गुरुवार, 5 मार्च 2020

आज जीने के लिए


white flower


शक्ति की आराध्य जो
रूप चण्डी चाहिए
गा सके झूठी कथा ,
वो भुशुण्डि चाहिए।

सत्य साक्षात्कार हो,
हर तरफ दुत्कार हो ।
दोष अपने सर धरे,
और जो लाचार हो।
यूँ बिके मजबूर से,
आज मण्डी चाहिए।
गा सके झूठी कथा,
वो भुशुण्डि चाहिए


हाथ पर यों हाथ धर,
सब  मिले आराम से ।
हुक्म पर दुनिया चले,
सिद्ध हों सब काम से।
उच्च पद डिग्री बिना,
खास झण्डी चाहिए ।
गा सके झूठी कथा,
वो भुशुण्डि चाहिए।


यौवना को देखकर,
लार टपकाते यहाँ ।
नर  मुखौटे में सभी
सियार छुप जाते यहाँ।
आज जीने के लिए ,
इक शिखण्डी चाहिए।
गा सके झूठी कथा
ऐसा भुशुण्डि चाहिए



23 टिप्‍पणियां:

विश्वमोहन ने कहा…

आज का सच और छलकती पीड़ा। आभार।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

नारी तन को देखकर,
लार टपकाते यहाँ ।
मनुष्य के मुखौटे में,
सियार छुप जाते यहाँ।
नवशक्ति के आराध्य ये,
रक्षा हेतु चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए ,
इक शिखण्डी चाहिए।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, सुधा दी।

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

क्या बात है बहुत सुंदर यथार्थ को दिखाती सुन्दर अभिब्यक्ति।

उर्मिला सिंह ने कहा…

वाह कमाल की अभिव्यक्ति.......

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद विश्वमोहन जी !
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद, ज्योति जी !
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार भाई !

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद उर्मिला जी !
सस्नेह आभार।

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 06 - 03-2020) को "मिट्टी सी निरीह" (चर्चा अंक - 3632) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
अनीता लागुरी"अनु"

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

गहन चिन्तन छुपी है आपकी इस अभिव्यक्ति में । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।

मन की वीणा ने कहा…

बहुत बहुत सुंदर सार्थक सृजन सुधा जी।
।मन को छू गया व्याप्त सत्य पर सीधा प्रहार करता गीत ।

Kamini Sinha ने कहा…

नारी तन को देखकर,
लार टपकाते यहाँ ।
मनुष्य के मुखौटे में,
सियार छुप जाते यहाँ।
नवशक्ति के आराध्य ये,
रक्षा हेतु चण्डी चाहिए।
आज जीने के लिए ,
इक शिखण्डी चाहिए।

यथार्थ दिखती बेहतरीन सृजन ,सादर नमन सुधा जी

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी मेरी रचना को प्रतिष्ठित चर्चा मंच पर साझा करने हेतु
सस्नेह आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद श्वेता जी ! मेरी रचना को हलचल के प्रतिष्ठित मंच पर साझा करने हेतु....
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद पुरुषोत्तम जी !
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद कुसुम जी !
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद कामिनी जी !
सादर आभार।

रेणु ने कहा…

जब सच साक्षात्कार हो,
हर तरफ दुत्कार हो ।
गुनाह अपने सर ले जो,
ऐसा कोई लाचार हो।
मजबूर बिकते हों जहाँ,
ऐसी कोई मण्डी चाहिए
आज जीने के लिए ,
इक शिखण्डी चाहिए।
बहुत ख़ूब सुधा जी | आज आपकी रचना में ये पंक्तियाँ पढ़कर मन उदास हो गया | यही कडवा सच तो आज का सच है | किसी लाचार को पल में खरीद कर उसका शोषण और साधन संपन्न को पल में महिमामंडन यही है काला कला सच | रचना की हर पंक्ति आज के समाज और देश की सच्चाई को सशक्त ढंग से प्रस्तुत करती है | हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |

Sudha Devrani ने कहा…

जी सखी! हृदयतल से धन्यवाद आपका उत्साहवर्धन हेतु....
सस्नेह आभार।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

क्रोध जो जायज़ है ...
आज के समाज का चित्र यही है ... झूठ का बोलबाल ... बिकती हुई लाचारी ... बल की ताक़त वालों की दुनिया बन गई है ...
गहरा क्षोभ है रचना में ... लाजवाब रचना ...

Sudha Devrani ने कहा…

रचना का सारांश स्पष्ट करती प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी !
सादर आभार आपका...।

Radhey ने कहा…

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