इतना भी न सोचा करो !
एक दिन सब ठीक हो जायेगा
अपना ख्याल भी रखा करो !
सूखे पपड़ाये से रहते
तुम्हारे ये होंठ !
फुर्सत न थी इतनी कि
पी सको पानी के दो घूँट !
अथक,अनवरत परिश्रम करके
हमेशा चली तुम संग मेरे मिलके
दर-दर की भटकन,
बनजारों सा जीवन !
तब तुमने था चाहा ये आशियाना !
लगता बुरा था किरायेदार कहलाना!
पाई-पाई बचा-बचाके
जोड़-जुगाड़ सभी लगाके
उम्र भर करते-कमाते
आज बुढ़ापे की देहलीज पे आके
अब जब बना पाये ये आशियाना
तब तक खो चुकी तुम
अपनी अनमोल
सेहत का खजाना !
रूग्ण तन शिथिल मन
फिर भी कराहकर,
कहती मुझे तुम ये घर सजाना !
चलो बन गया अपना भी आशियाना !
पर मैं करूं क्या अब तुम्हारे बिना ?
तेरी कराह पर तड़पे दिल मेरा !
दुख में हो तुम तो दर्द में हूँ मैं भी,
नहीं भा रहा अपना ये आशियाना !
अकेले क्या इसको मैंने सजाना ?
तुम बिन नहीं कुछ भी ये आशियाना !
काश मैं तब और सक्षम जो होता !
जीवन तुम्हारा कुछ और होता ।
आज भी तुम सुखी मुस्कुराती
ये आशियाना स्वयं से सजाती
ये आशियाना स्वयं से सजाती
हम फिर उसी प्रेम को आज जीते !
बिखरे से सपनों को फिर से संजोते !!
खुशी से कहते इसे आशियाना !
चलो बन गया अपना भी आशियाना !
चित्र; साभार गूगल से
चित्र; साभार गूगल से
2 टिप्पणियां:
बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
हार्दिक आभार, संजय जी !
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