सब क्या सोचेंगे !
"मोना !.. ओ मोना" !... आवाज देते हुए माँ उसके स्टडी रूम में पहुँची तो देखा कि बेटी ने खुली किताब के ऊपर डॉल हाउस सजा रखा और अपनी गुड़िया को सजाने में इतनी तल्लीन है कि ना तो उसे कोई आवाज सुनाई दे रही और ना ही माँ के आने की आहट ।
कल इसकी परीक्षा है और आज देखो इसे ! ये लड़की पढ़ने के नाम पर खेल में बिजी है । गुस्से में माँ ने उसकी बाँह पकड़कर उसे झिझोड़ा तो वो एकदम झसक सी गई ।
सामने माँ को देखकर आँख बंद कर गहरी साँस ली फिर बोली "ओह ! मम्मी ! आप हो ! मुझे लगा पापा ही पहुँच गए"।
"अच्छा ! पापा का डर और मम्मी ऐवीं" ! गुस्से के कारण माँ की आवाज ऊँची थी ।
"श्श्श...क्या मम्मी ! आपके अंदर पापा की आत्मा घुस गई क्या" ?
"देख मोना ! मुझे गुस्सा मत दिला ! बंद कर ये खेल खिलौने ! और चुपचाप पढ़ने बैठ ! कल तेरी परीक्षा है, कम से कम आज तो मन लगाकर पढ़ ले" !
"वही तो कर रही हूँ मम्मी ! मन बार -बार इसके बारे में सोच रहा था तो सोचा पहले इसे ही तैयार कर लूँ , फिर मन से पढ़ाई करूँगी" ।
"बेटा ! तुझे समझ क्यों नहीं आता ? क्यों नहीं सोचती कि तेरे कम मार्क्स आएंगे तो सब क्या सोचेंगे तेरे बारे में" ?
"ओह्हो मम्मी ! अब ये भी मैं ही सोचूँ ? बस यार मम्मी ! ये सब मुझे नहीं सोचना ! मेरा काम हो गया , अब मैं पढ़ने बैठती हूँ" ।
वह तो अपना डॉल हाउस समेटकर पढ़ने बैठ गई, पर मम्मी कुछ देर तक सोचती रह गई कि "सब क्या सोचेंगे यह भी मैं ही क्यों सोचूँ " !
बात समझ आई तो अधरों पर मुस्कान खिल गई ।
पढ़िए ऐसे ही माँ-बेटी के वार्तालाप पर आधारित एक और लघु कथा -
सचमुच बच्चे मासूम और मनमौजी होते हैं वो कहाँ सोच पाते है उनके द्वारा की गयी गलतियों पर कौन क्या कहेगा उनको तो बस में अपने मम्मी पापा से मतलब।
जवाब देंहटाएंसस्नेह प्रणाम दी।
सादर।
----
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता ! आपके इस सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए।
हटाएंसस्नेह आभार प्रिय श्वेता ! आपके इस सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए।
जवाब देंहटाएंसुधा जी, इस प्यारी सी लघु कथा के लिए धन्यवाद। अभिनंदन।
जवाब देंहटाएं"दूसरे क्या सोचेंगे, ये भी मैं ही सोचूँ ?"
इस मासूम और सहज जवाब में कितनी सच्चाई है ! वास्तव में बच्चों की जुबान पर सरस्वती बैठती हैं।
जी, नुपुरं जी ! तहेदिल से धन्यवाद आपका
हटाएंसार्थक संदेश देती लघुकथा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, लोग क्या सोचेंगे
जवाब देंहटाएंलाख टके की बात !
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप के रूप में हम सबने - 'लोग क्या कहेंगे' की दुहाई दे कर अपने-अपने बच्चों पर कई बार पढ़ाई, फ़ैशन, दोस्ती, शादी वगैरा को ले कर अनावश्यक दबाव डाले हैं.
एक अध्यापक के रूप में मेरा अनुभव है कि बच्चों पर अगर पढ़ने का दबाव न डाला जाए तो ज़्यादातर बच्चे मन लगा कर पढ़ते हैं.
जी, सर ! सही कहा आपने..सारगर्भित प्रतिक्रिया से सृजन को सार्थकता प्रदान करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका । 🙏🙏
हटाएंसुन्दर सी लघुकथा के माध्यम से बहुत सुन्दर संदेश सुधा जी ! अति सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंतहेदिल से धन्यवाद एवं आभार मीना जी !
हटाएंअद्भुत लेखन बहुत ही सुंदर लघु कथा
जवाब देंहटाएं