आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं

आओ बच्चों ! अबकी बारी होली अलग मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । ऊँच नीच का भेद भुला हम टोली संग उन्हें भी लें मित्र बनाकर उनसे खेलें रंग गुलाल उन्हें भी दें छुप-छुप कातर झाँक रहे जो साथ उन्हें भी मिलाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पिचकारी की बौछारों संग सब ओर उमंगें छायी हैं खुशियों के रंगों से रंगी यें प्रेम तरंगे भायी हैं। ढ़ोल मंजीरे की तानों संग सबको साथ नचाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । आज रंगों में रंगकर बच्चों हो जायें सब एक समान भेदभाव को सहज मिटाता रंगो का यह मंगलगान मन की कड़वाहट को भूलें मिलकर खुशी मनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । गुझिया मठरी चिप्स पकौड़े पीयें साथ मे ठंडाई होली पर्व सिखाता हमको सदा जीतती अच्छाई राग-द्वेष, मद-मत्सर छोड़े नेकी अब अपनाते हैं जिनके पास नहीं है कुछ भी मीठा उन्हें खिलाते हैं । पढ़िए एक और रचना इसी ब्लॉग पर ● बच्चों के मन से
सुधा दी सच कहा असपने कि मन रहता तो तन में है लेकिन अपने ही तन की परवाह नही करता।
जवाब देंहटाएंजी ज्योति जी, सहृदय धन्यवाद एवं आभार आपका ।
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जवाब देंहटाएंसबको मान दिया करता तू
तनिक मुझे भी माना होता
मेरे दुख-सुख सामर्थ्यों को
कुछ तो कभी पहचाना होता..जीवन दर्शन का सुंदर भाव प्रस्तुत करती अनुपम अभिव्यक्ति ।
आभारी हूँ जिज्ञासा जी तहेदिल से धन्यवाद आपका।
हटाएंवाह सुधा जी बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार रितु जी!
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (03-09-2021) को "बैसाखी पर चलते लोग" (चर्चा अंक- 4176) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आभारी हूँ मीना जी!हृदयतल से धन्यवाद आपका मेरी रचना को चर्चा मंच पर साझा करने हेतु।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.आलोक जी!
हटाएंसच कहा, मन यदि तनिक सुधर जाये तो शरीर स्वस्थ हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंजी, प्रवीण जी! आपका अत्यंत आभार एवं धन्यवाद।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 02 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसांध्य दैनिक मुखरित मौन मे मेरी रचना साझा करने के लिए आपका तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी!
हटाएंक्या खूब कहा । इतना सुन्दर, सहज, सरल और मोहक संवाद तन-मन का । मीठी फटकार और तीखी चेतावनी । अति सुन्दर । सबको ये समझना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अमृता जी हृदयतल से धन्यवाद आपका।
हटाएंआपकी संभवतः कोई भी ऐसी रचना नहीं है सुधा जी जो गुणवत्ता के निकष पर खरी न उतरे। यह भी अपवाद नहीं। अभिनन्दन आपका।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद जितेन्द्र जी आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती हैं।
हटाएंसादर आभार।
सहृदय धन्यवाद एवं आभार सखी!
जवाब देंहटाएंतन और मन की इस नोक झोंक में मन ही जीतेगा, क्योंकि तन की तरफ़ से बोल भी तो वही रहा है, यानि उसे खबर सब है पर ज़रा नादान है, सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ.अनीता जी!आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु।
हटाएंजी मन आज पश्चात्ताप से खामोश है अपनी अति से तन की दुर्गति देख।
बहुत सुंदर दी, तन और मन का ये अंतर्द्वंद्व आज पता चला... आपने बखूबी समझाया है। दोनों पास थे पर हम बेखबर से रहे इनसे...
जवाब देंहटाएंजी भाई! अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।
हटाएंसामंजस्य हमारा होता
जवाब देंहटाएंनिरोगी काया हम पाते
निभा स्वयं से पहला रिश्ता
फिर दुनिया को अपनाते ।।
सुंदर अभिव्यक्ति । बहुत शुभकामनायें ।
हृदयतल से धन्यवाद, आ.दीपक जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
वाह! अद्भुत सुधा जी ,अभिनव भाव अभिनव लेखन।
जवाब देंहटाएंसच सभी मन की बात करते हैं,
पर तन ही न होगा तो मन को ठौर कहां।
बहुत सुंदर सृजन।
जी, कुसुम जी! हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।
हटाएंसुधा जी
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कैसे छूट गयी ...... बेहतरीन लिखा है ,सच मन बहुत अपनी मनमानी करता है । बेचारा तन सब झेलता रहता ।
सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ।
तहेदिल से धन्यवाद आ.संगीता जी! आपको रचना अच्छी लगी तो श्रम साध्य हुआ अत्यंत आभार आपका।
हटाएं'तेरा क्या...दुर्गत जो हुआ मैं
जवाब देंहटाएंतू त्याग मुझे उड़ जायेगा
ढूँढ़ कोई नवतन तू फिर से
यही प्रपंच रचायेगा।'... स्वचेतना से संघर्ष का अद्भुत आख्यान! खूबसूरत रचना है महोदया!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आदरणीय सर!
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