संदेश

सितंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात

चित्र
  किसको कैसे बोलें बोलों, क्या अपने हालात  सम्भाले ना सम्भल रहे अब,तूफानी जज़्बात मजबूरी वश या भलपन में, सहे जो अत्याचार जख्म हरे हो कहते मन से , करो तो पुनर्विचार तन मन ताने देकर करते साफ-साफ इनकार, बोले अब न उठायेंगे,  तेरे पुण्यों का भार  तन्हाई भी ताना मारे, कहती छोड़ो साथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात सबकी सुन सुन थक कानों ने भी सुनना है छोड़ा खुद की अनदेखी पे आँखें भी रूठ गई हैं थोड़ा ज़ुबां लड़खड़ा के बोली अब मेरा भी क्या काम चुप्पी साधे सब सह के तुम कर लो जग में नाम चिपके बैठे पैर हैं देखो, जुड़ के ऐंठे हाथ सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात रूह भी रहम की भीख माँगती, दबी पुण्य के बोझ पुण्य भला क्यों बोझ हुआ, गर खोज सको तो खोज खुद की अनदेखी है यारों, पापों का भी पाप ! तन उपहार मिला है प्रभु से, इसे सहेजो आप ! खुद के लिए खड़े हों पहले, मन मंदिर साक्षात सम्भाले ना सम्भल रहे अब तूफानी जज़्बात ।। 🙏सादर अभिनंदन एवं हार्दिक धन्यवादआपका🙏 पढ़िए मेरी एक और रचना निम्न लिंक पर .. ●  तुम उसके जज्बातों की भी कद्र कभी करोगे

विश्वविदित हो भाषा

चित्र
  मनहरण घनाक्षरी (घनाक्षरी छन्द पर मेरा एक प्रयास)  हिंदी अपनी शान है भारत का सम्मान है प्रगति की बाट अब इसको दिखाइये मान दें हिन्दी को खास करें हिंदी का विकास सभी कार्य में इसे ही अग्रणी बनाइये संस्कृत की बेटी हिंदी सोहती ज्यों भाल बिंदी मातृभाषा से ही निज साहित्य सजाइये हिंदी के विविध रंग रस अलंकार छन्द इसकी विशेषताएं सबको बताइये समानार्थी मुहावरे शब्द-शब्द मनहरे तत्सम,तत्भव सभी उर में बसाइये संस्कृति की परिभाषा उन्नति की यही आशा राष्ट्रभाषा बने हिन्दी मुहिम चलाइये डिजिटल युग आज अंतर्जाल पे हैं काज हिंदी का भी सुगम सा पोर्टल बनाइए विश्वविदित हो भाषा सबकी ये अभिलाषा जयकारे हिन्दी के जग में फैलाइए । पढ़िए मातृभाषा हिन्दी पर आधारित एक कविता ● बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी

बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी

चित्र
आगे बढ़ ना सकेंगे जब तक,                  बढ़े ना अपनी हिंदी ।                 भारत की गौरव गरिमा ये,                  राष्ट्र भाल की बिंदी ।                 बढ़ा मान गौरवान्वित करती,                 मन में भरती आशा।                 सकल विश्व में हो सम्मानित,                 बने राष्ट्र की भाषा ।                गंगा सी पावनी है हिन्दी,                सागर सी गुणग्राही ।                हर भाषा बोली के शब्दों को ,                खुद में है समाई ।                सारी भगिनी भाषाओं को,        ...

सार-सार को गहि रहै

चित्र
  साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।  "बच्चों इस दोहे मे कबीर दास जी कहते हैं कि, इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है न, जो सार्थक को बचा ले और निरर्थक को उड़ा दे " । "गलत ! बिल्कुल गलत"  !..... मोटी और कर्कश आवाज में कहे ये शब्द सुनकर सरला और उसके पास ट्यूशन पढ़ने आये बच्चे चौंककर इधर-उधर देखने लगे । आस-पास किसी को न देखकर सरला के दिल की धड़कन बढ़ गयी उसने सोचा ये आवाज तो बरामदे की तरफ से आयी और वहाँ तो एक खाट पर पक्षाघात की चपेट में आये उसके बीमार पति लेटे हैं।  तो ! तो ये बोलने लगे?    भावातिरेक से सरला की आँखों से आँसू टपक पड़े।   दीवार का सहारा लेकर खड़ी हुई और बरामदे की तरफ बढ़ी।    बूढ़ी सिकुड़ी आँखें आशा से चमकती हुई कुछ फैल गयी। काँपते हाथों से पति के ऊपर से चादर हटाई। उखड़ी श्वास को वश में कर, जी ! कहकर उनकी आँखों में झाँका। जो निर्निमेष सीढ़ी के नीचे बने छोटे से स्टोर की ओर ताक रही थी । ओह ! ये तो !..  निराशा से शरीर की रही सही हिम्मत भी ज्यों ढ़ेर हो गयी।  ...

फ़ॉलोअर