सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे, तेरे पुण्यों का भार तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ● तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 दिसम्बर 2022 को साझा की गयी है...
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द परआप भी आइएगा....धन्यवाद!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
हटाएंसीख तो सटीक है । लेकिन अपने हिस्से का प्रेम किसी और कि चाहत बन जाये तब शायद बहुत मुश्किल होता होगा स्वयं को संभालना ।
जवाब देंहटाएंसार्थक सृजन ।
सही कहा आपने मुश्किल तो होता होगा परंतु सम्भालना तो तब भी होता ही होगा न खुद को अपनों की खातिर ।
हटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार ।
वो चाँद आसमां का ठहरा,
जवाब देंहटाएंचकोर सा तेरा तड़पना क्या ?
फिर मन ही मन यूँ जलना क्या,
इकतरफा प्रेम यूँ करना क्या ?
इकतरफा प्यार का भी अपना ही आनंद है सुधा जी ☺️ इसमें किसी और के होने की जरूरत जो नहीं है। ये तो मज़ाक था, इस लाजबाव सृजन तक लाने के लिए यशोदा दी को हृदयतल से धन्यवाद 🙏
मजाक नहीं कामिनी जी ये तो एक जबरदस्त नजरिया है कि इसमें किसी और की जरूरत नहीं...
हटाएंदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
एक तरफे प्रेम से दुखित लोगों के मोह से निवारणीय सुंदर आह्वान।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
हटाएंप्रिय सुधा जी,किसी प्रेम पीर की मारी नायिका के लिए बहुत प्रेरक सीख देंती अत्यंत भाव-पूर्ण अभियक्ति है।
जवाब देंहटाएंएकतरफा प्रेम सदैव ही किसी के लिए बहुत दुखद रहता है। पर यदि इन्सान बस यही सोचकर प्रेम करना छोड़ दे तो उसका प्रेम बहुत हल्का है। एक संवेदनशील मन के लिए प्रेम प्राप्य हो या प्राप्य, बहुत अनमोल होता है।। अपनी तरह की इस मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आपको।❤
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार रेणु जी आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ ।
हटाएंकभी प्रिय श्वेता ने भी इसी तरह की एक रचना लिखी थी और उस पर एक काव्यात्मक प्रतिक्रिया के रूप में आपकी रचना से मिलतीं- जुलती कुछ पंक्तियाँ लिखी थी जो यहाँ लिख रही हूँ।---
जवाब देंहटाएंकाश ! कोई उस पगली को समझाए तो,
पोंछ दे आँसू उसके
कस सीने से उसे लगाये तो !
कैसे लौट वो अब आयेगा,
जो था बस एक रात का सपना!
लाख बाँधती उसको आँचल से
वो था नहीं कभी भी अपना!
होगा कहीं किसी राजकुमार -सा
जो चढ़ घोड़े पर आयेगा!
सूनी तितलियों में पलकों की
रंग सुनहरी भर जाएगा!
बैठ किसी कोने में तनिक सा,
सपनों के साज सजाये तो !
अभी शेष बड़े रंग जीवन के
सोच ज़रा मुस्काए तो!!
🙏❤
प्रिय रेणु जी निःशब्द हूँ इन भावप्रवण पंक्तियों से ...पंक्तियां कहाँ ये तो पूर्ण सृजन है जो रचना से भी ज्यादा हृदयस्पर्शी एवं लाजवाब है।
हटाएंमेरी रचना पर आपकी भावाभिव्यक्ति की ये अनमोल पंक्तियां पाकर अभिभूत हूँ मैं ।जिसके लिए आभार शब्द बहुत कम है ।
बस ढ़ेर सारा स्नेह ❤️❤️