तपे दुपहरी ज्वाल
【1】
भीषण गर्मी से हुआ, जन-जीवन बेहाल ।
लू की लपटें चल रही, तपे दुपहरी ज्वाल ।
तपे दुपहरी ज्वाल, सभी बारिश को तरसें ।
बीत रहा आषाढ़, बूँद ना बादल बरसे ।
कहे सुधा सुन मीत, बने सब मानव धर्मी ।
आओ रोपें वृक्ष , मिटेगी भीषण गर्मी ।।
【2】
रातें काटे ना कटे, अलसायी है भोर ।
आग उगलती दोपहर, त्राहि-त्राहि चहुँ ओर ।
त्राहि-त्राहि चहुँ ओर, वक्त ये कैसा आया ।
प्रकृति से खिलवाड़, नतीजा ऐसा पाया ।
कहे सुधा कर जोरि, वनों को अब ना काटें ।
पर्यावरण सुधार , सुखद बीते दिन-रातें ।।
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वाह! सुधा जी ,बहुत खूबसूरत सृजन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद शुभा जी !
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद भारती जी !
हटाएंसखी दुनिया भर भर पी रही अपना शहर भी तपता और प्यासा है! प्रभावी रचना के लिए बधाई प्रिय सुधा
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने दुनिया भर भर पी रही...पता नहीं यहाँ क्यों सूखा पड़ा हैं ।
हटाएंतहेदिल से धन्यवाद आपका ।