स्कूल की छुट्टियां और बच्चों का आपस में
लड़ना झगड़ना.....
फिर शिकायत.... बड़ों की डाँट - डपट......
पल में एक हो जाना....अगले ही पल रूठना...
माँ का उन्हें अलग-अलग करना...
तो एक-दूसरे के पास जाने के दसों बहाने ढूँढ़ना....
न मिल पाने पर एक दूसरे के लिए तड़पना....
तब माँ ने सोचा---
यही सजा है सही, इसी पर कुछ इनको मैं बताऊँ,
दोनोंं फिर न लड़ें आपस में,ऐसा कुछ समझाऊँ...
दोनोंं को पास बुलाकर बोली....
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ एक अजब कहानी,
ना कोई था राजा जिसमें ना थी कोई रानी...
बच्चे बोले--तो फिर घोड़े हाथी थे...?
या हम जैसे साथी थे....!!
माँ बोली---हाँ ! साथी थे वे तुम जैसे ही
लड़ना झगड़ना.....
फिर शिकायत.... बड़ों की डाँट - डपट......
पल में एक हो जाना....अगले ही पल रूठना...
माँ का उन्हें अलग-अलग करना...
तो एक-दूसरे के पास जाने के दसों बहाने ढूँढ़ना....
न मिल पाने पर एक दूसरे के लिए तड़पना....
तब माँ ने सोचा---
यही सजा है सही, इसी पर कुछ इनको मैं बताऊँ,
दोनोंं फिर न लड़ें आपस में,ऐसा कुछ समझाऊँ...
दोनोंं को पास बुलाकर बोली....
आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ एक अजब कहानी,
ना कोई था राजा जिसमें ना थी कोई रानी...
बच्चे बोले--तो फिर घोड़े हाथी थे...?
या हम जैसे साथी थे....!!
माँ बोली---हाँ ! साथी थे वे तुम जैसे ही
रोज झगड़ते थे ऐसे ही......
अच्छा!!!... कौन थे वे ?..
...."रवि और शशि"...
रवि शशि दोनों भाई-भाईअच्छा!!!... कौन थे वे ?..
...."रवि और शशि"...
खूब झगड़ते थे लरिकाई
रोज रोज के शिकवे सुनकर
तंग आ गयी उनकी माई......
एक कर्मपथ ता पर विपरीत मत
झगड़ेंगे यूँ ही तो होगी जगहँसाई
भाई भाई के झगड़ों से
चिंताकुल थी उनकी माई!!!!
बहुत सूझ-बूझ संग माँ ने,
युक्ति अनोखी तब लगाई!!!
एक ही कर्मपथ, वक्त विलग कर
माँ ने समता भी निभाई।
🌙शशि निशा संग चमके चन्द्र बन🌜
🌞रवि दिवाकर कहलाये🌞
सदैव के लिए बिछड़े तब दोनों
दण्डित कर माँ ने समझाये।।
यूँ न लड़ो तुम कहा था तुमसे,
फिर भी तुम जो नहीं माने.....
भ्रातृ विरह का दुख है कैसा,
विलग हुए तब तो जाने...
भ्रातृ विरह में दुखित हुए शशि
गुमसुम कभी छुप जाते हैं....
रवि भी भ्रातृ मिलन को तरसे
शीत में मलीन हो जाते हैं.....
अच्छा ....!!!!
इसी वजह से चंदा मामा
कभी-कभी नहीं आते हैंं....
घुप्प अंधेरे नभ में कुछ दिन
बस तारे टिमटिमाते हैंं.......
और सूरज दादा दुखी, खिन्न,
कभी दीन, नरम हो जाते हैं,
ठिठुर-ठिठुर सर्दी में जब,
हम धूप ढूँढने जाते हैं.......।
माँ ! हम ज्यादा न लडेंगे अब से
हमको यूँ न सजा देना....
साथ रहेंगे हम जीवन भर,
हमें दूर नहीं कर देना.....
चित्र ;साभार गूगल से...
रोज रोज के शिकवे सुनकर
तंग आ गयी उनकी माई......
एक कर्मपथ ता पर विपरीत मत
झगड़ेंगे यूँ ही तो होगी जगहँसाई
भाई भाई के झगड़ों से
चिंताकुल थी उनकी माई!!!!
बहुत सूझ-बूझ संग माँ ने,
युक्ति अनोखी तब लगाई!!!
एक ही कर्मपथ, वक्त विलग कर
माँ ने समता भी निभाई।
🌙शशि निशा संग चमके चन्द्र बन🌜
🌞रवि दिवाकर कहलाये🌞
सदैव के लिए बिछड़े तब दोनों
दण्डित कर माँ ने समझाये।।
यूँ न लड़ो तुम कहा था तुमसे,
फिर भी तुम जो नहीं माने.....
भ्रातृ विरह का दुख है कैसा,
विलग हुए तब तो जाने...
भ्रातृ विरह में दुखित हुए शशि
गुमसुम कभी छुप जाते हैं....
रवि भी भ्रातृ मिलन को तरसे
शीत में मलीन हो जाते हैं.....
अच्छा ....!!!!
इसी वजह से चंदा मामा
कभी-कभी नहीं आते हैंं....
घुप्प अंधेरे नभ में कुछ दिन
बस तारे टिमटिमाते हैंं.......
और सूरज दादा दुखी, खिन्न,
कभी दीन, नरम हो जाते हैं,
ठिठुर-ठिठुर सर्दी में जब,
हम धूप ढूँढने जाते हैं.......।
माँ ! हम ज्यादा न लडेंगे अब से
हमको यूँ न सजा देना....
साथ रहेंगे हम जीवन भर,
हमें दूर नहीं कर देना.....
चित्र ;साभार गूगल से...
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