शनिवार, 27 जून 2020

एक चिट्ठी से कोर्ट मैरिज तक...

love story : Form love letters to marriage

                       चित्र, साभार गूगल से...

ऑण्टी! आपका बेटा शिवा रोज मेरे पीछे मेरे स्कूल तक क्यों आता है? जबकि वो तो सरकारी स्कूल में पढ़ता है न,  और आपके पड़ोस में रहने वाली दीदीयाँ शिवा का नाम लेकर मुझे क्यों चिढ़ाती है ?
आप शिवा को समझाना न ऑण्टी!  कि उधर से न आया करे। घर पर आयी मम्मी की सहेली से ग्यारह वर्षीय भोली सी सलोनी बोली तो दोनों सखियाँ ओहो! कहकर हँसने लगी...।

कुछ दिनों बाद दीपावली के पर्व पर मम्मी ने सलोनी को शिवा के घर मिठाई देने भेजा। सभी बड़ों को अभिवादन कर वह शिवा से बोली"तुमने ऑण्टी की बात मानी और उसके बाद मेरे पीछे नहीं आये इसके लिए थैंक्यू!
पंद्रह वर्षीय शिवा भी मुस्कुराते हुए हाथ आगे बढ़ाकर बोला,"फ्रेण्ड्स"?
"फ्रेण्ड्स" कहकर सलोनी ने भी अपना हाथ आगे बढाया तो शिवा ने तुरन्त अपनी जेब से फोल्ड किया कागज उसके हाथ में थमाते हुए उसके कान में धीरे से कहा, "पढ़कर इसका जबाब जरूर देना, मैं इंतजार करूंगा"।
"क्या है ये" सलोनी ने आश्चर्य से पूछा तो शिवा ने होंठों पर उंगली रखते हुए "श्श्श..." कहकर उसे चुप रहने का संकेत किया ।
कागज मुट्ठी में लेकर वह घर आयी और बड़े भोलेपन से सबके सामने ही उसे खोलकर पढ़ने का प्रयत्न करने लगी।
"प्रि य सलोनी तुम मुझे ब हु त अ च छी अच्छी...
ओहो!ये शिवा भी न... पूरा हिन्दी में लिखा है... मैं इतनी मुश्किल हिंदी कैसे पढ़ूँ....भैया से पढाती हूँ"और अपने बड़े भाई दीपक को कागज थमाकर बोली "भैया!  शिवा ने इसका ऑन्सर माँगा है पर ये हिन्दी में है, आप तो जानते हो न मेरी हिन्दी कितनी वीक है ,पढ़कर बताओ न, क्या है इसमें" ?..   कहकर उसके बगल में बैठ गयी ।
दीपक मन ही मन चिट्ठी पढ़ी तो पढते-पढ़ते उसकी भौंहें तन  गयी , चिट्ठी समाप्त कर उसे झिड़कते हुए बोला "सलोनी तू कभी भी शिवा से नहीं मिलेगी ...ठीक है...।

सलोनी बोली, "पर... भैया क्यों ?  आज ही तो हमने दोस्ती की है" ...
सुनते ही दीपक ने अपने बैग से लकड़ी का स्केल निकालकर उस पर दे मारा , क्या है भैया ? ...
मम्म्म्मी!!!.... कहते हुए वह भागकर मम्मी से लिपटकर रोने लगी।  दोनों की शिकायत सुनकर मम्मी बोली, "देख सलोनी दीपक तेरा बड़ा भाई है, तेरा भला चाहता है,तुझे उसका कहना मानना चाहिए"

पर मम्मी मैंने किया क्या है?..... "चुप कर...बड़ों के मुँह नहीं लगते , जा! जाकर सारी तैयारियां देख"!
कहकर मम्मी अपने कामों में व्यस्त हो गयी।

प्रश्नों की झड़ी सी लग गयी सलोनी के बालमन में....क्या लिखा था शिवा ने ऐसा? मुझे क्यों मारा भैया ने?मम्मी ने मेरा पक्ष क्यों नहीं लिया?...तभी बाँह में पड़े चोट के निशान को देखकर सलोनी फफक-फफक कर रोने लगी....अब उसका मन दीपावली की लड़ियों और फुलझड़ियों में भी नहीं लग रहा था।

अगले दिन सलोनी जब ट्यूशन के लिए निकली तो रास्ते मे खड़ा शिवा मुस्कुराते हुए बोला , हे सलोनी!...हाय!....
सलोनी ने उसे देखकर नजरें फेर ली...
ए! क्या हुआ ? ऐसी उखड़ी-उखड़ी सी क्यों है ? और मेरी चिट्ठी का जबाब ?

"ओह! तो तूने चिट्ठी लिखी थी वो"!   वह झल्लाकर बोली, "ये देख ये है उसका जबाब" (अपनी बाँह पर पड़े निशान को दिखाते हुए उसके आँसू छलक पड़े) फिर चिढ़कर बोली, "अब जा भी यहाँ से... भैया ने कहा है अगर मैंने तुझसे बात की तो वे मेरी और पिटाई करेंगे। आँसू पोंछते हुए वहाँ से चली गयी, उसके दर्द से शिवा की भी आँखे नम हो गयी वह वहीं खड़ा न जाने कब तक उसे जाते देखता रहा।

उस दिन के बाद शिवा और सलोनी को कभी किसी ने आपस में बात करते नहीं देखा।

समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था सलोनी अपनी ग्रेजुएशन पूरी कर चुकी थी तभी घर में उस के रिश्ते की बात चलने लगी तो सभी बड़ों के सामने वह बेझिझक निडर होकर बोली मम्मी! मेरे रिश्ते की फिक्र मत करो , मेरा रिश्ता हो चुका है....सभी के कान खड़े हो गये माथे पर बल डालकर सबने आश्चर्य से एक स्वर में पूछा ,"क्या! ...."हाँ! वो मेरा रिश्ता....वो मेरी शादी हो चुकी है ....मेरा मतलब हम शादी कर चुके हैं" ,(कुछ हकलाते हुए सलोनी बोली तो सबके पैरों तले जमीन खिसक गयी)।
 मम्मी ने पास आकर उसे झिंझोड़ते हुए पूछा "होश में तो है न तू ?....जानती भी है क्या कह रही है ?... किससे हो गयी तेरी शादी?...ये कैसा मजाक है"?....(फिर दोनों हाथों से उसका सिर सहलाते हुए) क्या हुआ बेटा ! गुस्सा है क्या? पापा और भैया के सामने ये कैसी बातें कर रही है"?...

सलोनी--"नहीं मम्मी! गुस्सा नहीं हूँ, यही सच है जिसे सोच-समझकर पूरे होश में आप सभी को बता रही हूँ कि मैं और शिवा शादी कर चुके हैंं" ..।

"शिवा! वही न...बंगाली ऑण्टी का बेटा"! दीपक ने पूछा, .....

हाँ भैया ! वही शिवा जिसकी चिट्ठी पढ़कर आपने मुझे तब मारा था जब मैं ये सब कुछ जानती भी नहीं थी, काश आपने मुझे प्यार से ये सब समझाया होता, काश मम्मी ने आपका पक्ष न लेकर मेरे मन में उठने वाले प्रश्नों को शान्त किया होता, तो आज मुझे आप सभी से छिपाकर ये कदम नहीं उठाना पड़ता।

तभी गरजती आवाज में पापा बोले, "शादी कोई बच्चों का खेल नहीं बेटा! और तुम्हारा ये खेल हमें स्वीकार नहीं, खत्म करो इसे और सब शान्त होकर अपना-अपना काम करो!जाओ यहाँ से "।

सलोनी--"नहीं पापा हमने कोई खेल नहीं खेला है, कोर्ट मैरिज की है हमने, वह भी आज नहीं पूरे सात महीने पहले हम कोर्ट में शादी कर चुके हैं , आप सब से छुपाकर क्योंकि छः महीने तक आप इस शादी को कैंसिल करवा सकते थे,पर अब नहीं , अब मैं और शिवा कानूनन पति-पत्नी हैं।

ढ़ीठ कहीं की! पापा से ऐसे बात करती है, गुस्साया दीपक चीखते हुए उसे मारने को झपटा ।

पापा ने उसे रोका और  क्रोधित होकर कहा, "शादी हो चुकी तो यहाँ क्या कर रही हो, निकलो यहाँ से .....यहाँ रहने की जरूरत नहीं है तुम्हें"!.....

"ठीक है पापा चली जाती हूँ" कहते हुए सलोनी ने दरवाजा खोला तो बाहर शिवा खड़ा था, सलोनी का हाथ पकड़कर अन्दर लाते हुए बोला ,"यूँ रूठकर नहीं बड़ों का आशीर्वाद लेकर विदा लेते हैं", कहते हुए पापा के चरणस्पर्श के लिए झुका तो वे दो कदम पीछे हटते हुए बोले, "जाओगे कहाँ? तुम्हारे मम्मी-पापा भी तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे" ।

तभी शिवा के मम्मी-पापा भी अन्दर आते हुए बोले हमने तो कब का स्वीकार कर लिया समधी जी !अपनी बहू को भी और आपको भी....अब तो हम स्वागत के लिए आये हैं...स्वीकार क्यों न करते इन बच्चों के पवित्र प्रेम को..... जिन्होंने बचपन से अपनी सीमा में रहकर प्रेम किया और और अब विधिवत शादी के पवित्र बंधन में बँध गये...

हम जानते हैं आप गढ़वाली ब्राह्मण हैं तो हम भी बंगाली ब्राह्मण हैं समधीजी! इसलिए क्रोध और शंका छोड़कर बच्चों को अपना आशीर्वाद दीजिए
निमंत्रण पत्र  मेज में रखते हुए हाथ जोड़कर बोले
आज शाम को छोटी सी पार्टी का ये प्रथम निमंत्रण आप ही के लिए लाया हूँ आइएगा जरूर... बच्चों को आपके आशीर्वाद की जरूरत है.. हम इंतजार करेंगे।

चलो बहू अपने घर चलो! कहकर बाहर निकले तो
शिवा के दोस्त बैण्डबाजों के साथ पूरी बारात लिए खड़े थे। सारी कॉलोनी आश्चर्य मिश्रित खुशी के साथ बारात में शामिल हुई ।

इधर सलोनी के पिता को दिल का दौरा पड़ गया , भाई उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचा, तो शिवा भी अस्पताल में ही मिला, सलोनी और शिवा ने पार्टी छोड़कर अस्पताल में पापा की खूब सेवा की...जब पापा होश में आये तो सलोनी और शिवा को सामने देखा, उन्हें पास बुलाकर उनके सिर में हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया। अंततः गढवाली और बंगाली परिवार आपस मे रिश्तेदार बन गये।










21 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२८-०६-२०२०) को शब्द-सृजन-२७ 'चिट्ठी' (चर्चा अंक-३७४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

Sudha Devrani ने कहा…

जी अनीता जी!मेरी रचना साझा करने हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका।

SUJATA PRIYE ने कहा…

वाह ! बेहतरीन सृजन सखी ! बहुत ही सुंदर और सार्थक कथा।

hindiguru ने कहा…

सुन्दर कहानी

Jyoti Dehliwal ने कहा…

दिल को छूती कहानी।

Meena Bhardwaj ने कहा…

हृदयस्पर्शी बहुत सुन्दर कहानी सुधा जी । लाजवाब सृजन ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सुखांत लिए है आपकी कहानी पर कई बार पढ़ते पढ़ते मन भीग जाता है ... भावनाओं से भरपूर अच्छी कहानी है जो छूती है कहीं न कहीं दिल को ...

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार सुजाता जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सर!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार ज्योति जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद मीना जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!

VenuS "ज़ोया" ने कहा…

हम्म
बहुत अच्छी कहानी लिखी है आपने , मन सोच में पढ़ जाता है , भावनाओं को उद्वेलित करती कहानी
सादर नमस्कार

Sudha Devrani ने कहा…

उत्साह संवर्धन हेतु हृदयतल से धन्यवाद जोया जी!

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहद हृदयस्पर्शी कहानी सखी

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी!उत्साहवर्धन हेतु।

मन की वीणा ने कहा…

सुखद अहसास।
सुंदर कथा।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ.कामिनी जी मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी !

रेणु ने कहा…

उद्वेलित करती कहानी प्रिय सुधा जी।प्रेमी जोड़ों को आज की कथित4सुसभ्य और शालीन सदी में भी कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।भावपूर्ण रचना जो आज के समाज का आईना है।सस्नेह ❤

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद रेणु जी !

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