वो तो पुरानी बातें थी
जब हम......
अकेलेपन से डरते थे
कोई न कोई साथ रहे
ऐसा सोचा करते थे
ऐसा सोचा करते थे
कभी तन्हा हुए तो
टीवी चलाते,
रेडियो बजाते...
रेडियो बजाते...
फिर भी चैन न आये तो
फोन करते,
दोस्तों को बुलाते.....
फोन करते,
दोस्तों को बुलाते.....
जाने क्यों तन्हाई से डरते थे
पर जब से मिले तुम..!!!
सब बदल सा गया,
बस तेरे ख्यालों में...
मन अटक सा गया..!!!
अब कोई साथ हो ,
तो वह खलता है
मन में बस तेरा ही
सपना पलता है...
सपनीली दुनिया में
ख्वावों की मन्जिल है
उसमें हम तुम रहते
फिर तन्हा किसको कहते ?
अब तो घर के उस कोने में
मन अपना लगता है,
जहाँ न आये कोई बाधा
ख्यालों में न हो खलल
बस मैं और तुम.....
मेरे प्यारे मोबाइल!!!
आ तेरी नजर उतारूँ
अब तुझ पर ही मैं
अपना हर पल वारूँ.....
आ तेरी नजर उतारूँ
अब तुझ पर ही मैं
अपना हर पल वारूँ.....
जब से तुझसे मन लगाने लगी
तब से....सच में.....
तन्हाई रास आने लगी......।
अब तो .......
कहाँ हैं...कैसे हैं ....कोई साथ है.....
कोई फर्क नहीं पड़ता....
रास्ता भटक गये!!!
तो भी नहीं कोई चिन्ता
बस तू और ये इन्टरनैट
साथ रहे ......
तो समझो सब कुछ सैट
तो समझो सब कुछ सैट
अब तो बस .…......
तुझ पर ही मन लगाने लगी,
तब से..........सच में........
तन्हाई रास आने लगी......!!!!
तुझ पर ही मन लगाने लगी,
तब से..........सच में........
तन्हाई रास आने लगी......!!!!
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