असर
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माँजी खाना खा लीजिए न ! ऐसे खाने पर क्यों गुस्सा उतारना ? चलिए न माँजी ! फिर आपकी दवाओं का समय हो रहा है , तबियत बिगड़ जायेगी ! चलिए खाना खा लीजिए न !
कितनी देर से सीमा ऐसे ही अपनी सासू माँ को मना रही थी, पर सासू माँ आज मुँह फुलाए बैठी थी , आखिर उनके लाडले पोते बंटी को उसके पापा से डाँट जो पड़ गयी थी ।
बंटी आजकल अपनी दादी के इसी प्यार का गलत फायदा उठा रहा था , कोई भी गलती करता और डाँट पड़े तो दादी से शिकायत !
वह जानता था कि दादी सबको डाँट-डपट कर उसे बचा लेंगी , नतीजतन वह बहुत ही लापरवाह होता जा रहा था ।
उसका सामान पूरे घर भर में बिखरा रहता । जूते - चप्पल भी वह कभी सही तरीके से सही जगह न रखता । उसका कमरा भी हमेशा अस्त-व्यस्त रहता, किताबें और कपड़े पूरे कमरे में तितर-बितर फैले रहते ।
सीमा (उसकी माँ) उसके कमरे में बिखरे सामानों को समेटते - समेटते थक जाती और जब भी कभी उसे इस बारे में डाँटती या कुछ भी कहती तो वह साथ-साथ जुबान लड़ाता ।
माँ को तो जैसे कुछ समझता ही नहीं था । तंग आकर सीमा ने आज उसके पापा से शिकायत कर दी । पापा की डाँट पड़ी तो घड़ियाली आँसू बहा आया दादी से लिपटकर ।
बस फिर दादी शुरू हो गयी, बेटा तो ऑफिस के लिए निकल पड़ा, बची बहू ! खूब सुनाया । फिर भी चैन न आया तो बाकी का गुस्सा खाने पे भी...।
छोटी बबली ये सब देख रही थी । देख रही थी कि माँ के मनाने पर भी दादी मान नहीं रही । भूखी बैठी हैं , और मम्मी ने भी तो कुछ नहीं खाया है ।
वह सोचने लगी, क्यों करते हैं भैया ऐसा ? बड़े हैं पर अकल नहीं है जरा भी ! और दादी को भी क्या ही हो जाता है भैया को लेकर ! मुझे तो हर छोटी-बड़ी बात पर खूब समझाती हैं । छोटी सी गलती पर भी खूब डाँटती हैं । पर भैया की गलतियाँ और लापरवाहियां तो जैसे दिखती ही नहीं इन्हें । पर क्यों ? क्यों अनदेखा करती हैं दादी भैया की गलतियाँ ?
उसने सोचा आज दादी से पूछ ही लूँ । पास जाकर बोली, "दादी ! क्या हुआ ? गुस्सा क्यों हो" ? सुनकर दादी तो जैसे बिफर ही पड़ी । बोली, "अपनी माँ पूछ ! पूछ अपनी माँ से ! जिसने बेवजह मेरे बंटी की शिकायत करके उसे डाँट खिलाई । वैसे ही तेरा पापा है जो इसके कहने में आ जाता है । कितना रो रहा था मेरा बंटी" ! कहते हुए दादी का गला भर आया। दादी को दुखी देख बबली भी दुखी होकर दादी से चिपक गयी ।
दादी फिर गुस्से में बोली , "हाथ झड़ रहे थे तेरी माँ के उसका कमरा साफ करके ? बिना बात में पापा - बेटे के बीच मन-मुटाव करवा दिया। बबली ! सुन ! आज से तू साफ-सफाई करेगी बंटी के कमरे की ! ठीक है ! सुन लिया तूने" ?
"जी, दादी ! मैं कर लूँगी ! पर दादी ! भैया तो मुझसे भी बड़े हैं न, फिर वे खुद क्यों नहीं करते हैं अपने काम ? आपने ही ने तो बताया है न दादी ! कि अपना काम खुद करना चाहिए । और अगर काम करने में कुछ गलती हो भी जाय तो अपनी ही गलतियों से हमेशा कुछ सीखना भी चाहिए । है न दादी ! तभी तो मैं हमेशा अपना काम खुद करती हूँ, पर भैया कभी नहीं करते । क्या उन्हें ऐसा करने की जरुरत नहीं है" ?
बबली ने पूछा तो दादी समझाते हुए बोली, "जरूरत तो है उसे भी, पर क्या करें बेटा ! आजकल उसकी ग्रहदशा ठीक नहीं है। पंडित जी से कुंडली दिखवाई थी मैंने उसकी। उन्होंने बताया कि अभी उसके ग्रहों की स्थिति खराब है, उसी के असर से वह कुछ चिड़चिड़ा हो गया है । ऐसे ग्रहदोष में बच्चे चिड़चिड़े और उग्र हो ही जाते हैं । हमें ही ध्यान रखना होगा उसका । और ग्रहशांति का पाठ करवाना होगा तब वह भी समझदार और शांत स्वभाव का हो जायेगा तेरी तरह । पर देख न तेरी मम्मी के हाल ! अरे ! ग्रहशांति का पाठ तो करवाने को तो कहा नहीं तेरे पापा से, ऊपर से ये गृहक्लेश करवा दिया। अब तू ही समझा अपनी माँ को" !
"ठीक है दादी ! मैं जरूर बात करुँगी मम्मी-पापा से।पर दादी ! मैंने एक बुक में पढ़ा कि अगर हम अच्छे से नहीं रहते , अपना काम अपनेआप नहीं करते , चीजों को अस्त-व्यस्त फैलाकर रखते हैं और घर में जूते-चप्पल सही जगह सलीके से नहीं रखते तो हमारे ग्रहों पर भी इसका गलत असर पड़ता है। मतलब वही. ग्रहदोष लगता है, और फिर ऐसी गलतियों पर जब हमें बार-बार बड़ों की डाँट पड़ती है तो हम चिड़चिड़े भी हो जाते हैं" ।
"कहाँ पढ़ा तूने "? दादी ने पूछा तो उसने कहा, "एक बुक में , आप पढ़ोगे ? मैं लाती हूँ , आप अपना चश्मा पहनिए"। वह जाने लगी तो दादी बोली, "रूक ! जाने दे ! उसमें तो अंग्रेजी मे लिखा होगा न ? हाँ दादी ! पर यही लिखा है। उसने देखा कि दादी उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रही हैं तो समझाते हुए बोली,
"दादी ! देखिए न , जैसे मम्मी को जल्दी से गुस्सा नहीं आता, पर पापा को आता है, क्योंकि पापा अपने छोटे-मोटे काम अपनेआप नहीं करते, अपनी चीजें भी इधर-उधर कहीं भी रख देते हैं । मम्मी ही सम्भालती है न उनके वॉलेट, हैंकी वगैरह। तो उन्हें भी ग्रहदोष लगता है । तभी तो पापा के जन्मदिन पर आप ग्रहशांति का पाठ करवाती हैं न पंडित जी से । दादी ! क्या आपने कभी अपने और मम्मी के जन्मदिन पर ग्रहशांति का पाठ करवाया" ?
व्यंगपूर्ण हँसते हुए दादी बोली, "नहीं हम औरतों को भला ग्रहशान्ति के पाठ की क्या जरूरत" !
"वही तो दादी ! हमें नहीं पड़ती इसकी जरूरत । क्योंकि हमारे ग्रह कभी खराब होते ही नहीं। हम तो अपना काम हमेशा अपने आप करते हैं और पूरे घर को भी ठीक ठाक करते रहते हैं। फिर हमारे ग्रह हमेशा शांत ही रहते होंगे , काश भैया और पापा भी"...
तभी दादी बीच में ही टोककर बोली, "जा,जाकर खाना लगा ! मेरा भी और अपनी माँ का भी । वह भी भूखी बैठी होगी अभी तक" । "जी दादी ! आप आ जाओ" कहकर बबली खुशी-खुशी खाना लगाकर लायी ।
और तब से घर के सारे नियम बदल गये, मम्मी को अब पहले सी हड़बड़ी और भागम-भाग नहीं थी क्योंकि पापा भी अपना वॉलेट वगैरह सही जगह रखकर अपने आप लेने लगे और बंटी का कमरा भी अब व्यवस्थित रहने लगा ।
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टिप्पणियाँ
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 31 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका रचना को मंच प्रदान करने हेतु ।
हटाएंअच्छी कहानी ... बहुत कुछ कहती हुई, परम्पराएं घर में बुजुर्गों का होना कितना कुछ सुखा जाता है ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार नासवा जी !
हटाएंबहुत सुन्दर सीखप्रद सृजन । बबली ने दादी को बहुत सुन्दर तरीक़े से सीख दी । लाजवाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी कहानी, नन्ही बबली जैसी!
जवाब देंहटाएंअच्छी गृह व्यवस्था तो अच्छी गृह दशा , सुंदर प्रस्तुति आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंबबली ने सारी समस्या ही हल कर दी । सार्थक लघु कथा ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सरल शब्दों में कही गई शिक्षाप्रद लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसार्थक कथा
जवाब देंहटाएं"नहीं हम औरतों को भला ग्रहशान्ति के पाठ की क्या जरूरत" अच्छी बात कही दादी ने . बधाई इस कथा के लिए .
जवाब देंहटाएंआदरणीया सुधा देवरनी जी ! प्रणाम !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कथा , कथ्य एवं संवाद |
सही कहा आपने , स्त्रियों को यज्ञ और ग्रहशांति की क्या आवश्यकता , उनका जीवन स्वयं समिधा है , होम होकर "होम मेकर" हो जाती है !
मातृ शक्ति को प्रणाम !
सुंदर सार्थक लघु कथा
जवाब देंहटाएंवाह जी, सुधा जी क्या बात लिखी है,.... बहुत ही सुंदर जी ।
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