गुरुवार, 30 जून 2022

मन कभी वैरी सा बनके क्यों सताता है

 

sad girl


मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?

दिल दुखी पहले से ही फिर क्यों रुलाता है ?

भूलने देता नहीं बीते दुखों को भी

आज में बीते को भी क्यों जोड़े जाता है ?


हौसला रखने दे, जा, जाने दे बीता कल,

आज जो है, बस उसी में जी सकें इस पल ।

आने वाले कल का भी क्यों भय दिखाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


हर लड़ाई पार कर जीवन बढ़े आगे,

बुद्धि के बल जीत है, दुर्भाग्य भी भागे ।

ना-नुकर कर,  क्यों उम्मीदें तोड़ जाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


मन तू भी मजबूत हो के साथ देता तो,

दृढ़ बन के दुख को आड़े हाथ लेता तो,

बेबजह क्यों भावनाओं में डुबाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


यंत्र है तन, मन तू यंत्री, रहे नियंत्रित जो

पा सके जो चाहे, कुछ भी ना असम्भव हो?

फिर निराशा के भँवर में क्यों फँसाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?


27 टिप्‍पणियां:

Jyoti Dehliwal ने कहा…

मन के ताने बाने को व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना, सुधा दी।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी त्वरित टिप्पणी से उत्साहवर्धन करने हेतु ।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 01 जुलाई 2022 को 'भँवर में थे फँसे जब वो, हमीं ने तो निकाला था' (चर्चा अंक 4477) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

अच्छी अभिव्यक्ति है यह आपकी सुधा जी - शायद मेरे जैसों के लिए ही है।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार रविन्द्र जी !मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी बहुत दिनों बाद आपके आगमन से अत्यंत खुशी हुई।
सादर आभार ।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.आलोक जी !
सादर आभार।

अनीता सैनी ने कहा…

अंतरमन में उठे भावों को बहुत बढ़िया गढ़ा।
यंत्र है तन, मन तू यंत्री, रहे नियंत्रित जो
पा सके जो चाहे, कुछ भी ना असम्भव हो?
फिर निराशा के भँवर में क्यों फँसाता है ?
मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?.... बहुत सुंदर।
सादर स्नेह

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

अंतर्मन के द्वंद को व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना।

उर्मिला सिंह ने कहा…

अन्तर्मन के भाओं को व्यक्त करती सुन्दर रचना।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर वर्णन, मनोदशा का जीवन्त चित्रण, बधाई

Sweta sinha ने कहा…

मन का स्पंदन निशानी जीवंतता की
सता-रूला के हर बार मन समझाता है
जगबंधन ,नियति की नीति रहस्यमयी
मन मानुष का समझ कहाँ पाता है ।
----
भावपूर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सुधा जी।
सस्नेह।

विश्वमोहन ने कहा…

अंतर्मन की आत्यंतिक अनुभूति!!!

Bharti Das ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

कविता रावत ने कहा…

आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

सुधा जी, ऐसी निराशा भरी कविताएँ तो कोई उम्र के उस पड़ाव पर लिखता है जब शरीर के अंग-प्रत्यंग जवाब देने लगते हैं.
आपकी जगह ऐसी दुखियारी कविता लिखने का अधिकार तो हमारे जैसे नौजवानों को है.

जिज्ञासा सिंह ने कहा…


मन तू भी मजबूत हो के साथ देता तो,

दृढ़ बन के दुख को आड़े हाथ लेता तो,

बेबजह क्यों भावनाओं में डुबाता है ?

मन कभी वैरी सा बन के क्यों सताता है ?
...सही कहा आपने मन कभी कभी अनर्गल प्रलापों का रोना लेकर बैठ जाता है, और हमारी सारी चेतना को शून्य कर जाता है ।
बहुत सराहनीय रचना ।

MANOJ KAYAL ने कहा…

सराहनीय सृजन।

MANOJ KAYAL ने कहा…

सुन्दर सृजन।

मन की वीणा ने कहा…

"आज में बीते को भी क्यों जोड़े जाता है ?"
सच मन वैरी ही है जब दुख में डुबता है तो अगली पिछली सभी को खींच कर उसी पल तक घसीट लाता है और ऐसी भंवर में उलझाया है कि कोई सहारा उबार के बाहर न लें आते उसके माता जाल से।
सटीक अभिव्यक्ति।
सुंदर।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत अच्छी कविता. हार्दिक शुभकामनायें

डॉ 0 विभा नायक ने कहा…

समय का दबाव मन को ऐसा करने पर विवश कर देता है। सत्य रचना। शुभकामनाएँ 🌷🌷

Jyoti khare ने कहा…

बहुत अच्छी और प्रभावी रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

जगबंधन ,नियति की नीति रहस्यमयी
मन मानुष का समझ कहाँ पाता है।

भावपूर्ण सुंदर प्रभावी रचना सुधा जी।

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

बहुत भावपूर्ण कविता !
आशा-निराशा तो जीवन में सफलता-असफलता के साथ आती-जाती रहती हैं.
लेकिन निराश हो कर केवल सर पकड़ कर रोने से तो बचा-खुचा भी हम से छिन जाएगा.
हिम्मत, साहस, धैर्य और दृढ़-संकल्प में, हमारी कैसी भी डूबती नैया को पार लगाने के क्षमता है.

Sudha Devrani ने कहा…

जी , आ.सर ! सही कहा आपने ...सुंदर सीख के साथ उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका ।
सादर आभार ।

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