श्राद्ध में करें तर्पण (मनहरण घनाक्षरी)

श्राद्ध में करें तर्पण, श्रद्धा मन से अर्पण, पितरों को याद कर, पूजन कराइये । ब्राह्मण करायें भोज, उन्नति मिलेगी रोज, दान, दक्षिणा, सम्मान, शीष भी नवाइये । पिण्डदान का विधान, पितृदेव हैं महान, बैतरणी करें पार गयाजी तो जाइये । तर्पण से होगी मुक्ति, श्राद्ध है पावन युक्ति, पितृलोक से उद्धार, स्वर्ग पहुँचाइये । पितृदेव हैं महान, श्राद्ध में हो पिण्डदान, जवा, तिल, कुश जल, अर्पण कराइये । श्राद्ध में जिमावे काग, श्रद्धा मन अनुराग, निभा सनातन रीत, पितर मनाइये । पितर आशीष मिले वंश खूब फूले फले , सुख समृद्धि संग, खुशियाँ भी पाइये । सेवा करें बृद्ध जन, बात सुने पूर्ण मन, विधि का विधान जान, रीतियाँ निभाइये । हार्दिक अभिनंदन🙏 पढ़िए एक और मनहरण घनाक्षरी छंद ● प्रभु फिर आइए
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कामिनी जी मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने हेतु ।
हटाएंजोश-जोश में भावावेश में
जवाब देंहटाएंटूट न जायें रिश्ते ।
बड़े जतन से बड़े सम्भलकर
चलो निभाएं रिश्ते ।
बहुत बहुत सुंदर भाव ।
रिश्तों को बस सहेज कर रखो ,हाँ त्याग जरूरी है पर इस अथाह दौलत पर सब कुछ निछावर करना आना जरूरी है।
बहुत बहुत सुंदर।
जी, सारगर्भित प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.कुसुम जी !
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जवाब देंहटाएंक्या खोया क्या पाया,
नानी -दादी ने बैठे-बैठे,
यही तो हिसाब लगाया
क्या पाया जीवन में ,जिसने
इनका प्यार न पाया ।///
प्रिय सुधा जी, खोते-से जा रहे सुन्दर पारिवारिक रिश्तों का स्मरण कराती रचना मन को छू गई। सच कहूँ तो हमारी पीढ़ी परम सौभाग्शाली रही जिसे सयुक्त परिवार के रूप में अनेक रिश्ते मिले दादी-नानी की प्रेरक कथाएँ और संस्कर मिले।भले एक साथ रहना सम्भव ना हो पर आज भी यदि हम चाहें तो रिश्ते निभाना कोई कठिन काम नहीं।एक बहुत ही प्रेरक,उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार और बधाई ❤❤🌹🌹🙏
अपनोंं के आशीष में ही ,
अपना तो सारा जहाँ है ।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सखी !
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