ज्येष्ठ की तपिश और प्यासी चिड़िया
सुबह की ताजी हवा थी महकी कोयल कुहू - कुहू बोल रही थी । घर के आँगन में छोटी सोनल अलसाई आँखें खोल रही थी । चीं-चीं कर कुछ नन्ही चिड़ियां सोनल के निकट आई । सूखी चोंच उदास थी आँखें धीरे से वे फुसफुसाई । सुनो सखी ! कुछ मदद करोगी ? छत पर थोड़ा नीर रखोगी ? बढ़ रही अब तपिश धरा पर, सूख गये हैं सब नदी-नाले । प्यासे हैं पानी को तरसते, हम अम्बर में उड़ने वाले । तुम पंखे ,कूलर, ए.सी. में रहते हम सूरज दादा का गुस्सा सहते झुलस रहे हैं, हमें बचालो ! छत पर थोड़ा पानी तो डालो ! जेठ जो आया तपिश बढ गयी, बिन पानी प्यासी हम रह गयी । सुनकर सोनल को तरस आ गया चिड़ियों का दुख दिल में छा गया अब सोनल सुबह सवेरे उठकर चौड़े बर्तन में पानी भरकर, साथ में दाना छत पर रखती है । चिड़ियों का दुख कम करती है । मित्रों से भी विनय करती सोनल आप भी रखना छत पर थोड़ा जल ।। चित्र: साभार गूगल से...