आओ बुढ़ापा जिएं ..
वृद्धावस्था अभिशाप नहीं । यदि आर्थिक सक्षमता है तो मानसिक कमजोर नहीं बनना । सहानुभूति और दया का पात्र न बनकर, मनोबल रखते हुए आत्मविश्वास के साथ वृद्धावस्था को भी जिन्दादिली से जीने की कोशिश जो करते हैंं , वे वृृद्ध अनुकरणीय बन जाते है ।
मानसिक दुर्बलता से निकलने के लिए यदि कुछ ऐसा सोचें तो -
जी लिया बचपन , जी ली जवानी
आओ बुढापा जिएं ।
यही तो समय है, स्वयं को निखारेंं
जानेंं कि हम कौन हैं ?
कभी नाम पहचान था
फिर हुआ काम पहचान अपनी
आगे रिश्तों से जाने गये
सांसारिकता में हम खो गये ।
ये तन तो है साधन जीवन सफर का
ये पहचान किरदार है
इन्हीं में उलझकर क्या जीवन बिताना
जरा अब तो जाने ,कहाँँ हमको जाना ?
यही तो समय है स्वयं को पहचाने
जाने कि हम कौन हैं ?
क्या याद बचपन को करना
क्या फिर जवानी पे मरना
यदि ये मोह माया रहेगी
तो फिर - फिर ये काया मिलेगी
भवसागर की लहरों में आकर
क्या डूबना क्या उतरना ?
जरा ध्यान प्रभु का करें हम,
आत्मज्ञान खुद को तो दें हम
यही तो समय है , स्वयं को निखारें
जाने कि हम कौन हैं ?
अभिशाप क्यों हम समझें इसे
निरानन्द बस तन ही है
आनन्द उत्साह मन में भरें तो,
जवाँ आज भी मन ये है।
अतीती स्मृतियों से बाहर निकलके
नयेपन को मन से स्वीकार कर के
वक्त के संग बदलते चलें
सुगम से सफर की हो कामनाएं
यही तो समय है स्वयं को निखारें
जाने कि हम कौन हैं ?
क्या रोना अब क्या पछताना ?
क्या क्या किया क्यों गिनाना
हम वृक्ष ऊँचे सबसे बड़े
छाँव की आस फिर क्यों लगाना
सबको क्षमा, प्यार देंगे अगर,
ऊपर से वह छाँव देगा !
जीवन का अनुभव है साथ अपने
क्या डरना कोई घाव देगा ?
मूल्यांकन स्वयं का करें वक्त रहते
मुक्ति / मौक्ष को जान पायें
यही तो समय है स्वयं को निखारें
जानें कि हम कौन हैंं ?
कुछ ऐसा बुढ़ापा हम जीकर दिखायें
नहीं डर किसी को बुढ़ापे का आये ,
बदलें सोच उनकी जो बोझ कहते,
पुनः नवयुवाओं से सम्मान पायेंं ।
प्राचीन हिन्दत्व लौटा के लाये ।
यही तो समय है स्वयं को निखारें
जानेंं कि हम कौन है ?
चित्र: गूगल से साभार...
अभिशाप क्यों हम समझें इसे
निरानन्द बस तन ही है
आनन्द उत्साह मन में भरें तो,
जवाँ आज भी मन ये है।
अतीती स्मृतियों से बाहर निकलके
नयेपन को मन से स्वीकार कर के
वक्त के संग बदलते चलें
सुगम से सफर की हो कामनाएं
यही तो समय है स्वयं को निखारें
जाने कि हम कौन हैं ?
क्या रोना अब क्या पछताना ?
क्या क्या किया क्यों गिनाना
हम वृक्ष ऊँचे सबसे बड़े
छाँव की आस फिर क्यों लगाना
सबको क्षमा, प्यार देंगे अगर,
ऊपर से वह छाँव देगा !
जीवन का अनुभव है साथ अपने
क्या डरना कोई घाव देगा ?
मूल्यांकन स्वयं का करें वक्त रहते
मुक्ति / मौक्ष को जान पायें
यही तो समय है स्वयं को निखारें
जानें कि हम कौन हैंं ?
कुछ ऐसा बुढ़ापा हम जीकर दिखायें
नहीं डर किसी को बुढ़ापे का आये ,
बदलें सोच उनकी जो बोझ कहते,
पुनः नवयुवाओं से सम्मान पायेंं ।
प्राचीन हिन्दत्व लौटा के लाये ।
यही तो समय है स्वयं को निखारें
जानेंं कि हम कौन है ?
चित्र: गूगल से साभार...
टिप्पणियाँ
बेहतरीन 👌
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-4-22) को "शुक्रिया प्रभु का....."(चर्चा अंक 4391) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत प्यारी कविता।
क्या क्या किया क्यों गिनाना
हम वृक्ष ऊँचे सबसे बड़े
छाँव की आस फिर क्यों लगाना
सबको क्षमा, प्यार देंगे अगर,
ऊपर से वह छाँव देगा !
जीवन का अनुभव है साथ अपने
क्या डरना कोई घाव देगा ?
मूल्यांकन स्वयं का करें वक्त रहते
मुक्ति / मौक्ष को जान पायें
यही तो समय है स्वयं को निखारें
जानें कि हम कौन हैंं ?////
बहुत ख़ूब प्रिय सुधा जी 👌👌👌अत्यंत मधुर और सरस अनुभूतियों को शब्द देती रचना के लिए निश्ब्द हूँ!!
बुढापा असश्क्त ना हो तो उसके जैसा आनन्द संभवतः कहीं नही।ये मुक्ति का द्वार है जहाँ कोई भी इन्सान कुल मिलाकर हरेक वर्जना से मुक्त हो स्वतंत्र जी सकता है। जीवन के इस सांध्यकाल से डरने वाले यदि इसकी तैयारी समय पूर्व करें तो इसका भरपूर आनंद उठाया जा सकता है।बहुत प्रेरक पोस्ट जिसमें निहित भाव शायद मेरे भी है पर इन्हें लिख पाने में सक्षम नहीं मैं।सस्नेह बधाई आपको।