तन में मन है या मन में तन ?
ये मन भी न पल में इतना वृहद कि समेट लेता है अपने में सारे तन को, और हवा हो जाता है जाने कहाँ-कहाँ ! तन का जीव इसमें समाया उतराता उकताता जैसे हिचकोले सा खाता, भय और विस्मय से भरा, बेबस ! मन उसे लेकर वहाँ घुस जाता है जहाँ सुई भी ना घुस पाये, बेपरवाह सा पसर जाता है। बेचारा तन का जीव सिमटा सा अपने आकार को संकुचित करता, समायोजित करता रहता है बामुश्किल स्वयं को इसी के अनुरूप वहाँ जहाँ ये पसर चुका होता है सबके बीच। लाख कोशिश करके भी ये समेटा नहीं जाता, जिद्दी बच्चे सा अड़ जाता है । अनेकानेक सवाल और तर्क करता है समझाने के हर प्रयास पर , और अड़ा ही रहता है तब तक वहीं जब तक भर ना जाय । और फिर भरते ही उचटकर खिसक लेता वहाँ से तन की परवाह किए बगैर । इसमें निर्लिप्त बेचारा तन फिर से खिंचता भागता सा चला आ रहा होता है इसके साथ, कुछ लेकर तो कुछ खोकर अनमना सा अपने आप से असंतुष्ट और बेबस । हाँ ! निरा बेबस होता है ऐसा तन जो मन के अधीन हो। ये मन वृहद् से वृहद्तम रूप लिए सब कुछ अपने में समेटकर करता रहता है मनमानी । वहीं इसके विपरीत कभी ये पलभर में सिकुड़कर या सिमटकर अत्यंत सूक्ष्म रूप में छिपक...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है...
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
रचना को मंच प्रदान करने हेतु हृदयतल से धन्यवाद सखी !
हटाएंउजड़ा सा है जीवन, बिखरे से हैं सपने
जवाब देंहटाएंटूटी सी उम्मीदें , रूठे से हैं अपने
कोरी सी कल्पनाएं, धुंधली आकांक्षाएं.
मन के किस कोने में, आशा का दीप जलाएं ?
हम मन के कोने में, कैसे आशा का दीप जलाएं" ?
समाज और देश की व्यापक परिस्थितियों को आईना दिखाता सार्थक सृजन ।
सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता प्रदान करने के लिए दिल से धन्यवाद आ.कुसुम जी !
हटाएंप्रिय सुधा जी, शिक्षित बेरोजगारों का दर्द बहुत ही मार्मिक शब्दों में बडी सहजता से समेट लिया आपने। आखिर डिग्रीधारी ये बेरोजगार आखिर जाएँ भी तो कहाँ जाएँ? ये व्यथा आज की असंतुलित व्यवस्था से पैदा हुई है जहाँ डीग्रीयों के धर जितने बड़े होते जाते हैं रोजगार के अवसर उतने ही सिकुडते जाते हैं।एक सशक्त रचना के लिए आभार और बधाई ❤
जवाब देंहटाएं"जहाँ डीग्रीयों के धर जितने बड़े होते जाते हैं रोजगार के अवसर उतने ही सिकुडते जाते हैं।"बिल्कुल सही कहा आपने ...रचना का मंतव्य स्पष्ट करती सारगर्भित समीक्षा हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपका ।
हटाएंबिल्कुल सही कहा आपने, सार्थक सृजन सुधा जी 🙏
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