बीती ताहि बिसार दे

चित्र
  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

तपे दुपहरी ज्वाल

 

Summer


【1】

भीषण गर्मी से हुआ, जन-जीवन बेहाल ।

लू की लपटें चल रही, तपे दुपहरी ज्वाल ।

तपे दुपहरी ज्वाल, सभी बारिश को तरसें ।

बीत रहा आषाढ़, बूँद ना बादल बरसे ।

कहे सुधा सुन मीत, बने सब मानव धर्मी ।

आओ रोपें वृक्ष , मिटेगी भीषण गर्मी ।।


【2】

रातें काटे ना कटे,  अलसायी है भोर ।

आग उगलती दोपहर, त्राहि-त्राहि चहुँ ओर ।

त्राहि-त्राहि चहुँ ओर, वक्त ये कैसा आया ।

प्रकृति से खिलवाड़, नतीजा ऐसा पाया ।

कहे सुधा कर जोरि, वनों को अब ना काटें ।

पर्यावरण सुधार , सुखद बीते दिन-रातें ।।



गर्मी पर मेरी एक और रचना पढ़िए इसी ब्लॉग पर-

● उफ्फ ! "गर्मी आ गई"




 

टिप्पणियाँ

  1. वाह! सुधा जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  2. सखी दुनिया भर भर पी रही अपना शहर भी तपता और प्यासा है! प्रभावी रचना के लिए बधाई प्रिय सुधा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सही कहा आपने दुनिया भर भर पी रही...पता नहीं यहाँ क्यों सूखा पड़ा हैं ।
      तहेदिल से धन्यवाद आपका ।

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

बहुत समय से बोझिल मन को इस दीवाली खोला

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं