अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारना
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"अरे ! ये क्या सिखा रही है तू मेरी बेटी को ? ऐसे तो इसे दब्बू और डरपोक बना देगी ! फिर वहाँ सारा परिवार ही इसके सर पे नाचेगा ! भाड़ मे जाये सब ससुराल वाले ! ये मेरी बेटी है ! वीरेंद्र प्रताप सिंह की बेटी ! मेरी बेटी किसी की जी हुजूरी नहीं करेगी ! ना पति की ना ही सास ससुर की । समझी कि नहीं" ? गरजते हुए उसने अपनी पत्नी माया देवी को फटकार लगाई तो मायादेवी डरी सहमी सी हकलाते हुए बोली कि "जी, वो...वो मैं तो... वो मैं...मैं तो बस यही कह रही थी इसे कि ससुराल में सबके साथ"....
" बस !... बस कर ! अपनी सीख अपने ही पास रख ! चाहती क्या है तू ? हैं ?....यही कि इसका जीवन भी तेरी तरह नरक बन जाय ? डरपोक कहीं की ! खबरदार जो मेरी बेटी को ऐसी सीख दी ! जमाना बदल गया है अब । अब पहले की तरह ऐसे किसी की गुलामी करने का जमाना नहीं रहा । पति हो या सास - ससुर, किसी से भी दबने की जरुरत नहीं है इसे ! समझी" !
हमेशा की तरह आदतन अहंकारी लहजे में वीरेंद्र प्रताप सिंह जोर-जोर से अपनी पत्नी पर चिल्लाए जा रहा था, कि तभी साड़ी का पल्लू सिर से हटाकर कमर में ठूँसती हुई मायादेवी आँखें तरेरते हुए हुँकार भरकर बोली, "अच्छा ! जमाना बदल गया ? अरे ! मुझे तो पता ही नहीं चला ! चलो कोई बात नहीं ,अब ही सही ! पहले खुद तो इस नरक से निकल लूँ, फिर देखुँगी बेटी को" ।
पत्नी के यूँ अप्रत्याशित बदले तेवर देख वीरेंद्र प्रताप सिंह का अहम तो जैसे सीधे अर्श से फर्श पर आ गिरा । उतरे चेहरे और बदले लहजे में सिर थामकर बोला, "ओह ! मैंने तो अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार दी" ।
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टिप्पणियाँ
हा हा
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आ.जोशी जी !
हटाएं🙏🙏
इस लिए तो पहले कहावत कहते थे "अपनी बेटी रानी और दुजे घर की नौकरानी" वक्त बदलना है तो तेवर बदलो संस्कार नहीं। बहुत ही सुन्दर सीख देती लधु कथा सुधा जी🙏
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने अपनी बेटी रानी....नौकरानी ने भी तेवर बदल ही दिये😀 सीख के सयाना😂
हटाएंअत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका ।
हा हा हा... सही समय पर अचूक प्रहार.. बहुत सुंदर संदेशात्मक कहानी दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह प्रणाम
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ५ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता !
हटाएंपाँच लिंकों के आनंद मंच पर रचना साझा करने हेतु दिल से धन्यवाद आपका ।
हटाएंअगर हर स्त्री अपनी बेटी जैसी लगने लगे तो समाज का कल्याण हो जाए।
जवाब देंहटाएंअहम पर कुठाराघात करती जरूरी और विमर्शपूर्ण लघुकथा! बधाई सखी।
सारगर्भित प्रतिक्रिया द्वारा सृजन को सार्थकता प्रदान करने हेतु दिल से धन्यवाद सखी !
हटाएंबदलाव पहले ख़ुद में ज़रूर लाना चाहिये … जीवंत कहानी
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार एवं धन्यवाद नासवा जी !
हटाएंवाह, वाह!!सुधा जी ,यह भी खूब रही !! शानदार!
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद शुभा जी !
हटाएंपुरुष के अपनी पत्नी के लिए जो मापदंड होते हैं वो अपनी बेटी के लिए नहीं होते.
जवाब देंहटाएंइसी तरह
स्त्री के अपनी बेटी के लिए जो मापदंड होते हैं वो अपनी बहू के लिए नहीं होते.
जी, आदरणीय सर ! सही कहा आपने....
हटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
दोहरी मानसिकता पर प्रभावशील विचारणीय लघुकथा.
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ. रविन्द्र जी !सारगर्भित प्रतिक्रिया द्वारा सृजन को सार्थकता प्रदान करने हेतु ।
हटाएंवाह !! करनी और कथनी की विसंगति पर सटीक प्रहार । बहुत सुंदर लघुकथा सुधा जी !
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीनाजी !
हटाएंचलो बेटी के बहाने ही सही अपने आप को देखने का अवसर तो मिला
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार अनीता जी !
हटाएंवाह ! मजा आ गया पढ़कर। स्त्रियाँ नई पीढ़ी के साथ स्वयं को भी मानसिक गुलामी से मुक्त करें।
जवाब देंहटाएंजी, मीनाजी ! हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
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