बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

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बहुत समय से बोझिल मन को  इस दीवाली खोला भारी भरकम भरा था उसमें  उम्मीदों का झोला कुछ अपने से कुछ अपनों से  उम्मीदें थी पाली कुछ थी अधूरी, कुछ अनदेखी  कुछ टूटी कुछ खाली बड़े जतन से एक एक को , मैंने आज टटोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला दीप जला करके आवाहन,  माँ लक्ष्मी से बोली मनबक्से में झाँकों तो माँ ! भरी दुखों की झोली क्या न किया सबके हित,  फिर भी क्या है मैने पाया क्यों जीवन में है मंडराता ,  ना-उम्मीदी का साया ? गुमसुम सी गम की गठरी में, हुआ अचानक रोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला प्रकट हुई माँ दिव्य रूप धर,  स्नेहवचन फिर बोली ये कैसा परहित बोलो,  जिसमें उम्मीदी घोली अनपेक्षित मन भाव लिए जो , भला सभी का करते सुख, समृद्धि, सौहार्द, शांति से,  मन की झोली भरते मिले अयाचित सब सुख उनको, मन है जिनका भोला बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला मैं माँ तुम सब अंश मेरे,  पर मन मजबूत रखो तो नहीं अपेक्षा रखो किसी से,  निज बल स्वयं बनो तो दुख का कारण सदा अपेक्षा,  मन का बोझ बढ़ाती बदले में क्या मिला सोचकर,  ...

प्रकृति की रक्षा ,जीवन की सुरक्षा

      

save earth


उर्वरक धरती कहाँ रही अब
सुन्दर प्रकृति कहाँ रही अब 
कहाँ रहे अब हरे -भरे  वन
ढूँढ रहा है जिन्हें आज मन
                        
  तोड़ा- फोड़ा इसे मनुष्य ने
   स्वार्थ -सिद्ध करने  को  
   विज्ञान का नाम दे दिया 
   परमार्थ सिद्ध करने को 
 
 सन्तुलन बिगड़ रहा है
 अब भी नहीं जो सम्भले
  भूकम्प,बाढ,सुनामी तो
  कहीं तूफान  चले
 
 बर्फ तो पिघली ही
 अब ग्लेशियर भी बह निकले
  तपती धरा की लू से
  अब सब कुछ जले
                     
विकास कहीं विनाश न बन जाये
विद्युत आग की लपटों में न बदल जाए
संभल ले मानव संभाल ले पृथ्वी को
आविष्कार तेरे तिरस्कार न बन जायें

कुछ कर ऐसा कि
सुन्दर प्रकृति शीतल धरती हो
हरे-भरे वन औऱ उपवन हों
कलरव हो पशु -पक्षियों का
वन्य जीवों का संरक्षण हो
                        
प्रकृति की रक्षा ही जीवन की सुरक्षा है
आओ इसे बचाएं जीवन सुखी बनाएं ।
     
         चित्र साभार गूगल से...

 
"प्रकृति का संदेश" प्रकृति पर आधारित मेरी एक और रचना ।

टिप्पणियाँ

  1. विचारपूर्ण विषय पर सार्थक अभिव्यक्ति।
    सादर

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  2. हमेशा की तरह बहुत सराहनीय सृजन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत धन्यवाद आ. उषा किरण जी!

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रकृति का क्षरण देख मन टूट हो जाता है,ये मेरा भी प्रिय विषय है,बहुत शुभकामनाएं सुधा जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी सही कहा आपने जिज्ञासा जी!
      हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

      हटाएं
  5. सार्थक संदेश देती सुंदर रचना । पृथ्वी को बचाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आ.संगीता जी!

      हटाएं
  6. ऐसे असंतुलन के भुक्तभोगी भी हम ही हैं तो सार्थक प्रयास करना ही होगा । प्रभावी सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  7. विकास कहीं विनाश न बन जाये
    विद्युत आग की लपटों में न बदल जाए
    संभल ले मानव संभाल ले पृथ्वी को
    आविष्कार तेरे तिरस्कार न बन जायें
    बहुत बढ़िया सुधा जी। प्रकृति एक धधकता ज्वालामुखी बन चुकी।इसके बारे में जरूर कुछ करना होगा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, रेणु जी!हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

      हटाएं
  8. बहुत सुंदर। इंसान प्रकृति से जीतता जरूर है किंतु प्रकृति अपनी हर पराजय का बदला लेती है।

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