सोमवार, 21 दिसंबर 2020

जन्म 'एक और गरीब का'



                                                               

 
खिल ही जाते हैं गरीब की बगिया में भी

मौसमानकूल कुछ फूल चाहे अनचाहे,

सिसकते सुबकते कुछ अलसाये से ।

जिनके स्पर्श से जाग उठती है ,

उनकी अभावग्रस्त मरियल सी आत्मा ।

आशा की बुझती चिनगारी को

फूँकनी से फूँक मार-मारकर,

जलाते हैं हिम्मत की लौ ।

पीठ पर चिपके पेट और कंकाल सी देह को

उठाकर धोती के चिथड़े से कमर कसकर

सींचने लगते हैं ये अपनी बगिया ।

सिसकियाँ फिर किलकारियों में बदलती हैं !

और मुस्कराने लगती है इनकी कुटिया !             

फिर इन्हीं का सहारा लिए  बढने लगती है   

इनकी भी वंशबेल।


हर माँ-बाप की तरह ये भी बुनते हैंं,

चन्द रंगीन सपने !

और फिर अपनी औकात से बढ़कर,

केंचुए सा खिंचकर तैयार करते हैं,

अपने नौनिहाल के सुनहरे भविष्य का बस्ता !

उसे शिक्षित और स्वावलंबी बनाने हेतु

भेजते हैं अपनी ही तरह 

घिसते-पिटते सरकारी विद्यालय में !

 

बड़ा होता बच्चा मास्टर जी के 

सवालों के जबाब ढूँढ़ता है,

अपने जन्मदाता की खाँसती उखड़ती साँसों में !

बचपन का चोला, किताबों भरे बस्ते में 

लपेटकर झाड़ी में छुपा, 

समझदारी का लिबास ओढ़े

समय से पहले सयाना बनकर 

ढ़ूँढ़ता है रास्ता जनरल स्टोर जैसी दुकानों का,

और बन जाता है विद्यार्थी से डिलीवरी ब्वॉय 

ताकि अपने बीमार, लाचार जन्मदाता के 

काँपते जर्जर कन्धों का बोझ 

कुछ हल्का कर सके !


ऐसा नहीं कि वो उन्नति नहीं करता,

करता है न,

डिलीवरी ब्वॉय के छोटे-मोटे आइटम 

उठाना छोड़  बड़े-बड़े भंडारगृहों में 

भारी-भारी अनाज की बोरियों से लेकर

 रेलवे स्टेशनों में अमीरों के 

भारी-भरकम सूटकेसों तक ।

ये अपने बड़े होकर उन्नति करने का 

पर्याप्त प्रमाण देता है ।

जिन्दगी अपनी रफ्तार से आगे खिसकती है,

और ये सारा दिन बोझ तले दबी 

टेढ़ी हुई कमर को जबरन सीधा कर 

पानी के छीटों से चेहरे की थकान और बेबसी 

को धो-पोंछकर खुशी के मुखोटे पे 

बड़ी सी मुस्कराहट सजा हर साँझ पहुँचता है ,

सिटी हॉस्पिटल जिन्दगी और मौत से लड़ते 

अपने जन्मदाता से मिलने ।

जहाँ जीवन भर की भुखमरी, रक्ताल्पता और 

कुपोषण के चलते असाध्य से बन बैठे हैंं 

उनके लिए साधारण से क्षयरोग या कुछ और भी ।


अपने लल्लन को देख चमक उठती हैं                  

बुझी-बुझी आँखें हर साँझ !                                

और फिर एक दिन पड़ौसी मरीज से सुनते है कि,   

"बड़ा समझदार लागे थारा लल्ला!                           

म्हारी छोरी संग ब्याह लो इने ! चैन से मर पावेंगे तब"


बस अपनी जिम्मेदारी को प्रणयबंधन में बाँध              

जीने की वजह देकर 

उखड़ती साँसों से मुक्त होती है 

इधर एक जर्जर देह !                   

और उधर फिर खिलता है एक और                      

अलसाया सा पुष्प गरीब की बगिया में

अपने इतिहास को दोहराने हेतु                            

फिर-फिर होता है                                                  

जन्म 'एक और गरीब का '   ।।     


         चित्र , साभार pixabay से.


पढिए ऐसे ही भावों के मंथन पर आधारित एक और सृजन

 ●   विचार मंथन









34 टिप्‍पणियां:

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

कलेजा चाक कर देने वाली हक़ीक़त बयां कर दी है सुधा जी आपने ।

मन की वीणा ने कहा…

सुधा जी मैं निशब्द हूं! मेरी लेखनी के पास सांत्वना के शब्द तक नहीं!
निशब्द!
निशब्द!!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.माथुर जी!सराहनासम्पन प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु...।

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

उत्कृष्ट रचना। क्या खूब लिखा है, उपरोक्त मोतियों के सामने हमारे शब्दों का कोई अर्थ नही। साधुवाद की आपने इस विषय के ऊपर लिखा ही नही अपितु सजीव चित्रण किया।धन्यवाद।

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद कुसुम जी सराहनीय प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन करने हेतु।

शुभा ने कहा…

वाह!सुधा जी ,नि:शब्द कर दिया आपकी लेखनी ने । नतमस्तक हूँ आपकी कलम के आगे 🙏🏼

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

मर्मस्पर्शी भाव। अच्छा होगा कि हम उनके सपनों को डूबने न दें।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी, गरीबी का बहुत ही मार्मिक और दिल को छूता वर्णन किया है आपने।

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 22 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani ने कहा…

सस्नेह आभार भाई!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ.शुभा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार सर!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी!
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आ.यशोदा जी मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन के मंच पर साझा करने हेतु...।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत मार्मिक ह्रदय स्पर्शी रचना |

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक ... पढने के बाद कितनी ही देर तक सोचता रहा ... क्या ये सच है समाज का ... और अगर है तो क्यों है ... किसी के भी सपनों को परवाज़ न मिले ... ये तो अच्छा नहीं ...
सपनों का पूरा हिओना जरूरी होना चाहिए समाज में ... ताकि सपने देखने की प्रथा बनी रहे ... बहु सटीक, सार्थक और सोचने को मजबूर करती रचना ...

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद आ. आलोक जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार नासवा जी!

Kamini Sinha ने कहा…

समाज के एक वर्ग का सही चित्रण करती मर्मस्पर्शी रचना,सपने देखना और उन्हें पूरा ना होने का मलाल लिए मर जाना फिर भी सपने देखने की हिम्मत करना ये उनकी जिजीविषा को उजागर करता है और हजारों में से कोई एक जब सपने पुरे कर चमकता सितारा बनता है तो फिर से कई आखों को सपने देखने की हिम्मत दे जाता है,हमेशा की तरह लाजबाब सृजन सुधा जी,सादर नमन

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद कामिनी जी!रचना का सार एवं मंतव्य स्पष्ट करती अनमोल प्रतिक्रिया हेतु....।
सादर आभार।

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

बस अपनी जिम्मेदारी को प्रणयबंधन में बाँध

जीने की वजह देकर

उखड़ती साँसों से मुक्त होती है

इधर एक जर्जर देह !....

और उधर फिर खिलता है एक और

अलसाया सा पुष्प गरीब की बगिया में.....

अपने इतिहास को दोहराने हेतु

फिर-फिर होता है

जन्म 'एक और गरीब का ' बहुत ही हृदय स्पर्शी और ग़रीबी का सटीक चित्रण करती सुंदर कृति..। मैंने भी ऐसे ही विषय पर एक कविता लिखने की कोशिश की है,समय मिले तो ब्लॉग पर निगाह डालें..सादर शुभकामना सहित जिज्ञासा सिंह..।

शिवम कुमार पाण्डेय ने कहा…

वाह🌻

Sudha Devrani ने कहा…

जी!जिज्ञासा जी!अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद शिवम जी!

Amrita Tanmay ने कहा…

पर्त दर पर्त उधेड़ कर रख दिया है इस अभिशाप का ... मर्माघाती ।

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय आभार एवं धन्यवाद आ.अमृता जी!

Vocal Baba ने कहा…

ग़रीब जीवन का सजीव चित्रण बहुत ही सुंदर बन पड़ा है। सार्थक सृजन के लिए आप बधाई की पात्र हैं।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार विरेन्द्र जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद आ.जोशी जी!
सादर आभार।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता शब्दों में अपनापन सा लगता है ,..

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार संजय जी!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

🙏नववर्ष 2021 आपको सपरिवार शुभऔर मंगलमय हो 🙏

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ओह, यूँ ही बढ़ती रहती संख्या गरीब की । मार्मिक अभव्यक्ति ।।

हो सके तो समभाव रहें

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