तपे दुपहरी ज्वाल
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIoxBsUVQ90scoKr73mk9yhAg6hWa00bfqiuErxEzY3DN6G9S-nq1pIJYzWUELubEBQEauchFjlcgomoeBC3MElZh7E8TdzJTe34Izbiu-bquGV7BCtwZZJ6KTg6VXsVB7NWb8ESU_3QemmgNqZBohku_61krs2canVeevbJd3pHmKN-fAFsSxy1IDYTed/w200-h134/1719990324456.jpg)
【1】 भीषण गर्मी से हुआ, जन-जीवन बेहाल । लू की लपटें चल रही, तपे दुपहरी ज्वाल । तपे दुपहरी ज्वाल, सभी बारिश को तरसें । बीत रहा आषाढ़, बूँद ना बादल बरसे । कहे सुधा सुन मीत, बने सब मानव धर्मी । आओ रोपें वृक्ष , मिटेगी भीषण गर्मी ।। 【2】 रातें काटे ना कटे, अलसायी है भोर । आग उगलती दोपहर, त्राहि-त्राहि चहुँ ओर । त्राहि-त्राहि चहुँ ओर, वक्त ये कैसा आया । प्रकृति से खिलवाड़, नतीजा ऐसा पाया । कहे सुधा कर जोरि, वनों को अब ना काटें । पर्यावरण सुधार , सुखद बीते दिन-रातें ।। गर्मी पर मेरी एक और रचना पढ़िए इसी ब्लॉग पर- ● उफ्फ ! "गर्मी आ गई "