जाने इनके जीवन में ,
ये कैसा मोड आया,
ये कैसा मोड आया,
खुशियाँँ कोसों दूर गयी
दुख का सागर गहराया...
कैसे खुद को संभालेंगे
सोच के मन मेरा घबराया.....
आयी है बसंत मौसम में,
हरियाली है हर मन में,
पतझड़ है तो बस इनके,
इस सूने से जीवन में.......
इस सूने जीवन में तो क्या,
खुशियाँ आना मुमकिन है ?
आँसू अविरल बहते इनके ,
देख के मन मेरा घबराया......
छिन गया बचपन बच्चों का,
उठ गया सर से जब साया,
हो गये अनाथ जो इक पल में
छिन गया पिता का इन्हे सहारा.....
मुश्किल जीवन बीहड राहें,
उस पर मासूम अकेले से,
कैसे आगे बढ़ पायेंगे,
सोच के मन मेरा घबराया.....
बूढे़ माँ-बाप आँखें फैलाकर,
जिसकी राह निहारा करते थे।
उसे "शहीद"कह विदा कर रहे,
स्वयं विदा जिससे लेने वाले थे...
इन बूढ़ीआँखों के बहते जो,
आँसू कौन पोंछने आयेगा.......
"गर्व करे शहीदों पर"पूरा देश।
घरवालों को कौन संभालेगा.....
दो दिन की हमदर्दी में,
जीवन किसका निभ पाया....
कैसे खुद को संभालेंगे
सोच के मन मेरा घबराया...
जाने इनके जीवन में,
एक ऐसा ही मोड़ आया
खुशियाँ कोसों दूर गयी...
दुख का सागर गहराया ।।
दुख का सागर गहराया...
कैसे खुद को संभालेंगे
सोच के मन मेरा घबराया.....
आयी है बसंत मौसम में,
हरियाली है हर मन में,
पतझड़ है तो बस इनके,
इस सूने से जीवन में.......
इस सूने जीवन में तो क्या,
खुशियाँ आना मुमकिन है ?
आँसू अविरल बहते इनके ,
देख के मन मेरा घबराया......
छिन गया बचपन बच्चों का,
उठ गया सर से जब साया,
हो गये अनाथ जो इक पल में
छिन गया पिता का इन्हे सहारा.....
मुश्किल जीवन बीहड राहें,
उस पर मासूम अकेले से,
कैसे आगे बढ़ पायेंगे,
सोच के मन मेरा घबराया.....
बूढे़ माँ-बाप आँखें फैलाकर,
जिसकी राह निहारा करते थे।
उसे "शहीद"कह विदा कर रहे,
स्वयं विदा जिससे लेने वाले थे...
इन बूढ़ीआँखों के बहते जो,
आँसू कौन पोंछने आयेगा.......
"गर्व करे शहीदों पर"पूरा देश।
घरवालों को कौन संभालेगा.....
दो दिन की हमदर्दी में,
जीवन किसका निभ पाया....
कैसे खुद को संभालेंगे
सोच के मन मेरा घबराया...
जाने इनके जीवन में,
एक ऐसा ही मोड़ आया
खुशियाँ कोसों दूर गयी...
दुख का सागर गहराया ।।
7 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना सोमवार. 17 जनवरी 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हृदयतल से धन्यवाद आ.संगीता जी! मेरी रचना के चयन हेतु।
सादर आभार।
हुतात्माओं के परिवार की दशा पर सटीक और हृदय स्पर्शी सृजन किया है आपने सुधा जी।
आंखे नम कर गया आपका दर्द में डूबा सार्थक सृजन।
जिस दर्द को आपने शब्द-भाव दिया है, कल्पना कर के रोम-रोम सिहर जाता है । आह!
वीरों के वीर गाथाओं में
गुम उनके अपनों का दर्द
आँसू,सिसकी,तड़प से परे
मातृभूमि के लिए उनके फर्ज़
----
सुधा जी,
कुछ अनकहे दर्द को आपने शब्द दिया जिसे वीरों के शहादत
की ओजमयी गाथाओं के महिमामंडन में अनदेखा कर दिया जाता है।
...
सस्नेह।
बहुत सुंदर मन को छूती हुई अभिव्यक्ति
प्रिय सुधा जी, शहीद की चिता में उसके साथ समस्त परिवार के सपने भी जलकर राख हो जाते हैं। उनके परिवारों की व्यथा शब्दों में कही या लिखी नहीं जा सकती। आपने इस व्यथा शब्दांकित कर आपने बहुत मार्मिक सृजन किया गया। सच में एक अपार संभावनाएं लिए युवा जब अकाल मृत्युपथ की ओर अग्रसर होते हैं तो वह समय उनके अबोध परिवार के लिए बहुत दुभर होता होगा। मार्मिक रचना के लिए हार्दिक आभार।
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