अधजली मोमबत्तियां

Candle

 सुबह के नौ या दस बजे होंगे ,पूरी सोसायटी में दीपोत्सव की चहल पहल है ।  पटाखों पर लगे प्रतिबंध के बावजूद भी जगह जगह बिखरे बम-पटाखों के अवशेष साक्ष्य हैं इस बात के कि कितने जोर-शोर से मनाई गयी यहाँ दीपावली । आज सफाई कर्मी भी घर-घर से दीपावली बख्शीश लेते हुए पूरी लगन से ऐसे सफाई में लगे हैं मानो पटाखों के सबूत मिटा रहे हों...

स्कूल की छुट्टी के कारण सोसायटी के बच्चे पार्क में धमा-चौकड़ी मचा रहे हैं । कुछ बच्चे ढ़िस्क्यांऊ-ढ़िस्क्यांऊ करते हुये खिलौना गन से पटाखे छुड़ा रहे हैं ,तो कुछ अपने-अपने मन पसंद खेलों में व्यस्त हैं ।

 एक ऐसी टोली भी है यहाँ बच्चों की,जो अब अपने को बच्चा नहीं मानते; बारह - तेरह साल के ये बच्चे हर वक्त अपने को बड़ा साबित करने के लिए बेताब रहते हैं । ये सभी बैंच के इर्द-गिर्द अपने अनोखे अंदाज में खड़े होकर बीती रात पटाखों के साथ की गयी कारस्तानियां बारी -बारी से बयां कर रहे हैं ।

 जब रोहन ने हाथ का इशारा करते हुए पूरे जोश में बताया कि उसका रॉकेट सामने वाली बिल्डिंग की छत से टकराते - टकराते बचा तो उसके इशारे के साथ ही सबकी नजरें सामने वाली छत तक जाकर वापस आई , परन्तु मन्टू की नजर  वहीं कहीं अटक गयी, सबका ध्यान अपनी तरफ खींचने के भरसक प्रयास के साथ मन्टू बोला ; “देखो दोस्तों ! वहाँ उस छत पर कोई है!” पहले तो सबने लापरवाही से लिया ,परन्तु मन्टू के जोर देने पर सभी सतर्क ही नहीं हुए बल्कि पूरे जासूस बनकर जासूसी में जुट गये।

थोड़ी ही देर में बच्चों की इस पूरी टोली ने एकदम पुलिसिया अंदाज में एक लड़की को सोसायटी के सेक्रेटरी (एम एस चौहान) के सामने पेश किया । बड़े ही जोश के साथ विक्की बोला ; “अंकल ! ये लड़की चोर है, हम इसे सामने वाली बिल्डिंग की छत से पकड़कर लाये हैं ! ना जाने क्या-क्या भर रही थी वहाँ से अपने झोले में.......हमें देखकर भागने ही वाली थी ,पर हम सबने इसे घेर कर पकड़ लिया"।  सबने बड़े गर्व से हामी भरी ।

सिर पर लाल रिबन से बंधी दो चोटी ,साँवली सी शक्ल सूरत,मैली-कुचैली सी फ्रॉक पहने ये बच्ची सोसायटी की तो नहीं लग रही । फिर ये है कौन? यहाँ क्या कर रही है?कहीं सचमुच.........(सोचकर सेक्रेटरी जी का भी माथा ठनक गया) ।

कड़क आवाज में लड़की से बोले;”कौन हो तुम ?

यहाँ क्या कर रही हो ?तुम्हारे साथ और कौन है?”

लड़की सुबकते हुए पीछे हटकर दीवार से जा लगी, उसने कन्धे में लटके झोले को हाथ से कसकर खुद पर ऐसे चिपका रखा था जैसे उसमें रखा बेशकीमती सामान कोई छीन न ले....दूसरे हाथ से वह चोटी पर लगा रिबन मुँह में डालकर दाँतों से नोंचने लगी....

तभी आयुष उसे घुड़कते हुये बोला,”ऐ! बता दे वरना सेक्रेटरी अंकल पुलिस बुला देंगे,हाँ !” 

वह सिसकते हुये सेक्रेटरी साहब की तरफ मुड़कर कंपकंपाती आवाज में बोली ; “मैं .....मैं.....मैं कोई चोर नाहिं साहिब....मैं ना की चोरी,साहिब! ये झूठ बोलत हैं...मैं चोरी ना की” कहते हुये वह जोर- जोर से रोने लगी .....

“फिर तुम यहाँ क्या कर रही हो ? किसके साथ आई हो यहाँ”?... पूछने पर उसने डरकर हकलाते हुए बताया कि उसकी माँ यहीं बर्मा साहिब के घर पर काम करती है । सेक्रेटरी साहब के कहने पर रोहन उसकी माँ को बुलाने गया ।खबर पूरी सोसायटी में आग की तरह फैल गयी लोग अपना काम - काज छोड़ सोसायटी ऑफिस में इकट्ठा होकर खुशर-फुशर करने लगे....... 

इधर रोहन ने बर्मा निवास जाकर मिसेज बर्मा को सारा वृतान्त बढ़ा-चढ़ा कर सुनाया तो वे भी सकते में आ गयीं 

लछमी ! ओ लछमी ! ( मिसेज बर्मा ने सख्ती और नाराजगी के साथ कामवाली को आवाज दी तो “जी सेठानी जी !” कहते हुये वह अपनी धोती के पल्लू पर हाथ पौंछती हुई हड़बड़ाकर बाहर आई , रोहन की तरफ इशारा करते हुए मिसेज बर्मा बोली; “रोहन बता रहा है कि तुम्हारी बेटी सोसायटी में चोरी करते हुये पकड़ी गयी!....ये क्या है लछमी ?... तुम्हारी बेटी भी यहाँ आई है तुम्हारे साथ ?.... चोरी ?!....

प्रश्नभरी नजरों से माथे पर सिकन के साथ मिसेज बर्मा ने लछमी से एक साथ कई सवाल कर डाले....

नाहिं, सेठानी जी ! हमरि बिटिया इहाँ नाहिं है। वो तो वहीं हमरे छप्पर पर भाई-बहन सम्भाले है ......

बड़े विश्वास के साथ निश्चिंत होते हुए लछमी ने कहा ।

तभी रोहन की व्यंग मिश्रित हंसी  ने उसे मानो आहत ही कर दिया, दोनों हाथ हिलाते हुए विश्वास दिलाने की कोशिश में माथे पर बल देते हुए वह फिर बोली ; चोर!!! हम गरीब हैं पर चोर नाहिं सेठानी जी !(आत्मसम्मान पर लगी चोट के दर्द से लछमी जैसे अंदर से तिलमिला उठी)

तो रोहन खीझते हुये बोला ; “मैं भी कोई झूठ नहीं बोल रहा ,यकीन नहीं तो आकर देख लो ,वैसे भी सेक्रेटरी अंकल ने बुलाया है “(उसने मिसेज बर्मा की ओर देखते हुए कहा)

लछमी कुछ कहने को थी तभी मिसेज बर्मा अपनी साड़ी वगैरह सुव्यवस्थित करते हुए बोली ; चलो वहीं जाकर देखते हैं ।

जब दोनों सोसायटी ऑफिस पहुंचे तो माँ को सामने देख लड़की रोते हुए माँ की कमर से जा लगी । असमंजस में पड़ी माँ ने अपने पल्लू से उसका सिर ढ़क दिया,कई प्रश्न उसकी आँखों में तैर रहे थे, तिस पर चोरी की बदनामी....वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे,रोती हुई बेटी को सम्भाले या इस सब के लिए डाँटे-फटकारे ।

आसपास खड़े लोग बातें बनाने लगे, कोई कहता ये छोटे लोग ऐसे ही होते हैं,माँ घर पर काम कर रही है बेटी को चोरी पे लगा दिया ,कोई कुछ ,कोई कुछ । सुनकर लछमी शर्म से गड़ी जा रही थी तभी मिसेज बर्मा पूछी ; लछमी ये तेरी ही बेटी है न ? सचमुच चोरी की है इसने? बता ?....

बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुड़ाकर अपने आँसू पोंछते हुए लछमी बोली; "पता नी सेठानी जी ! अभी पूछती हूँ"।

इतने में आयुष लड़की के हाथ से झोला छीनते हुये बोला ; पूछना क्या है देख लो सभी इस झोले में !!....(झोले का सामान जमीन में उलटते हुये )  

ये देखो ! ये रहा चोरी का माल......! 

झोले से जो सामान गिरते ही सब की बोलती बन्द हो गयी, अजीब सी खामोशी पसर गई कुछ पल के लिए वहाँ पर । 

तभी सोसायटी की छोटी सी लड़की बिन्नी अपनी माँ का हाथ हिलाते हुए आँखें सिकोड़कर बड़ी मासूमियत से बोली; “ये क्या!! मोमबत्ती ! अधजली मोमबत्तियों की चोरी ? 

मम्मा!ये भी कोई चोरी होती है?

बिन्नी के ऐसे पूछने पर सब की नजरें पश्चाताप से झुक गयी, बच्चों की वह जासूस टोली भी अब अपना सिर खुजलाते नजर आ रही थी......

फिर भी सभी की आँखों में जिज्ञासा थी,कि आखिर ये लड़की अधजली मोमबत्तियाँ क्यों बटोर रही थी वो भी यहाँ आकर ?

ये सब देखकर लछमी का चेहरा तमतमा उठा, बेटी को अपने से अलग कर जमीन में पड़ा झोला उठाकर झाड़ते हुये वह उसकी तरफ बड़ी-बड़ी आँखें दिखाते हुए दबी 

आवाज में बोली; “काहे की तू ये सब ? बता ?... और ये मोमबत्ती ! काहे ली तू”?...

परेशान होकर लछमी ने अपना माथा ठोक लिया...

लड़की अपनी फ्रॉक के फटे हुये हिस्से को(जो उसने पहले झोले से छिपा रखा था)

अब अपनी मुट्ठी के अन्दर छिपाने की नाकाम कोशिश करते हुए माँ के करीब आकर सिसकते हुए बोली; “हमका माफी दे दो माँ!.....हमका रात को पढ़ना है, बत्ती चाहिए....

सेठानी तो नौ बजे लैट बुझा देवे। मोमबत्ती खरीदी तो तू डाँटी कि खरच बढेगा, 10 रुपै रोज में 300 रुपै खरच महीने का....दिन में भाई-बहिन देखूँ तो पढ़ाई छूट जावे....कल रात सेठानी को छत पर मोमबत्ती जलाते देखी थी मैं .....बार-बार जलायी तो भी तेज हवा से वह बुझती रही , सुबह कचड़े में फैंकी सेठानी तो मैं उठा दी, सोची इहाँ भी होंगी 

तो दौड़कर ला दूँगी .... कहते हुए वह माँ से चिपक कर वह रोने लगी ।माँ की आँखों से भी आँसू बहने लगे......

माँ - बेटी की बात सुनकर सभी बहुत दुखी हुये, पश्चाताप उनके चेहरे से साफ झलक रहा था , और मन में थी असीम सहानुभूति ।

                      

                         चित्र साभार गूगल से....


टिप्पणियाँ

  1. मार्मिक कहानी. फटेहालों पर बिना जाने समझे यूँ ही इल्जाम लग जाते हैं. ऐसा अक्सर देखा है.

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    1. जी शबनम जी!अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 19
    नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद आ. यशोदा जी!सांध्य दैनिक मुखरित मौन के मंच पर मेरी रचना साझा करने हेतु।
      सादर आभार।

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  3. बहुत ही मार्मिक कहानी, सुधा दी। सच में गरीब को संपन्न लोग जल्द ही चोर मान लेते है!

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  4. बहुत ही हृदयस्पर्शी कहानी ।

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  5. बहुत सुंदर मर्मस्पर्शी रचना

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  6. बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना। जो चीज़ हमारे लिए किसी काम की नहीं होती वह किसी न किसी के काम की जरूर होती है।

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  7. ह्रदय को भीतर तक छू लेने वाली कहानी | अपने समाज का बिलकुल सही चित्रण किया है आपने |बहुत सराहनीय |

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  8. हार्दिक धन्यवाद आ. विश्वमोहन जी!

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  9. उत्तर
    1. अत्यंत आभार एवं धन्यवाद,आपका।
      ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  10. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२१-११-२०२०) को 'प्रारब्ध और पुरुषार्थ'(चर्चा अंक- ३८९८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. तहेदिल से धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने हेतु।
      सस्नेह आभार।

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  11. उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.प्रतिभा जी!

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  12. हृदयस्पर्शी कहानी, वास्तविकताओं के परतों को खोलती हुई, श्रेणी भेद या वर्ग भेद की सच्चाई को उजागर करती है, सामाजिक दर्पण का प्रकृत परावर्तन करती है - - नमन सह।

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. आँखों के आगे कहानी के पात्र साकार हो उठे..मर्मस्पर्शी कहानी । जीवंत सृजन ।

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    2. सहृदय धन्यवाद एवं आभार मीना जी!

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    3. हार्दिक आभार आ. सधु जी!

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  14. मर्म को भेद गये एक मासूम बच्ची के उद्गार ,
    बहुत हृदय स्पर्शी सत्य है ये कि गरीब को बेबस समझ उसकी किसी भी हरकत पर इल्ज़ाम लगा दिया जाता है।
    बहुत सार्थ सुंदर।

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    1. सहृदय धन्यवाद आ. कुसुम जी!
      सस्नेह आभार।

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  15. प्रिय सुधा, यह मर्मस्पर्शी कहानी बहुत दिन पहले ही पढ़ ली थी पर तब लिख नहीं पाई। कहानी सच का आईना दिखाती है।

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद आ. मीना जी!

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  16. मर्म को छूटी है ये कहानी ... प्रतीक के माध्यम से समाज की यंत्रणा को बाहूबी लिखा है आपने ...
    मन को छू रही है ये कहानी ...

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    उत्तर
    1. तहेदिल से धन्यवाद नासवा जी सराहनासम्पन प्रतिक्रिया हेतु।
      सादर आभार।

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