बीती ताहि बिसार दे

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  स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं।  पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं ।  परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है  ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे ।   ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...

चींटी के पर निकलना

 

Short story

"ये क्या बात हुई बात हुई आंटी ! सफलता मुझे मिली और बधाइयाँ मम्मी को"  !?..

"हाँ बेटा ! तेरी मम्मी की वर्षों की तपस्या है, तो बधाई तो बनती ही हैं न उसको। और तुझे तो बधाई ही बधाई बेटा  ! खूब तरक्की करे ! हमेशा खुश रहे ! कहते हुए शीला ने रोहन के सिर पर प्यार से हाथ फेरा ।

"तपस्या ! थोड़ी सी मन्नतें ही तो की न मम्मी ने ? और जो मैं दिन-रात एक करके पढ़ा ? मैं मेहनत ना करता तो मम्मी की मन्नतों से ही थोड़े ना मेरा सिलेक्शन हो जाता आंटी" !

"हाँ बेटा ! मेहनत भी तभी तो की ना तूने, जब तेरी मम्मी ने तुझे जैसे- तैसे करके यहाँ तक पढ़ाया"। 

"कौन नहीं पढ़ाता आंटी ? आप भी तो पढ़ा ही रहे हो न अपने बच्चों को"।

"माफ करना बेटा ! गलती हो गई मुझसे । बधाई तेरी माँ को नहीं, बस तुझे ही बनती है ।  तेरी माँ ने तो किया ही क्या है , है न ! बेचारी खाँमखाँ मेहनत-मजदूरी करके हड्डी तोड़ती रही अपनी" ।

सरला ! अरी ओ सरला ! सोचा था तुझे कहूँगी कि परमात्मा की दया से बेटा कमाने वाला हो गया, अब तू इतना मत खपा कर, पर रोहन को सुनकर तो यही कहूँगी कि अभी कमर कस ले ताकि दूसरे बेटे मोहन के लिए भी अपने फर्ज पूरे कर सके। 

और बेटा रोहन ! चींटी के पर निकलना अच्छा नहीं होता उसके खुद के लिए । 


पढ़िए एक और लघुकथा

लघुकथा -  नानी-दादी के नुस्खे




टिप्पणियाँ

  1. प्रिय सुधा जी, बहुत अरसे के बाद ब्लॉग पर आकर धीरे -धीरे सबसे जुड़ रही हूँ! आपकी कथा पढ़कर ना जाने कितने नाशुक्रे चेहरे आँखों में सजीव हो उठे! आज कृतघ्न संततियों का युग है! उच्च हो या निम्न हर वर्ग कथित ज्ञानी ( अज्ञानी) और मुंहजोर बच्चों से पीड़ित है! इनसे सुखद भविष्य की आशा रखना व्यर्थ है! एक सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई 🌺🌺💐💐

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    1. तहेदिल से धन्यवाद आपका सखी ! आप आ रही हैं ये ही सबसे बड़ी खुशी की बात है । इतने समय बाद आपको ब्लॉग पर देखकर मन आल्हादित है । हार्दिक अभिनंदन सखी !

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  2. हद दर्जे कल एहसास फरामोश और बदतमीज होती नयी पीढ़ी समाज के लिए गंभीर सरदर्द से कम नहीं है।
    बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती विचारणीय कहानी दी।
    सस्नेह प्रणाम दी
    सादर
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ जुलाई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सस्नेह आभार एवं धन्यवाद प्रिय श्वेता ! अनमोल प्रतिक्रिया के साथ रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।

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  3. बहुत खूब सुधा जी ,पता नहीं इस नई पीढी की सोच कहाँ जाकर रुकेगी ।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर मार्मिक रचना

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  5. सुधार जी बहुत गहन और हृदय स्पर्शी लघु कथा आज का युवा माता पिता के त्याग को समझ ही कहां पाता है, समझेगा जरूर पर जब स्वयं माँ पिता की जगह खड़ा होगा।
    यथार्थ परक सार्थक सृजन।

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  6. खूबसूरती से पिरोया सुन्दर कहानी

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