गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

आराम चाहिए......


man lying below a tree (enjoying in tree's shade)
                             
                                                                       
आज हर किसी को आराम चाहिए
 न हो हाथ मैले,न हो पैर मैले....
ऐसा अब कोई काम चाहिए....
बिन हिले-डुले कुछ नया कर दिखायेंं !!
हाँ ! सुर्खियों में अपना अब नाम चाहिए
आज हर किसी को आराम चाहिए.....

मुश्किलें तो नजर आती हैं सबको बड़ी-बड़ी,
स्वयं कुछ कर सकें, ऐसी हिम्मत नहीं पड़ी ।
सब ठीक करने वाला, अवतारी आये धरा पर,
नरतनधारी कोई "श्रीकृष्ण या श्रीराम" चाहिए !!
आज हर किसी को आराम चाहिए.........

बच्चों को दिखाते हैं, ये अन्तरिक्ष के सपने !
जमीं में नजर आये न इनको कोई अपने
जमींं में रखा क्या, मिट्टी से है घृणा .....
पर घर में भरे अन्न के गोदाम चाहिए !!
आज हर किसी को आराम चाहिए.........

माँ-बाप मुसीबत लग रहे हैंं इनको आज ,
कटी पतंग सा उड़ रहा है अब समाज ।
दो शब्द बड़ों के चुभते है शूल से !
मेहनत करें भी कैसे,नाजुक हैं फूल से....?
आज को यूँ ही गवां रहे तो क्या....?
"कल मिलेगी हर खुशी" ये इन्तजाम चाहिए !!
आज हर किसी को आराम चाहिए........

                         चित्र-साभार गूगल से...










19 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी खरी खरी बात कह दी है । आज समाज को आईना दिख रही है ये रचना ।

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    1. अत्यंत आभारी हूँ आ.संगीता जी!आपकी अनमोल प्रतिक्रिया एवं निरन्तर सहयोग हेतु
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

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  2. गोपेश मोहन जैसवाल25 अगस्त 2021 को 5:45 pm बजे

    भाषण में काम कीजिए, कागज़ पे कीजिए,
    नाज़ुक हैं हाथ-पैर तो आराम दीजिए .

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  3. आज की युवान भाई बहिनों को शायद जरूर प्रेरणा मिलेगी की ओ अपना स्वमूल्यांकन कर समाज एवं देश के लिए कुछ अपना अंशदान देंगे। बहुत सुंदर दर्शन कराती रचना साधुवाद।

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  4. वाह!गज़ब लिखा।
    सराहना से परे।
    सादर

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    1. आभारी हूँ अनीता जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

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  5. बात ठीक ही है सुधा जी आपकी। 'हर किसी' पर चाहे यह लागू न हो किन्तु ऐसी प्रवृत्ति बनती जा रही है लम्बे समय से। परिश्रम की महिमा का घटना वास्तव में उचित नहीं। आभार आपका सही समय पर स्मरण कराने के लिए।

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    1. जी जितेन्द्र जी! आजकल बच्चों को ही देखें तो हिलने से खुश नहीं हैं...कोई छोटा-मोटा सामान लाने को कहो तो सीधे ऑर्डर कर देते हैं पढ़ाई भी डिजिटल हो गयी अब तो कलम घिसने जितनी मेहनत भी क्यों करनी मार्केटिंग कम्पनियों के चलते बस फॉलोअर्स बनाए और काम हो गया मेहनत को गधा मजदूरी कहते सुन सकते हैं इन्हें माना कि बहुत स्मार्ट हो रहे हैं ये पर शरीर को चलाना भी तो जरूरी है इस आराम का नतीजा क्या होगा.... और सभी आराम ही करने लगें तो..?
      अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।




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  6. बच्चों को दिखाते हैं, ये अन्तरिक्ष के सपने !
    जमीं में नजर आये न इनको कोई अपने
    जमींं में रखा क्या, मिट्टी से है घृणा .....
    पर घर में भरे अन्न के गोदाम चाहिए !!
    आज हर किसी को आराम चाहिए........बहुत ही यथार्थपूर्ण सार्थक रचना की है आपने सुधा जी । बधाई हो 💐💐

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    1. आभारी हूँ जिज्ञासा जी!बहुत बहुत धन्यवाद आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

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  7. सुधा दी,पहले कहा जाता था कि आराम हराम है। लेकिन आजकल की कहावत है कि काम हराम है।
    बहुत सुंदर रचना।

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  8. सहृदय धन्यवाद मीना जी!मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा कने हेतु।
    सस्नेह आभार।

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  9. जी ज्योति जी सही कहा आपने...
    तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

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  10. सटीक! सही सही चित्रण, आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसी ही मनोवृत्ति बन गई हैं ।
    बहुत सुंदर सृजन सुधा जी ।

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    1. आभारी हूँ कुसुम जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

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