शनिवार, 3 दिसंबर 2016

बच्चों के मन से

 

 little boy thinking     

             
  
               माँ ! तुम इतना बदली क्यों?
               मेरी प्यारी माँ बन जाओ,
               बचपन सा प्यार लुटाओ यों
               माँ तुम इतना बदली क्यों?
                             
                             
              बचपन में गिर जाता जमीं पर,
              दौड़ी- दौड़ी आती थी।
              गले मुझे लगाकर माँ तुम,
              प्यार से यों सहलाती थी।
              चोट को मेेरी चूम चूम कर ,
                इतना लाड़ लड़ाती थी।
             और जमीं को डाँट-पीटकर
              सबक सही सिखाती थी।
      
              अब गिर जाता कभी कहीं पर,
              चलो सम्भल कर, कहती क्यों।
              माँ ! तुम इतना बदली क्यों?
       
      
               जब छोटा था बडे़ प्यार से,
               थपकी देकर सुलाती थी।
               सही समय पर खाओ-सोओ,
               यही सीख सिखलाती थी।
               अब देर रात तक जगा-जगाकर,
               प्रश्नोत्तर याद कराती क्यों?
               माँ! तुम इतना बदली क्यों?
       
       
               सर्दी के मौसम में मुझको,
               ढककर यों तुम रखती थी।
               देर सुबह तक बिस्तर के,
              अन्दर रहने को कहती थी।
              अब तड़के बिस्तर से उठाकर,
               सैर कराने ले जाती क्यों?
               फिर जल्दी से सब निबटा कर,
               स्कूल जाओ कहती क्यों?
               माँ तुम इतना बदली क्यों?
     
              आज को मेरा व्यस्त बनाकर,
              कल को संवारो कहती क्यों?
               माँ! तुम इतना  बदली क्यों?


12 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 27 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.यशोदा जी!मेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु।
सादर आभार।

Sweta sinha ने कहा…

समय के साथ माँ का व्यवहार बच्चे के जीवन को सही दिशा देने के लिए बदलता रहता है।
बच्चे का मासूम प्रश्न।
बहुत सुंदर रचना प्रिय सुधा जी।
सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, पर बच्चे कहाँ समझते हैं या सब समझते हुए माँ से छूट लेने के लिए मासूम सवालों में उलझाते हैं...
सहृय धन्यवाद एवं आभार आपका।

रेणु ने कहा…

कुछ बच्चे बहुत भावुक होते हैं। उनके मन में अनगिन प्रश्न तैरते रहते हैं। उन्हें क्या पता------ मां एक काम अनेक। बच्चा जब अबोध होता है तो उसका हर काम मां की जिम्मेवारी होती है पर बड़ा होने पर भी उसके मन कहीं न कहीं ये लालसा बनी रहती है कि मां उसे बच्चा ही समझे। बालक के इन्हीं मासूम भावों में बंधी रचना के लिए बधाई।

Sudha Devrani ने कहा…

जी रेणु जी! रचना का भाव स्पष्ट कर सराहनासम्पन्न प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

विश्वमोहन ने कहा…

कविता पढ़ते पढ़ते बालपन में मन प्रवेश कर गया। यही कविता की उपलब्धि है। बधाई!!!

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बच्चों के मासूम प्रश्न और माँ की सही ज़िम्मेदारी ...खूबसूरती से शब्दों में बांधा है ।
बहुत प्यारी रचना

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपकाउत्साहवर्धन हेतु।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

उम्र के साथ साथ माँ का बच्चों के प्रति व्यवहार कैसा बदलता है और इससे बच्चे के मन मे कैसे कैसे सवाल आते है इसका बहुत ही सुंदर वर्णन किया है आपने सुधा दी।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी! रचना का मर्म स्पष्ट करने हेतु।

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