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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

करते रहो प्रयास (दोहे)

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1. करते करते ही सदा, होता है अभ्यास ।     नित नूतन संकल्प से, करते रहो प्रयास।। 2. मन से कभी न हारना, करते रहो प्रयास ।   सपने होंगे पूर्ण सब, रखना मन में आस ।। 3. ठोकर से डरना नहीं, गिरकर उठते वीर ।   करते रहो प्रयास नित, रखना मन मे धीर ।। 4. पथबाधा को देखकर, होना नहीं उदास ।    सच्ची निष्ठा से सदा, करते रहो प्रयास ।। 5. प्रभु सुमिरन करके सदा, करते रहो प्रयास ।    सच्चे मन कोशिश करो, मंजिल आती पास ।। हार्दिक अभिनंदन🙏 पढ़िए एक और रचना निम्न लिंक पर उत्तराखंड में मधुमास (दोहे)

सच बड़ा तन्हा उपेक्षित राह एकाकी चला

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  सच बड़ा तन्हा उपेक्षित, राह एकाकी चला, टेरती शक्की निगाहें, मन में निज संशय पला । झूठ से लड़ता अभी तक, खुद को साबित कर रहा, खुद ही दो हिस्से बँटा अब, मन से अपने लड़ रहा। मन ये पूछे तू भला तो, क्यों न तेरे यार हैं  ? पैरवी तेरी करें जो, कौन कब तैयार हैं  ? क्या मिला सच बनके तुझको, साजिशों में दब रहा, घोर कलयुग में समझ अब, तू कहीं ना फब रहा । क्यों कसैला और कड़वा, चाशनी कुछ घोल ले ! चापलूसी सीख थोड़ी, शब्द मीठे बोल ले ! ना कोई दुनिया में तेरा, अपने बेगाने हुए, खून के रिश्ते भी देखो, ऐसे अनजाने हुए । सच तू सच में सच का अब तो, इतना आदी हो गया देख तो सबकी नजर में, तू फसादी हो गया । हाँ फसादी ही सही पर सच कभी टलता नहीं, जान ले मन ! मेरे आगे झूठ ये  फलता नहीं । मेरे मन ! तेरे सवालों का बड़ा अचरज मुझे ! क्या करूँ इस चापलूसी से बड़ी नफरत मुझे ! पर मेरे मन !  तू ही मुझसे यूँ खफा हो जायेगा । फिर तेरा सच बोल किससे कैसे संबल पायेगा ? वैसे झूठों और फरेबों ने  मुझे मारा नहीं  हूँ परेशां और तन्हा, पर कभी हारा नहीं  । हाँ  मैं सच हूँ सच रहूँगा,  चाहे एकाकी रह...

अपने हिस्से का दर्द

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चित्र साभार pixabay  से... अपनों  की महफिल में हँसते -मुस्कराते  हिल - मिल कर  खुशियाँ मनाते सभी अपने खुशियों से चमकती - दमकती  इन खूबसूरत आँखों के बीच   नजर आती हैं,  कहीं कोई  एक जोड़ी आँखें  सूनी - सूनी पथराई सी । ये सूनी पथराई सी आँखें  कोरों का बाँध बना  आँसुओं का सैलाब थामें जबरन मुस्कराती हुई  ढूँढ़ती हैं कोई  एकांत अंधेरा कोना जहाँ कुछ हल्का कर सके पलकों का बोझ। बोझिल पलकों संग  ये जोड़ी भर आँखें झुकी - झुकी और  सहमी सी बामुश्किल छुपाती हैं  कोरों  के छलकाव से आँसुओं संग बहता दर्द  । हाँ दर्द जिसे नहीं दिखाना चाहती उसके उन अपनों को जिन्हें अपना बनाने और  उनका अपनापन पाने में  लगी हैं उसकी  वर्षों की मेहनत। जानती है अपनों को  अपना दर्द बता कर मिलेगी उसे संवेदना  पर साथ में उठेंगे सवाल भी। और जबाब में उधड़ पड़ेंगी वे सारी गाँठे जिनमें  तुलप-तुलप कर  बाँधे हैं उसने दर्द अपने हिस्से के... हर एक दर्द की  अपनी अलग कहानी किसी की बेरुखी, बेदर्दी तो  किसी...

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