बीती ताहि बिसार दे

स्मृतियों का दामन थामें मन कभी-कभी अतीत के भीषण बियाबान में पहुँच जाता है और भटकने लगता है उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षो पहले उबर भी लिए । ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीतें दुखों के घावों की पपड़ियाँ खुरच -खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने - अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निबट भी लिए । कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे खासे दिन भी फिरने लगते हैं । परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहाँ है ! कल से इतना जुड़ा है कि चैन ही नहीं इसे । ये 'कल' एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढ़लती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है । फिर खुद ही कई समस्याओं को न्यौता देने...
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (२६-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३१ 'पावस ऋतु' (चर्चा अंक -३७७४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
मेरी रचना को चर्चा में सम्मिलित करने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी!
हटाएंशुक्र मनाएं सौंधी माटी
जवाब देंहटाएंहल्या अपने गाँव जो आये
कोरोना ने शहर छुड़ाया
गाँव हरेला तीज मनाये..
बहुत सुन्दर सृजन सुधा जी । वास्तव में इस तरह की.रौनक देखने को कोरोना काल में आँखें तरस गई ।
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद मीना जी !
हटाएंये सच है कई कई दिनों बाद अधिकतर लोग अपने घर हैं ... चाहे किसी भी वजह से ...
जवाब देंहटाएंऔर अपने अपने मन का कर पाए हैं इस धरती को रोप पाए हैं ... हरियाली तीज मना पाए हैं ...
सुन्दर मोहक रचना आँचल के शब्द लिए ...
अत्यंत आभार एवं धन्यवाद नासवा जी!
हटाएंबहुत सुंदर,
जवाब देंहटाएंगाय भैंस रम्भाती आँगन
बछड़े कुदक-फुदकते हैं
भेड़ बकरियों को बिगलाते
ग्वाले अब घर-गाँव में हैं
बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
सस्नेह आभार, भाई!
हटाएंशुक्र मनाएं सौंधी माटी
जवाब देंहटाएंहल्या अपने गाँव जो आये
कोरोना ने शहर छुड़ाया
गाँव हरेला तीज मनाये
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, सखी!
हटाएंबहुत सुंदर सरस रचना दृश्य चित्र उत्पन्न करती मनभावन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंहृदयतल से धन्यवाद एवं आभार कुसुम जी!
हटाएंबहुत सुंंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मनोज जी!
हटाएंब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद एवं आभार राकेश जी!
हटाएंप्रिय सुधा जी , आपकी ये सुंदर रचना तभी पढ़ ली थी | सोचती तो मैं भी कुछ ऐसा ही गाँव की बेटी हूँ ना | पर शायद इतना अच्छा लिख ना पाती | कोरोना ने बहुत कुछ तोड़ा है पर गाँव -गली और मातृभूमि की सोई महिमा को जगाया है | आपकी सभी रचनाएँ पढ़ रहीं पर कुछ निजी कारणों की वजह से सभी ब्लॉग पर आ नहीं पाती | दूसरे आपकी रचना मेरी रीडिंग लिस्ट में नहीं पहुँच रही थी| हाँ फेसबुक पर नजर आ जाती हैं पर वहां भी कम ही जाना रहता है | आज अनफ़ॉलो करके दुबारा फ़ॉलो किया है आपका ब्लॉग आशा है अब जरुर रचना समय पर मिल जायेगी | हार्दिक शुभकामनाएं इस सुंदर रचना पर | इस पर ना लिखती अफ़सोस रहता | जल्द ही दूसरी रचनाओं पर भी प्रतिक्रिया लिखती हूँ | जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई |सस्नेह
जवाब देंहटाएंप्रिय सखी आपकी उपस्थिति मन खुश कर देती है और आपकी प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता प्रदान करती है...
हटाएंपर मैं समझ सकती हूँ आपकी व्यस्तता व अनेक कारणों को.. क्योंकि मैं भी कई बार ऐसी ही स्थिति से गुजरती हूँ चाहकर भी ब्लॉग पर नहीं आ पाती भूले भटके पहुंच भी जाऊं तो पढ़ने भर का समय होता है ऐसे में प्रतिक्रिया छूट जाती है...कोई नहीं सखी हम साथ हैं इतना काफी है आगे कभी न कभी तो स्थिति-परिस्थिति अनुकूल होगी न... फिर देखेंगी तब तक यूँ ही कभी कभार का साथ बनाए रखना...।
आपको व आपके परिवार को जन्माष्टमी की अनन्त शुभकामनाएं।
शुक्र मनाएं सौंधी माटी
जवाब देंहटाएंहल्या अपने गाँव जो आये
कोरोना ने शहर छुड़ाया
गाँव हरेला तीज मनाये
वाह !!!!!!
हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सखी!
हटाएंआपका हार्दिक अभिनन्दन है प्रिय सुधा जी |
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