मंगलवार, 28 मार्च 2017

उफ्फ ! "गर्मी आ गयी"

     

sun behind a palm tree

बसंत की मेजबानी अभी चल ही रही थी,
तभी दरवाजे पर दस्तक दे गर्मी बोली ,
               "लो मैंं आ गई"

औऱ फिर सब एक साथ बोल उठे,
           उफ ! गर्मी आ गई  !

हाँ !  मैं आ गयी, अब क्या हुआ ?
सखी सर्दी  जब थी यहाँ आई,
तब भी तुम कहाँ खुश थे भाई !

रोज स्मरण कर मुझे
कोसे थे सर्दी को तुम
ताने - बाने सर्दी सुनकर
चुप लौटी बेचारी बनकर ।
उसे मिटाने और निबटाने,
क्या-क्या नहीं किये थे तुम ।

पेड़ भी सारे काट गिराये,
बस तुमको तब धूप ही भाये ?
छाँव कहीं पर रह ना जाए,
राहों के भी वृक्ष कटाये ।

जगह-जगह अलाव जलाकर,
फिर सर्दी को तुम निबटाये ।
गयी बेचारी अपमानित सी होकर,
बसंत आ गया फिर मुँह धोकर

दो दिन की मेहमानवाजी
फिर तुम सबको भा गयी।
"पर अब लो मैं आ गयी"
करो जतन मुझसे निबटो तुम,
मैं हर घर -आँगन में छा गयी
      "लो मैं आ गयी"
-सुधा देवरानी






5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है...
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ.यशोदा जी ! पाँच लिंको के आनंद में मेरी रचना चयन करने हेतु ।

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  2. अभी तो सर्दी ही चल रही । सर्दी में गर्मी का मज़ा । यूँ बीच में बसंत खड़ा है ।

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  3. सखी सर्दी जब थी यहाँ आई,
    तब भी तुम कहाँ खुश थे भाई !

    सही कहा गर्मी ने। हल्की फुल्की सी प्यारी रचना,🙏

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  4. सहज सरल अभिव्यक्ति।
    मानव मन को जो हो वो न भाए ।

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