मंगलवार, 21 सितंबर 2021

आर्थिक दरकार

financial need
                
               चित्र साभार pixabay.com से


 बड़ी मेहनत से कमाया

इच्छाओं पर अंकुश लगा 

पाई-पाई कर बचाया

कुछ जरूरी जरूरतों के अलावा

नहीं की कभी मन की 

न बच्चों को करने दी

बचपन से ही उन्हें

सर सहलाकर समझाया

और कमी-बेसियों के

संग ही पढाया-लिखाया।

बुढापे की देहलीज में जाते -जाते

अपनी जमापूँजी को बड़े जतन से

बेटी - बेटों में बाँटने के लिए

सपरिवार बैठकर

सबने दिमाग घुमाया

बेटियों के ब्याह में दहेज

का बराबर हिसाब लगाया

बेटियों को विदा कर

बचे - खुचे पैसों में 

बेटे की नौकरी के मार्फत

लोन का जुगाड़ लगाया

दिन-रात एक कर

शहर में दो कमरों का 

छोटा सा घर बनाया

अपनी सफलता पर 

आप ही जश्न मना

दसों रोगों के चलते

असमय ही

विदा ले ली संसार से...


इधर बेटा नई-नई नौकरी

माता-पिता का अंतिम संस्कार

बहन-बहनोइयों का सत्कार

लोन का बोझ ढोते

बड़ा ऐश कर रहा 

लोगों की नजर में........


सुनी-सुनाई कही-कहाई सुन

अब बहनें भी आ धमकी

अपने शहरी घर

कानूनी कागजात लेकर

भाई ! हम भी हैं हिस्सेदार

इस शहरी घर पर 

हमारा भी है अधिकार 

हिस्सा दे हमारा !

 करे भी तो क्या

कानून का मारा ?...


तिस पर ये विभिन्न त्योहार 

रक्षा बंधन फिर भाई दूज

इन्हीं से तो निभता है न

भाई-बहन का पवित्र प्यार!


अब बड़ी आसानी से 

कहते हैं  लोग-बाग

पड़ौसी और रिश्तेदार

माँ-बाप तक ही होता है मायका

भाई बड़ा खुदगर्ज निकला

नहीं उसे  बहिनों से प्यार

मुँह नहीं लगाता उन्हें

हे राम ! माँ-बाप बिना

कैसे सूने हो गये

इन बेचारियों के त्योहार !


क्या करें किसे दोष दें

कौन है इन परिस्थितियों

का जिम्मेदार ?

माँ-बाप और उनके संस्कार ?

या  मध्यम वर्ग की

आर्थिक दरकार ?





35 टिप्‍पणियां:

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ.आलोक जी
सादर आभार।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

विचारणीय सवाल सुधा दी। जिसके घर के हालात उसी को पता होते है। लोग तो ऐसे ही कयास लगाकर कुछ भी बोल देते है।

हरीश कुमार ने कहा…

बहुत ही सुंदर लेख mam 🙏

Sudha Devrani ने कहा…

जी ज्योति जी!सही कहा आपने...
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद हरीश जी!

Meena Bhardwaj ने कहा…

सादर नमस्कार,
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।

"मीना भारद्वाज"

कविता रावत ने कहा…

बड़ी बिडम्बना है जो भी जी-जान लगाकर कमाते-धमाते हैं माँ-बाप, उसके लिए कई नालायक औलादें आपस में लड़-भिड़ जाते हैं

सामयिक चिंतनयुक्त मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

Bharti Das ने कहा…

बहुत खूबसूरत रचना

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ.यशोदा जी मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन के मंच पर साझा करने हेतु।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद मीना जी चर्चा मंच में मेरी रचना साझा करने के लिए।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद आ.कविता जी!सारगर्भित प्रतिक्रिया से रचना का सार स्पष्ट कर उत्साहवर्धन करने हेतु।
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार भारती जी!

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

माध्यम वर्ग की आर्थिक दरकार ।एक एक शब्द सटीक और मन में उतरते हुए रचना पढ़ी,क्या खूब बयां की एक घरेलू व्यवस्था की राजनीति । एक अहसास का बखूबी चित्रण ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद जिज्ञासा जी रचना के मर्रम तक पहुँचने हेतु।
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.जोशी जी!

विश्वमोहन ने कहा…

थोड़ा-सा संस्कार और थोड़ी दरकार।

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

मैं समझ सकता हूँ सुधा जी। देखा और भुगता है मैंने। टीका‌-टिप्पणी करने वाले हक़ीक़त क्या जानें? जिस पर बीतती है, वही जानता है। अच्छा यही है कि समक्ष स्थित तथ्यों के अनुरूप उचित निर्णय लिया जाए बिना लोगों के कुछ कहने-सुनने की परवाह किए क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।

Kamini Sinha ने कहा…

क्या करें किसे दोष दें

कौन है इन परिस्थितियों

का जिम्मेदार ?

माँ-बाप और उनके संस्कार ?

या मध्यम वर्ग की

आर्थिक दरकार ?

"ये सवाल" गंभीर चोट करते है मन पर शायद, "मध्यम वर्ग की

आर्थिक दरकार" बहुत सी समस्याओं को जन्म देता है।
एक गंभीर चिंतन है आपकी इस सृजन में,सादर नमन सुधा जी

अनीता सैनी ने कहा…

वाह!दी गज़ब।
मध्यम वर्ग के व्यक्ति की पीड़ा...।
सच पूरा जीवन समेट दिया आपने... वाह!👌

मन की वीणा ने कहा…

सुधा जी निशब्द हूँ मैं आपने सच बयान किया है माता पिता के जाने के बाद पुत्र कौनसी परिस्थितियों से गुजर रहा है कोई देखना नहीं चाहता बस सभी ये आरोप लगाते हैं जैसे माता पिता ने सिर्फ दौलत ही छोड़ी है पीछे, कोई दायित्व नहीं कोई जिम्मेदारियां नहीं ,चुकाने जैसे ऋण नहीं ।
उसकी ख़ुद की आर्थिक आवश्यकताओं को किसी ने समझा, वो भी उन्हीं परिस्थितियों में से गुजर रहा होता है।

बड़ी मेहनत से कमा रहा

इच्छाओं पर अंकुश लगा रहा

पाई-पाई कर बचा रहा

कुछ जरूरी जरूरतों के अलावा

नहीं कर रहा मन की

न बच्चों को करने दे रहा

बचपन से ही उन्हें

सर सहलाकर समझा रहा

कमी-बेसियों को।

कौन समझ था है बस दोष मोड़ती है दुनिया जिसमें काफी स्वयं भुक्त होगी होते हैं।
बस दुसरे के लिए अलग मान दण्ड।
साधुवाद।

Manisha Goswami ने कहा…

बहुत ही मार्मिक और हृदय स्पर्शी रचना
मध्य वर्ग का दुख को बहुत ही अच्छे से बयां किया है आपने!

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत रचना दीदी जी

Sudha Devrani ने कहा…

जी, हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सही कहा आपने जिस पर बीतती है वही जानता है।
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

जी कामिनी जी जरूरतें और धनाभाव भी ऐसे कृत्य करवाती है...
हृदयतलसे धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय अनीता जी!

Sudha Devrani ने कहा…

जी, आ.कुसुम जी!रचना के मर्म को स्पष्ट करती प्रतिक्रिया हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
सही कहा आपने लोग दायित्व जिम्मेदारी या ऋण नहीं देखते बस दौलत देखते हैं बेटे के नाम।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद प्रिय मनीषा जी !

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मनोज भाई!

Sweta sinha ने कहा…

प्रिय सुधा जी,
क्या यथार्थ चित्रण किया है आपने मन स्पर्श कर गयी रचना।
बेटियों का दर्द तो सब देखते हैं पर हर बार बेटा ही गलत हो ये जरूरी नहीं।
बहन हो या भाई या माता-पिता परिस्थितियों के अनुसार ही व्यवहार तय होते हैं चाहे कोई भी वर्ग हो।
सारगर्भित अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

सस्नेह।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ना जानूँ मैं दोष किसका?
श्रम अनर्थक, तोष किसका?

सुन्दर भाव

Sudha Devrani ने कहा…

सही कहा प्रिय श्वेता जी आपने हर बार बेटा ही गलत हो ये जरूरी नहीं...
सुन्दर सारगर्भित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.प्रवीण जी!

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