मोहजाल
माँ ने ही उसे पढ़ा- लिखा कर काबिल इंसान बनाया ।
बहुत प्यार और सम्मान था उसकी नजरों में माँ के लिए। माँ की उफ तक सुनकर उसकी तो जैसे रुह ही काँप जाती ।
बस माँ के इर्द गिर्द ही घूमता रहता । खूब ख्याल रखता माँ का। आखिर माँ के सिवाय उसका था भी कौन।
माँ भी बहुत खुश रहती थी उससे।
अपने बेटे की काबिलियत और सेवाभाव का बखान करते करते मन नहीं भरता था उसका । जिससे भी कहती साथ में उसके रिश्ते की भी बात करती ।
बस अब घर बस जाय मेरे प्रमोद का । सुन्दर सी लड़की मिले तो हाथ पीले कर अपना फर्ज निभा गंगा नहा आऊँ ।
और सुन ली भगवान ने उसकी । देखते ही देखते रिश्ता पक्का हुआ और फिर चट मँगनी पट ब्याह ।
प्रमोद अब अपनी दुनिया में व्यस्त हो गया।
मोह का जंजाल भी कैसा रचा है न ऊपर वाले ने।
जीते जी कहाँ खतम होता है। पहले बेटे के ब्याह का फिर पोते-पोती का मोह , और फिर उन्हें बड़ा होते हुए देखने का ।
माँ - बेटे की छोटी सी दुनिया अब कुछ पसरने लगी । और साथ ही बदलने लगे प्रेम के एहसास भी।
माँ के प्रति भी उसका प्यार कम तो नहीं हुआ हाँ बँट जरूर गया था । माँ के साथ-साथ पत्नी और बच्चों में भी ।
अब गृहस्थी है तो झमेले भी हैं और जिम्मेदारियाँ भी । प्रमोद भी इन्हीं झमेले और जिम्मेदारियों में ऐसे उलझा कि इन्हें सुलझाने के अलावा कभी कुछ और न सोचा ना ही सूझा ।
उसकी मेहनत और लगन एवं माँ की छत्र-छाँव में उसकी गृहस्थी की गाड़ी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ ही रही थी, कि एक साँझ जब वह घर लौटा तो पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों के बीच सुबकते बीबी-बच्चे एवं जमीन में सफेद कफन ओढ़े चिरनिंद्रा में सोयी माँ को देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। आसमान मानों उसके सर पर उतर आया।
मानव जीवन के इस शाश्वत सत्य की उसने अपनी माँ के बारे में कभी कल्पना भी नहीं की थी । माँ की आकस्मिक मौत से उसका मानसिक संतुलन डगमगाने लगा।उसके बचपन और पिता की मौत का हर दृश्य उसकी आँखों के सामने जीवंत हो उठा।
जब पिता की बीमारी और घर की आर्थिक बेबसी उसके बालमन को कचोटती कि काश....
तब माँ उसे गले से लगाकर कहती बेटा ! जाने वाले को कौन रोक सकता है भला..? उनके नसीब में जो था वही हुआ । तू दिल छोटा मत कर जब तू बड़ा होगा न तब सब ठीक हो जायेगा...।
और अब माँ ! ....माँ ने तो कभी कुछ बताया भी नहीं कि वह अस्वस्थ है । फिर कैसे...? माँ कैसे छोड़ सकती है मुझे ?...माँ जानती है न पापा के बाद तेरे सिवाय कौन है मेरा ?...और अब तो मैं बड़ा होकर सब ठीक भी कर रहा हूँ न, तो इलाज भी करवाता न तेरा....तू बताती तो सही...क्यों नहीं बताया माँ !...?
दो बच्चों का पिता अपनी माँ के निश्चेत देह से लिपट छोटे बच्चे की तरह बिलख - बिलख कर रो रहा था। मन ही मन पछता रहा था ,वह खुद को कोस रहा था कि मैंने माँ को समझा क्यों नहीं , उसके बिना बोले ही डॉक्टर को दिखाया क्यों नहीं । सब मेरी गलती है...माँ माफ कर दे मुझे......
चाँद की चाँदनी में मेरी नजरों मे थी
माँ के चेहरे की सलवट दिखाई न दी।
मैं अपनी ही दुनिया में यूँ व्यस्त था
जिन्दगी थी नयी सी,और मैं मस्त था
वक्त कब यूँ बढ़ा, ये पता ना चला
मैंं पति फिर पिता बनके अलमस्त था
जिन्दगी थी नयी सी,और मैं मस्त था
वक्त कब यूँ बढ़ा, ये पता ना चला
मैंं पति फिर पिता बनके अलमस्त था
मैंने पूछा नहीं माँ ने बोला नहीं
माँ किधर खप रही मैंने सोचा नहीं
मेरी अपनी ही दुनिया के लफड़े बहुत
मैं उलझता रहा, माँ सुलझाती रही
नन्हे बच्चे की गूँजी जब किलकारियां
तो कराहना कभी माँ का सुन ना सका
वो कराहके ही सब कुछ निभाती रही
मेरी खुशियों में निज दुख भुलाती रही
मेरे अब की और कल की फिकर थी उसे
पाई-पाई बचाकर जुगाती रही
दर्द जोड़ों के अपने भुला करके माँ
नाती-पोतों संग वो मुस्कराती रही
आज चुप सो गयी फिर उठी न कभी
अनसुना कर गयी, मेरी आवाज को
पहले देखा न उसका ये पत्थर सा दिल
मैं बुलाता रहा माँ रुलाती रही
एक अवसर दिया ना मुझे आज क्यों
ऐसा अपराध क्या मैंने अब कर दिया
उम्र भर अपने आँचल सहेजा मुझे
आज सब छाँव से दूर क्यों कर दिया
तेरे बिन माँ न जीवन मैं जी पाउँगा
मैं नहीं दूर तुझसे माँ रह पाउँगा
तेरे बिन अब सुबह ही कहाँ हो रही
इस अँधेरे में डरकर किधर जाउँगा
सोचा ना मैंने यूँ दूर जाओगी माँ !
जैसे ननिहाल से लौट आओगी माँ !
झिड़कियों में छुपा करके निज लाड को
मेरी गलती मुझी से गिनाओगी माँ !
सोचा ना मैने यूँ दूर जाओगी माँ !
तेरे बिन माँ ये जीवन जीवन कहाँ
अब तेरे बिन मुझे भी क्या रहना यहाँ
तेरे बिन यूँ तड़पता हूँ, देखो न माँ !
तेरे बिन मेरा जीवन जीवन कहाँ?
माँ के बिछोह और दर्द की इम्तिहा में जीवन के प्रति विरक्ति अपने चरम पर पहुँची कि तभी नन्ही कोमल उँगलियों की छुवन का एहसास दोबारा जीवन में लौटा लाया। आँसुओं की बरसात और दुख के घने कोहरे के पार खड़े अपने मासूम से बच्चे और उनके प्रति जिम्मेवारियाँ और अपने फर्ज......
आज वह समझ पाया कि पिता को खोने के बाद माँ भी इसी तरह जीवन जीने को विवश हुई होंगी मेरे खातिर।
और साथ ही समझ पाया उस कलाकार की महिमा को। जिसने जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य का ज्ञान कराकर भी जीवन के प्रति आसक्ति का ऐसा मोहजाल रचा है कि अवश्यंभावी मृत्यु को अनदेखा कर रच बस रहा है उसका ये संसार।
चित्र साभार;pixabay.com से...
टिप्पणियाँ
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
मेरे ख़याल से इस कविता को कहानी के एक हिस्से के रूप में नहीं. बल्कि स्वतंत्र रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए था.
इस कविता में ही माँ-बेटे के प्रेम की, माँ की कुर्बानियों की, अनजाने में बेटे की माँ के प्रति ग़ैर-जिम्मेदारियों की और फिर उसके पश्चाताप की पूरी कहानी है.
आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (02-07-2021) को "गठजोड़" (चर्चा अंक- 4113 ) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
सादर आभार।
आपकी अनुभवी एवं परखी दृष्टि को शत-शत नमन।
सुझाव एवं प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।
सादर आभार।
सुंदर शब्दों से लिखी गई मानवीय संवेदना।
बहुत गहराई से आपने हर पहलू दिखाया है।
अप्रतिम अनुपम सृजन।
और माता पिता के प्रति सचेत कर्तव्य बोध देती सार्थक रचना।
सादर आभार।
मार्मिक, दिल को छूते हुवे भाव हैं ... ये सच अहि की जब इंसान खुद उसी परिस्थिति में आता है तब समझ पाता है और एहसास होता है उसे समय का ...
बहुत भावपूर्ण ....
सादर आभार।
सादर आभार।
जिसने जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य का ज्ञान कराकर भी जीवन के प्रति आसक्ति का ऐसा मोहजाल रचा है कि अवश्यंभावी मृत्यु को अनदेखा कर रच बस रहा है उसका ये संसार।
आपकी इस कहानी और कविता के संयोजन ने जीवन दर्शन करा दिया इंसान सब कुछ जानता है फिर भी अनजान बना रहता है इस मोहजाल में होश तब आता है जब अपनी कीमती चीज़ खो देता है। शब्द नहीं है मेरे पास आपकी इस अनमोल कृति के लिए। बस,सादर नमन है आपकी लेखनी को सुधा जी। जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें आपको
मैं नहीं दूर तुझसे माँ रह पाउँगा
तेरे बिन अब सुबह ही कहाँ हो रही
इस अँधेरे में डरकर किधर जाउँगा
बहुत ही सुंदर सृजन l
सादर
शुभकामनाओं सहित सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु।
सादर आभार।
अनसुना कर गयी, मेरी आवाज को
पहले देखा न उसका ये पत्थर सा दिल
मैं बुलाता रहा माँ रुलाती रही" -
"अवश्यंभावी मृत्यु को अनदेखा कर रच बस रहा है उसका ये संसार।" - दोनों मानव जीवन के कटु यथार्थ .. शायद ...
आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।