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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सैनिक, संत, किसान (दोहा मुक्तक)

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सैनिक रक्षा करते देश की, सैनिक वीर जवान । लड़ते लड़ते देश हित, करते निज बलिदान । ओढ़ तिरंगा ले विदा,  जाते अमर शहीद, नमन शहीदों को करे, सारा हिंदुस्तान ।। संत संत समागम कीजिए, मिटे तमस अज्ञान । राह सुगम होंगी सभी, मिले सत्य का ज्ञान । अमल करे उपदेश जो, होगा जीवन धन्य, मिले परम आनंद तब, खिले मनस उद्यान । किसान खून पसीना एक कर , खेती करे किसान । अन्न प्रदाता है वही, देना उसको मान । सहता मौसम मार वह, झेले कष्ट तमाम, उसके श्रम से पल रहा सारा हिंदुस्तान ।         सैनिक, संत, किसान 1) सीमा पर सैनिक खड़े, खेती करे किसान ।    संत शिरोमणि से सदा,  मिलता सबको ज्ञान।    गर्वित इन पर देश है , परहित जिनका ध्येय,    वंदनीय हैं सर्वदा, सैनिक संत किसान ।। 2) सैनिक संत किसान से,  गर्वित हिंदुस्तान ।     फर्ज निभाते है सदा,  लिये हाथ में जान ।     रक्षण पोषण धर्म की,  सेवा पर तैनात,      करते उन्नति देश की,  सदा बढ़ाते मान ।। हार्दिक अभिनंदन आपका 🙏 पढ़िए एक और रचना निम्न लिंक पर ●  मुक्...

प्रवासी (मुक्तक)

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   मुक्तक---मेरा प्रथम प्रयास                       (1) हमें तो गर्व था खुद पे कि हम भारत के वासी हैं दुखी हैं आज जब जाना यहाँ तो हम प्रवासी हैं सियासत की सुनो जानो तो बस इक वोट भर हैं हम सिवा इसके नहीं कुछ भी बस अंत्यज उपवासी हैं                                  ( 2) महामारी के संकट में आज दर-दर भटकते हैं जो मंजिल थी चुनी खुद ही उसी में अब अटकते हैं मदद के नाम पर नेता सियासी खेल हैं रचते कहीं मोहरे कहीं प्यादे बने हम यूँ लटकते हैं                          (3) सहारे के दिखावे में जो भावुकता दिखाते हैं बड़े दानी बने मिलके जो तस्वीरें खिंचाते हैं सजे से बन्द डिब्बे यों मिले अक्सर हमें खाली किसी की बेबसी पर भी सियासत ही सजाते हैं         चित्र गूगल से साभार हार्दिक अभिनंदन आपका🙏 पढ़िए एक और रचना निम्न लिंक पर ●  पत्थरदिल मर्द बड़ा बे...

गीत- मधुप उनको भाने लगा...

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देखो इक भँवरा बागों में आकर मधुर गीत गाने लगा कभी पास आकर कभी दूर जाकर अदाएं दिखाने लगा पेड़ों की डाली पे झूले झुलाये फूलों की खुशबू को वो गुनगुनाए प्रीत के गीत गाकर वो चालाक भँवरा पुष्पों को लुभाने लगा कभी पास आकर कभी दूर जाकर अदाएं दिखाने लगा । नहीं प्रेम उसको वो मकरन्द चाहता इक बार लेकर कभी फिर न आता मासूम गुल को बहकाये ये जालिम स्वयं में फँसाने लगा कभी पास आकर कभी दूर जाकर अदाएं दिखाने लगा । सभी फूल की दिल्लगी ले रहा ये वफा क्या ये जाने नहीं यहाँ आज कल और जाने कहाँ ये सदाएं भी माने नहीं पटे फूल सारे रंगे इसके रंग में मधुप उनको भाने लगा कभी पास आकर कभी दूर जाकर अदाएं दिखाने लगा । ना लौटा जो जाके तो गुल बिलबिलाके राह उसकी तकने लगे विरह पीर सहते , दलपुंज ढ़हते नयन अश्रु बहने लगे दिखी दूजि बगिया खिले फूल पर फिर बेवफा गुनगुनाने लगा । कभी पास आकर कभी दूर जाकर अदाएं दिखाने लगा ।      चित्र साभार गूगल से पढ़िए मानवीकरण पर आधारित एक और गीत              ◆  पुष्प और भ्रमर

गीत-- शीतल से चाँद का क्या होना

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                इस गरम मिजाजी दुनिया में शीतल से चाँद का क्या होना कुछ दिन ही सामना कर पाता फिर लुप्त कहीं छुप छुप रोना जस को तस सीख न पाया वो व्यवहार कटु न सह पाता क्रोध स्वयं पीकर अपना निशदिन ऐसे घटता जाता निर्लिप्त दुखी सा बैठ कहीं प्रभुत्व स्वयं का फिर खोना इस गरम मिजाजी दुनिया में शीतल से चाँद का क्या होना स्वामित्व दिखाने को जग में कड़वा बनना ही पड़ता है सूरज जब ताप उगलता है जग छाँव में तभी दुबकता है अति मीठे गुण में गन्ने सा कोल्हू में निचोड़ा नित जाना इस गरम मिजाजी दुनिया में शीतल से चाँद का क्या होना                          चित्र साभार गूगल से...

सम्भावित डर

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                चित्र गूगल से साभार पति की उलाहना से बचने के लिए सुमन ने ड्राइविंग तो सीख ली,  मगर भीड़ भरी सड़कों पर गाड़ी चलाते हुए उसके हाथ-पाँव फूल जाते।आज बेटी को स्कूल से लाते समय उसे दूर चौराहे पर भीड़ दिखी तो उसने स्पीड स्लो कर दी। "मम्मा ! स्पीड क्यों स्लो कर दी आपने" ? बेटी  झुंझलाकर बोली तो सुमन बोली "बेटा !आगे की भीड़ देखो!वहाँ पहुँचकर क्या करुँगी, मुझे डर लग रहा है, छि!  मेरे बस का नहीं ये ड्राइविंग करना"। "अभी स्पीड ठीक करो मम्मा ! आगे की आगे देखेंगे। ये गाड़ियों के हॉर्न सुन रहे हैं आप? सब हमें ही हॉर्न दे रहे हैं मम्मा ! उसकी झुंझलाहट देखकर सुमन ने थोड़ी स्पीड तो बढ़ा दी पर सोचने लगी, बच्ची है न, आगे तक  नहीं सोचती। अरे ! पहले ही सोचना चाहिए न आगे तक, ताकि किसी मुसीबत में न फँसे । वह सोच ही रही थी कि उसी चौराहे पर पहुँच गयी जहाँ की भीड़ से डरकर उसने स्पीड कम की थी। परन्तु ये क्या! यहाँ तो सड़क एकदम खाली है! कोई भीड़ नहींं ! साथ में बैठी बेटी को अपने में मस्त देखकर वह सोची, चलो ठीक है इसे ध्यान नहीं, कोई ब...

नवगीत--- 'तन्हाई'

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 अद्य को समृद्ध करने हेतु अपने सुख थे त्यागे अब न अपने साथ कोई जो थे अपनी राह भागे स्वस्थ थे सुख ले न पाये , थी कहाँ परवाह तन की। भविष्य के सपने सजाते, ना सुनी यूँ चाह मन की। व्याधियां हँसने लगी हैं, सो रहे दिन रात जागे। अब न अपने साथ कोई, जो थे अपनी राह भागे। आज ऐसे यूँ अकेले, जिन्दगी के दिन हैं कटते । अल्लसुबह से रात बीते, यूँ अतीती पन्ने फटते। जागते से नेत्र बोले, स्वप्न झूठी बात लागे। अब न अपने साथ कोई, जो थे अपनी राह भागे।     चित्र गूगल से साभार

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