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आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

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  आओ बच्चों ! अबकी बारी  होली अलग मनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें  छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग  सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं  जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए  एक और रचना इसी ब्लॉग पर ●  बच्चों के मन से

"नववर्ष मंगलमय हो"

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                  नववर्ष के शुभ आगमन पर,                   शुभकामनाएं हैं हमारी।                   मंगलमय जीवन हो सबका,                   प्रेममय दुनिया हो सारी।                   हवा सुखमय मधुर महके,                   हरितिमा अपनी धरा हो।                   खुशनुमा  आकाश अपना,                   स्वर्ग सा संसार हो।                   नववर्ष ऐसा मंगलमय हो।                           आशाओं के अबुझ दीपक,                  अब जले हर इक सदन में। ...

"तुम हो हिन्दुस्तानी"

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   प्यारे बच्चों ! दुनिया में तुम नया सवेरा लाना,        जग में नाम कमाना ,कुछ नया-सा कर के दिखाना।          फैली तन्हाई, अब तुम ही इसे मिटाना,             ऐसा कुछ कर जाना..   गर्व करें हर कोई तुम पर "तुम हो हिन्दुस्तानी"।       क्षितिज का तुम भ्रम मिटाना,          ज्ञान की ऐसी ज्योति जगाना।             धरा आसमां एक बनाकर,                सारे भेद मिटाना....                 कुछ ऐसा करके दिखाना,  गर्व  करें हर कोई तुम पर "तुम हो हिन्दुस्तानी"।   अन्धकार मे भी प्रकाश सा उजियारा हो,         सत्य घोष हो हर तरफ जय का नारा हो।           जाति-पाँति का फर्क मिटाकर,              सबको एक बनाना..    गर्व करे हर कोई तुम पर "तुम हो हिन्दुस्तान...

बच्चों के मन से

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                                          माँ ! तुम इतना बदली क्यों ?                मेरी प्यारी माँ बन जाओ                बचपन सा प्यार लुटाओ यों                माँ ! तुम इतना बदली क्यों ?                                                                           बचपन में जब भी गिरता था               दौड़ी- दौड़ी आती थी।               गले मुझे लगाकर माँ तुम               प्यार से यों सहलाती थी।               चोट को मेेरी...

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