शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

उफ्फ ! ये बच्चे भी न.. ...



pomegranateseeds


माँ--बिन्नी तुमने अभी तक फल नहीं खाये ? चिप्स कुरकुरे तो फट से चटकारे ले लेकर खाते हो और फलों के लिए नाक-मुँह सिकोड़ते हो ।  अरे कम से कम ये अनार के दाने तो खा लिये होते !                           क्या होगा तुम्हारा ?   पौष्टिकता कहाँ से आयेगी शरीर में ? आ इधर आ मेरे सामने !  और ये सारे फल खाकर खत्म कर !

बिन्नी--   माँ ! मन नहीं हैं फल खाने का........और ये अनार ! ये मुझे क्या पौष्टिक बनायेंगे , देखो न माँ! इन्हें तो खुद ही हीमोग्लोबिन की जरुरत है ।....

मुट्ठी भर अनार उठा कुछ खाती कुछ गिराती बिन्नी वहाँ से खिसक ली।

माँ ने अनार के सफेद दानों को गौर से देखा और बुदबुदाते हुए बोली सच में हीमोग्लोबिन की जरूरत तो है इन्हें.....और हँसी रोक न पायी।



घी सीधी उँगली से न निकले तो......

धड़ाम की आवाज सुनकर पल्लवी हड़बड़ाकर भागते हुए सासू माँ के कमरे में पहुँची तो वहाँ का नजारा देखकर दंग रह गयी... टॉफियों का डिब्बा फर्श में ओंधा गिरा है और तनु और मनु (उसके बेटे)  लपक लपक कर कमरे में बिखरी टॉफियां उठाकर अपनी जेब भर रहे हैं....।

ये क्या है तनु मनु ? ये डिब्बा क्यों गिराया तुमने ?टॉफी चाहिए थी तो माँग भी तो सकते थे न ? पल्लवी ने सख्त लहजे में फटकार लगाई तो दोनों बड़ी मासूमियत से बोले माँगते तो बस दो - दो टॉफी मिलती न मम्मा ! पर हमें ज्यादा चाहिए थी।

दो- दो टॉफी कम हैं क्या?...और ज्यादा पाने के लिए पूरा डिब्बा ही उलट दिया तुमने ?  क्यों ...?   गुस्से से तिलमिलाते हुए उसने पूछा।

 हाँ मम्मा ! आज दादी ने कहा न सुबह जब घी सीधी उँगली से न निकले तो....तो  डिब्बा उल्टा करना पड़ता है।

 डिब्बा उल्टा ?..... अरे !  ऐसा कब कहा दादी ने ? दादी ने तो ये  कहा कि उँगली टेढ़ी करनी पड़ती है....।

पर उँगली क्यों टेढ़ी करनी मम्मा ..?    हमने तो डिब्बा ही उलट दिया...एक दूसरे के हाथ से ताली बजा दोनों  खिलखिलाते हुए वहाँ से फरार हो गये और पल्लवी मुहावरे मे ही उलझी रह गयी।

21 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

बहुत प्यारी लघुकथाएं हैं सुधा जी।
बच्चों की मासूमियत उनकी ये शरारतें उनकी बचपन की
अनमोल स्मृतियाँ ही माता-पिता के बुढ़ापे का खज़ाना होती हैं।
बेहद जीवंत चित्रण करती है आपकी लेखनी।

सस्नेह।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद प्रिय श्वेता जी आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हो गया।सस्नेह आभार।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

उफ़्फ़ ! ये बच्चे । बहुत सुंदर लघुकथा ।
यूँ ये संस्मरण भी हो सकते हैं ।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत ही प्यारी लघुकथाएँ हैं ये सुधा दीदी। बच्चों की शरारते बडो कब गुस्वे को रफ़ा दफा हो जाती है।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी ! वैसे सही कहा आपने ये संस्मरण हो सकते थे पर मुझे संस्मरण लिखना नहीं आता अभी। सीखने की कोशिश करुंगी।
सादर आभार ।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर लघुकथा

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर रोचक लघु कथाएं ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर कथा, एक से बढ़कर एक।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.प्रवीण जी!

Kamini Sinha ने कहा…

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-8-21) को "भावनाओं से हैं बँधें, सम्बन्धों के तार"(चर्चा अंक- 4164) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी। आप सभी को रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें
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कामिनी सिन्हा


Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद कामिनी जी!मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।आपको भी सपरिवार रक्षाबंधन की अनंत शुभकामनाएं।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुंदर

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.समीर जी!

Meena Bhardwaj ने कहा…

बहुत सुन्दर .., दोनों लघुकथाएँ एक से बढ़ कर एक ।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बाल सुलभ कहानियां किस्से गुदगुदाते हैं मन को ... पर बहुत कुछ कह भी जाते हैं ...
रोचक किस्सा ...

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बाल मन को पढ़ती,गढ़ती बहुत प्यारी कहानियाँ, बधाई हो सुधा जी।

Sudha Devrani ने कहा…

आभारी हूँ जिज्ञासा जी! आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए।
बहुत बहुत धन्यवाद।

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