मंगलवार, 1 सितंबर 2020

हरि मेरे बड़े विनोदी हैं

peacock feather symbolisis lord krishna

देखो तो अब आयी महारानी !...क्या कह रही थी जाते समय ..."नहीं यार आज जाने का मन नहीं है तुम दोनों इतने सालों बाद मेरे घर मुझसे मिलने आये हो और मैं चली जाऊं ...नहीं नहीं आज के लिए माफी माँग लूंगी ठाकुर जी से...आज नहीं जा पाउँगी सत्संग में.....

हैं न मीना ! यही कह रही थी न ये"(कमला ने चुटकी लेते हुए कहा)।

"हाँ सखी! कहा तो यही था और हमने ही इसे जबरदस्ती भेजा इसका दोहरा मन देखते हुए .....।

और अब देखो सबके बाद आयी ....अरे लगता है इसे तो याद भी न रहा होगा वहाँ कि हम आये हैं ......हैं न!...

दोनों सखियाँ सरला का मजाक बनाते हुए हँसने लगी

तो सरला बोली;   "हँसो हँसो खूब हँसो तुम दोनों भी......खूब मजाक उड़ाओ मेरा.......

पर मैं भी बता देती हूँ कि मैं भूली नहीं थी तुमको वहाँ भी.....

अरे !सच बताऊँ तो आज मन ही नहीं लगा सत्संग में....

बचपन की जिन मस्तियों को याद कर हम तीनों खूब हँसे थे न सुबह से...रह रहकर वही यादें वहाँ भी कुलबुला रही थी मन में".......

"अच्छा तब ही देरी हुई न हमारे पास आने में"...कहकर दोनों सखियां फिर खिल्ली उड़ाई।

अरे नहीं सखी ! सुनो तो बताऊं न कि क्यों देरी हुई.. पर तुम तो अपनी ही चलाये जा रही हो...सरला बोली।

"अच्छा! चल बता ...कौन सा बहाना बनायेगी सुनते हैं" कहते हुए एक दूसरे के हाथ पे ताली मारकर दोनों खिलखिलाई।

सरला बोली; "बहाना नहीं सखी, सच कह रही हूँ जब जा रही थी न तो सोचा आज सबसे आखिरी में दरवाजे के पास ही बैठूंगी सत्संग खत्म होते ही सबसे पहले प्रसाद लेकर दौड़ी चली आउंगी ।

सत्संग भवन के बाहर पहुंची तो चप्पलें उतारते हुए ख्याल आया कहीं चप्पलें इधर-उधर न हो जायें, मुझे जल्दी जाना है न, इसलिये सबसे आखिरी मे सबसे हटकर अपनी चप्पलें उतारी ताकि झट से पहन कर आ सकूँ।

और संत्संग में भी कहाँ मन लगा, बचपन की मस्तियाँ जो याद की थी न हमने,  अनायास ही याद आकर होंठों में मुस्कराहट फैला रही थी, तभी ध्यान आता सत्संग में हूँ तो मन ही मन माफी माँग रही थी ठाकुर जी से...

संत्संग खत्म होते ही अपनी बारी का इंतज़ार किये बिना ही झपटकर प्रसाद लिया और बाहर की तरफ भागी।

चप्पलें पहनने लगी तो देखा एक चप्पल गायब... हड़बड़ाकर चप्पल ढूंढने लगी तो सबकी चप्पलें इधर-उधर कर दी.....

क्या बताऊँ सखी! कुछ लोग ताने मारने लगे तो कुछ आश्चर्य से घूर रहे थे मुझे......।

बहुत कोशिश के बाद भी चप्पल न मिली तो मैं समझ गयी और चुपचाप एक कोने में खड़ी इस ठिठोली का आनंद लेने लगी।

ठिठोली ! कैसी ठिठोली ? दोनों सखियों ने एक साथ पूछा।

तब सरला बोली; "हाँ सखी! ठिठोली नहीं तो और क्या?...जब सब अपनी चप्पलें पहनकर चले गये न, तब मेरी चप्पल पूर्ववत स्थान पर जहाँ मैंने रखी थी वहीं पर वैसे ही नजर आयी...

हैं !!!....पर ये ठिठोली की किसने....?   आश्चर्यचकित होकर दोनों समवेत स्वर में बोली।

भक्ति भाव से आनंदित होते हुए सरला बोली;"मेरे हरि ने....हाँ सखी !  ये ठिठोली मेरे हरि ने की।

आज मुझे तुम्हारे साथ हँसी ठिठोली करते देख  स्वयं सखा भाव में आ गये, और मेरे मन के भावों को समझ स्वयं भी ठिठोली कर बैठे....।

सच सखी ! मेरे हरि बड़े विनोदी हैं"।


30 टिप्‍पणियां:

मन की वीणा ने कहा…

वाह अद्भुत सुधा जी आनंद आ गया ।
मेरे हरि विनोदी हैं।

Abhilasha ने कहा…

वाह बहुत ही सुन्दर

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी! अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार अभिलाषा जी!अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हेतु।

रेणु ने कहा…

प्रिय सुधा जी , आस्थाओं और श्रद्धा के कोई तर्क नहीं होते | हरि को सखा भाव में देखना हमारे जीवन की गहरी आस्था का परिचायक है , विशेषकर नारी मन का तो ये एक विशेष अवलंबन है - जिसका भाव कभी मलिन नहीं होता | तीन सखियों की अंतरंगता और आत्मीयता की भावपूर्ण लघुकथा | सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई | ब्लॉग पर गद्य का रंग जम गया सखी | आपकी लेखनी का विस्तार हो - यही दुआ है |

Sudha Devrani ने कहा…

हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी !
अनमोल प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन कर सृजन को सार्थकता प्रदान करने हेतु।
जी,सखी गद्य लिखने की कोशिश जारी है
एवं मार्गदर्शन अपेक्षित।

Anuradha chauhan ने कहा…

वाह अद्भुत लेखन, बहुत सुंदर लघुकथा सखी

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार सखी!उत्साहवर्धन हेतु।

शैलेन्द्र थपलियाल ने कहा…

अति सुंदर "मेरे हरि बड़े विनोदी हैं"। आनन्द आ गया।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

सुधा दी,नारी मन की प्रभु पर आस्था का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है, आपने।

Meena Bhardwaj ने कहा…

अद्भुत लेखन । मनमोहक लघुकथा ।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक आभार एवं धन्यवाद भाई!

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार सर!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार ज्योति जी!

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार मीना जी !

Sweta sinha ने कहा…

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ सितंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

MANOJ KAYAL ने कहा…

बहुत सुंदर लघुकथा

Sudha Devrani ने कहा…

सहृदय धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी मेरी रचना पांच लिंको के आनंद मंच पर साझा करने हेतु।

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मनोज जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, ओंकार जी!

Vijay Kumar Bohra ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना।

hindiguru ने कहा…

भक्तिरस से पागि हुई रचना

Bharti Das ने कहा…

बेहद सुंदर रचना प्रस्तुति

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद विजय जी!
ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Sudha Devrani ने कहा…

अत्यंत आभार एवं धन्यवाद राकेश जी!

Sudha Devrani ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद एवं आभार भारती जी!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Satish Rohatgi ने कहा…

सुंदर





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दिगम्बर नासवा ने कहा…

कोमल और सहज मन के भाव ...
कान्हा प्रेम और सत्संग के आनद में डूबे ह्रदय के भाव लिखे हैं आपने ...
अच्छा प्रसंग ....

Sudha Devrani ने कहा…

जी, नासवा जी हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आपका।

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