शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

लघुकथा---नानी दादी के नुस्खे



Old sick grandmother lying on bed


आज दादी की तबीयत ठीक नहीं है । अक्कू बेटा मुझे कीचन में कुछ काम है तुम दादी के पास बैठकर इनका ख्याल रखो मैं अपने काम निबटाकर अभी आती हूँ।

 "हाँ माँ ! मैं यही पर हूँ आप चिंता मत करो, मैं ख्याल रखूंगा दादी का......   दादी !  मैं हूँ आपके पास। कुछ परेशानी हो तो मुझे बताइयेगा" कहकर अक्षय अपने मोबाइल में व्यस्त हो गया।

थोड़ी देर बाद दादी ने कराहते आवाज दी; "अक्कू! बेटा! पैरों में तेज दर्द हो रहा है,देख तो चारपाई के नीचे मैंने दर्द निवारक तेल बनाकर शीशी मेंं रखा है , थोड़ा तेल लगा दे पैरों में....आराम पड़ जायेगा"।

"ओह दादी !  तेल लगाने से कुछ नहीं होगा । रुको !मैं मोबाइल में गूगल पर सर्च करता हूँ , यहाँ 'नानी दादी के नुस्खे'  में बहुत सारे घरेलू उपाय लिखे रहते हैं, उन्हें पढ़कर आपके  पैरों के दर्द को मिटाने का कोई अच्छा सा उपाय देखता हूँ और वही दवा बनाकर आपके पैरों में लगाउंगा", कहकर अक्षय पुनः मोबाइल में व्यस्त हो गया।

बेचारी दादी कराहते हुए बोली; "हम्म अपनी दादी नानी तो जायें भाड़ में..... गूगल पे दादी नानी के नुस्खे .....हे मेरे राम जी!  क्या जमाना आ गया है"...!

                               चित्र साभार गूगल से....


30 टिप्‍पणियां:

रेणु ने कहा…

सच मे मुझे ये लघुकथा पढ़कर बहुत हँसी आई सुधा जी। Ye आपने बहुत् ही सजीव चित्रण किया है किसी ऐसे परिवार का जहाँ तीन पीढियाँ साथ साथ रहती हैं। मोबाइल में आकंठ डूबे बच्चों की यही प्रतिक्रिया होती है। बहुत रोचक है ये नन्हा सा प्रसंग। हार्दिक स्नेह के साथ 🌹🌹❤❤

Sudha Devrani ने कहा…

जी,सखी वही दिखाने का प्रयास किया है
आपको अच्छा लगा तो श्रम साध्य हुआ
हृदयतल से धन्यवाद, आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह द्विगुणित कर देती है।
सस्नेह आभार।

Meena Bhardwaj ने कहा…

कथा में हास्य के साथ दादी की फिक्र भी हुई । लाजवाब लघुकथा सुधा जी !

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

घर का जोगी जोगिया, आन-गाँव का सिद्ध !

अनीता सैनी ने कहा…


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा (११-०९-२०२०) को 'प्रेम ' (चर्चा अंक-३२३८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

yashoda Agrawal ने कहा…

ओह,यहाँ भी गूगल..
सादर..

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी!उत्साहवर्धन हेतु...।

Sudha Devrani ने कहा…

जी, सर!हार्दिक धन्यवाद आपका...
सादर आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार अनीता जी चर्चा मंच पर रचना साझा करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद यशोदा जी!
सादर आभार।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

जितेन्द्र माथुर ने कहा…

गूगल बाबा की मानसिक ग़ुलामी पर अच्छा व्यंग्य किया है सुधा जी आपने । बच्चे तो बच्चे, हम लोग भी इसी जमात में शामिल होते जा रहे हैं । बहरहाल आपकी इस लघुकथा ने याद दिला दिया है कि हमें गूगल पर अति-निर्भर होने से बचना है तथा पुस्तकों एवं अपने बुज़ुर्गों के ज्ञान को गूगल से कमतर नहीं समझना है ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. जोशी जी!

Kamini Sinha ने कहा…

"हम्म अपनी दादी नानी तो जायें भाड़ में..... गूगल पे दादी नानी के नुस्खे .....हे मेरे राम जी! क्या जमाना आ गया है"...बिलकुल सही। गूगल गुरु के गुलाम बनकर रह गए है बच्चे,बच्चे क्या अधिकांश बड़े भी। हल्की-फुल्की कहानी के माध्यम से बहुत ही बड़े समस्या की ओर आपने ध्यान आकर्षित किया। सादर नमन सुधा जी

Alaknanda Singh ने कहा…

आधुन‍िक पीढ़ी और मोबाइल संस्कृत‍ि....पर एक अच्छी व व‍िचारणीय लघुकथा ल‍िखी सुधा जी...बहुत खूब

Jyoti Dehliwal ने कहा…

वर्तमान समय में हर कोई गूगल का गुलाम बन गया है। सिर्फ बच्चों को दोष नही दे सकते। वर्तमान समय का सार्थक चित्रण करती सुंदर लघुकथा, सुधा दी।

hindiguru ने कहा…

सुन्दर लघुकथा

Sudha Devrani ने कहा…

जी, हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद कामिनी जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार अलकनंदा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद ज्योति जी !
सस्नेह आभार।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद राकेश जी!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

सामयिक वास्तविकता का चित्रण।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छा व्यंग ...
समय के हालात लिख दिए अपने आज के ...
मोबाइल से आगे जहां नहीं है बच्चों का ....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

यथार्थ परिस्थितियों का चित्रण करती रोचक लघुकथा।
साधुवाद!!!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आ. यशवंत जी!

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आ.नासवा जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार आदरणीया
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

ANIL DABRAL ने कहा…

उनको क्या पता गूगल को भी दादी नानी ने ही दिए हैं नुस्खे..... बहुत सुन्दर..

Sudha Devrani ने कहा…

जी , अत्यंत आभार एवं धन्यवाद आपका।

हो सके तो समभाव रहें

जीवन की धारा के बीचों-बीच बहते चले गये ।  कभी किनारे की चाहना ही न की ।  बतेरे किनारे भाये नजरों को , लुभाए भी मन को ,  पर रुके नहीं कहीं, ब...