भ्रात की सजी कलाई (रोला छंद)

चित्र
सावन पावन मास , बहन है पीहर आई । राखी लाई साथ, भ्रात की सजी कलाई ।। टीका करती भाल, मधुर मिष्ठान खिलाती । देकर शुभ आशीष, बहन अतिशय हर्षाती ।। सावन का त्यौहार, बहन राखी ले आयी । अति पावन यह रीत, नेह से खूब निभाई ।। तिलक लगाकर माथ, मधुर मिष्ठान्न खिलाया । दिया प्रेम उपहार , भ्रात का मन हर्षाया ।। राखी का त्योहार, बहन है राह ताकती । थाल सजाकर आज, मुदित मन द्वार झाँकती ।। आया भाई द्वार, बहन अतिशय हर्षायी ।  बाँधी रेशम डोर, भ्रात की सजी कलाई ।। सादर अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए राखी पर मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर जरा अलग सा अब की मैंने राखी पर्व मनाया  

जानी ऐसी कला उस कलाकार की....


 women praying

कुछ उलझने ऐसे उलझा गयी
असमंजस के भाव जगाकर
बुरी तरह मन भटका गयी,
जब सहा न गया, मन व्यथित हो उठा
आस भी आखिरी सांस लेने लगी
जिन्दगी जंग है हार ही हार है
नाउम्मीदी ही मन में गहराने लगी
पल दो पल भी युगों सा तब लगने लगा
कैसे ये पल गुजारें ! दिल तड़पने लगा
थक गये हारकर , याद प्रभु को किया
हार या जीत सब श्रेय उनको दिया
मन के अन्दर से "मै" ज्यों ही जाने लगा
एक दिया जैसे तम को हराने लगा
बन्द आँखों से बहती जो अश्रुधार थी
सूखती सी वो महसूस होने लगी
नम से चेहरे पे कुछ गुनगुना सा लगा
कुछ खुली आँख उजला सा दिखने लगा
उम्मीदों की वो पहली किरण खुशनुमा
नाउम्मीदी के बादल छटाने लगी
आस में साँस लौटी और विश्वास भी
जीने की आस तब मन में आने लगी
जब ये जानी कला उस कलाकार की
इक नयी सोच मन में समाने लगी
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी....

गहरा सा तिमिर जब दिखे जिन्दगी में
तब ये माने कि अब भोर भी पास है
दुख के साये बरसते है सुख बन यहाँ
जब ये जाने कि रौशन हुई आस है
रात कितनी भी घनी बीत ही जायेगी
नयी उजली सुबह सारे सुख लायेगी
जब ये उम्मीद मन में जगाने लगी
हुई आसान जीवन की हर इक डगर
जब से भय छोड़ गुण उसके गाने लगी
इक नयी सोच मन में समाने लगी
जानी ऐसी कला उस कलाकार की
भावना गीत बन गुनगुनाने लगी......


                         चित्र ;साभार गूगल से-

टिप्पणियाँ

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं