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धन्य-धन्य कोदंड (कुण्डलिया छंद)

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💐 विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं💐 पुरुषोत्तम श्रीराम का, धनुष हुआ कोदंड । शर निकले जब चाप से, करते रोर प्रचंड ।। करते रोर प्रचंड, शत्रुदल थर थर काँपे। सुनकर के टंकार, विकल हो बल को भाँपे ।। कहे सुधा कर जोरि, कर्म निष्काम नरोत्तम । सर्वशक्तिमय राम,  मर्यादा पुरुषोत्तम ।। अति गर्वित कोदंड है,  सज काँधे श्रीराम । हुआ अलौकिक बाँस भी, करता शत्रु तमाम ।। करता शत्रु तमाम, साथ प्रभुजी का पाया । कर भीषण टंकार, सिंधु का दर्प घटाया ।। धन्य धन्य कोदंड, धारते जिसे अवधपति । धन्य दण्डकारण्य, सदा से हो गर्वित अति । सादर अभिनंदन 🙏🙏 पढ़िए प्रभु श्रीराम पर एक और रचना मनहरण घनाक्षरी छंद में ●  आज प्राण प्रतिष्ठा का दिन है

मैं मन्दोदरी बनूँ कैसे....?

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        प्रिय ! मैं हारा, दुख का मारा  लौट के आया      तेरे द्वार...... अब नयी सरकार जागी जनता !! भ्रष्टाचार पर मार...     "तिस पर " सी.बी.आई.के छापे मुझ जैसे डर के भागे...  पछतावा है मुझको अब  प्रिय ! मैने तुझको छोड़ा...  मतलबी निकले वे सब  नाता जिनसे मैंने जोड़ा..... आज मेरे दुख की इस घड़ी में उन सबने मुझसे है मुँह मोड़ा !!! अब बस तू ही है मेरा आधार ! मेरी धर्मपत्नी, मेरा पहला प्यार ! है तुझसे ही सम्भव,अब मेरा उद्धार ।  तू क्षमाशील, तू पतिव्रता....  प्रिय ! तू  बहुत ही चरित्रवान, सर्वगुण सम्पन्न है तू प्रिय ! तुझ पर प्रसन्न रहते भगवान !! अब जप-तप या उपवास कर प्रभु से माँगना ऐसा वरदान!!! वे क्षमा मुझे फिर कर देंगे..... मैं पुनः बन जाउँगा धनवान!!! आखिर मैं तेरा पति-परमेश्वर हूँ   कर्तव्य यही है फर्ज यही , प्रिय ! मैं ही तो तेरा ईश्वर हूँ !!! ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;          ...

रिश्ते

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थोड़ा सा सब्र , थोड़ी वफा ... थोड़ा सा प्यार , थोड़ी क्षमा जो जीना जाने रिश्ते रिश्तों से है हर खुशी । फूल से नाजुक कोमल ये महकाते घर-आँगन खो जाते हैं गर  ये तो लगता सूना सा जीवन ।         क्या खोया क्या पाया, नानी -दादी ने बैठे-बैठे, यही तो हिसाब लगाया क्या पाया जीवन में ,जिसने इनका प्यार न पाया ।        दादाजी-नानाजी की वो नसीहत  मौसी-बुआ का प्यार ।  चाचू-मामू संग सैर-सपाटे  झट मस्ती तैयार ।        कोई हँसाए तो कोई चिढ़ाए  कोई पापा की डाँट से बचाए  जीवन के सारे गुर सीख जायें  हो अगर संयुक्त परिवार ।   कितनी भी दौड़ लगा लें, कितना भी आगे जा लें । सूरज चंदा से मिले या, तारे भी जमीं पर ला लें । दुनिया भर की शाबासी से दिल को चैन कहाँ है ? अपनोंं के आशीष में ही , अपना तो सारा जहाँ है । जो जीना जाने रिश्ते रिश्तों से  है हर खुशी । बड़ी ही कोमल नाजुक सी डोरी से बंधे प्रेम के रिश्ते । समधुर भावोंं की प्रणय बन्धन से जीवन  को सजाएं रिश्ते । जोश-ज...

नारी : अतीत से वर्तमान तक

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कुछ करने की चाह लिए अस्तित्व की परवाह लिए  मन ही मन सोचा करती थी बाहर दुनिया से डरती थी...... भावों में समन्दर सी गहराई हौसले की उड़ान भी थी ऊँची  वह कैद चहारदीवारी में भी, सपनों की मंजिल चुनती थी.... जग क्या इसका आधार है क्या ? धरा आसमां के पार है क्या,? अंतरिक्ष छानेगी वह इक दिन ख्वाबों में उड़ाने भरती थी..... हिम्मत कर निकली जब बाहर, देहलीज लाँघकर आँगन तक । आँगन खुशबू से महक उठा, फूलों की बगिया सजती थी........ अधिकार जरा सा मिलते ही, वह अंतरिक्ष तक हो आयी... जल में,थल में,रण कौशल में सक्षमता अपनी  दिखलायी....... बल, विद्या, हो या अन्य क्षेत्र इसने परचम अपना फहराया सबला,सक्षम हूँ, अब तो मानो अबला कहलाना कब भाया........ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx जब सृष्टि सृजन की थी शुरूआत सोच - विचार के बनी थी बात....... क्योंकि....... दिल से दूर पुरुष था तब, नाकाबिल, अक्षम, अनायास... सृष्टि सृजन , गृहस्थ जीवन हेतु किया था सफल प्रयास..... पुरूषार्थ जगाने, प्रेम उपजाने, सक्षमता  का आभास कराने । कोमलांगी नाजुक गृहणी ब...

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