्यंगात्मक रचना।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

इंसान को गर्दभराज बनाते कबूतर ! बढ़िया विश्लेषण

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ. संगीता जी!सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद शुभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार जितेंद्र जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद सखी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रीति जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. उर्मिला जी!

विश्वमोहन ने कहा…

वाह! सरस, सजीव और शिक्षाप्रद कहानी।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ. विश्वमोहन जी!
सादर आभार।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

आज के समय का यही सच है. दाना (पैसा) फेंको तमाशा देखो. इस लघुकथा के माध्यम से मनुष्य का सच उजाकर किया आपने. बहुत खूब.

Kamini Sinha ने कहा…

"अरे आज तो खूब दाना मिल गया, तूने सच ही कहा था मेरे भाई ! कि ये मनुष्य बड़े तमाशबीन होते हैं थोड़ा लड़ने का नाटक क्या किया कि इतना सारा दाना मिल गया" !....
सचमुच ये मनुष्य नाम का प्राणी अजीब ही है ,सही ही कहा कबूतरों ने बस, फर्क ये है कि-पक्षी तो फिर भी अपना पेट भरने को लड़ने का नाटक किये पर मनुष्य तो सिर्फ मजे लेने के लिए ये काम करते हैं। बहुत ही सुंदर सीख देती लघु कथा। सादर नमन सुधा जी

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद जेन्नी शबनम जी!सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, कामिनी जी!सही कहा आपने...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद आ. संगीता जी! मेरी रचना को प्रतिष्ठित मंच पाँच लिंकों के आनंद पर स्थान देने हेतु।

ज्योति सिंह ने कहा…

बहुत ही सुंदर लघु कथा, इंसान की मनोदशा को दर्शाती हुई नजर आई, हार्दिक शुभकामनाएं, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद ज्योति जी!आपको भी नवसंवत्सर की अनंत शुभकामनाएं।

Amit Gaur ने कहा…

आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

बहुत खूबसूरत लेखन...। बधाई आपको

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

इशारों में आपने बहुत बड़ी बात कही है. सुन्दर।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... इंसान की प्रवृति तो लगता है अब सबको समझ आने लगी है ...
फिर पंछी तो वैसे भी पढ़ लेते हैं कितना कुछ ...
कल्पना की उड़ान को नमन है आपकी ... एक प्रसंग को बाखूबी सोच में बदल डाला ...

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बहुत सुंदर,इंसान को पंक्षी पढ़ लेते है पर इंसान जान बूझकर
भी पक्षी की तरह नहीं सोचना चाहता । बहुत सुंदर भाव भरी रचना ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अमित जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार संदीप जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ओंकारनाथ जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार जिज्ञासा जी !

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...